दिल्ली हाई कोर्ट ने उस मध्यस्थता फैसले में हस्तक्षेप करने से इनकार कर दिया है, जिसमें गेल को जिंदल सॉ लिमिटेड को 70 लाख अमेरिकी डॉलर से अधिक का भुगतान करने का निर्देश दिया गया था.
न्यायमूर्ति विभु बाखरु और जस्टिस सचिन दत्ता की पीठ ने एकल पीठ के फैसले के खिलाफ गैस ऑथरिटी ऑफ इंडिया लिमिटेड (GAIL) की अपील को यह कहते हुए खारिज कर दिया कि यह अनुचित है.
यह मामला सॉ पाइप्स लिमिटेड (अब जिंदल सॉ लिमिटेड) के GAIL को पाइपों की देरी से आपूर्ति करने से संबंधित है. दिसंबर 2002 में पारित और फिर मार्च 2003 में संशोधित आदेश में मध्यस्थता न्यायाधिकरण ने माना था कि माल की आपूर्ति न लेने के कारण हुई देरी के लिए GAIL जिम्मेदार है. इसलिए उसने सॉ पाइप्स लिमिटेड के दावों को स्वीकार कर लिया था.
उसने आगे कहा कि GAIL सॉ पाइप्स की ओर से की गई देरी के कारण पाइपों के लिए देय कीमत को कम करने का हकदार नहीं था. उसने सॉ पाइप्स को ब्याज और लागत सहित 72,30,378.23 अमेरिकी डॉलर का भुगतान करने का आदेश दिया था. नवंबर 2010 में जब GAIL ने इसे मध्यस्थता अधिनियम के तहत चुनौती दी थी तो एकल पीठ ने उपरोक्त फैसले को बरकरार रखा था.
-भारत एक्सप्रेस
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