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दिल्ली हाई कोर्ट का बड़ा फैसला, खुफ़िया एजेंसी की यूसीएम सूची में नाम शामिल करना मानवाधिकारों का उल्लंघन

दिल्ली हाई कोर्ट ने कहा कि किसी व्यक्ति का नाम खुफ़िया एजेंसी की अवांछनीय संपर्क व्यक्तियों (UCM) की सूची में शामिल करना व समाचार पत्र तथा आधिकारिक वेबसाइट में उसका प्रकाशन प्रथम दृष्टया सूचना के अधिकार (RTI) अधिनियम के तहत मानवाधिकारों का उल्लंघन है.

जस्टिस सचिन दत्ता ने यह बात एक चार्टर्ड अकाउंटेंट की केंद्रीय सूचना आयोग (सीआईसी) के उसके आरटीआई आवेदन को खारिज करने के आदेश को चुनौती देने के मामले में कही है. याचिकाकर्ता का नाम सीबीआई की यूसीएम की सूची में शामिल था. बाद में उसे कई समाचार पत्रों में प्रकाशित हुआ था. उसे सीबीआई के प्रतीक के साथ समाचार पत्रों की क्लिपिंग के साथ उसके वेबसाइट पर अपलोड किया गया था.

CBI द्वारा यूसीएम सूची में नाम शामिल करने का मामला

समाचार पत्रों के अनुसार सरकारी अधिकारियों को यूसीएम सूची में नामित व्यक्तियों के साथ व्यवहार न करने, उनसे जुड़ने या आतिथ्य व उपहार स्वीकार करने के खिलाफ चेतावनी दी गई थी. याचिकाकर्ता ने उसे सीआईसी के.समक्ष चुनौती दी थी.

याचिकाकर्ता ने कहा था कि अधिनियम की धारा 24 (1) के अनुसार भ्रष्टाचार और मानवाधिकार उल्लंघन के आरोपों से संबंधित जानकारी को आरटीआई अधिनियम के तहत प्रकटीकरण से छूट नही दी जाएगी. लेकिन उसका नाम यूसीएम की सूची में शामिल कर दिया गया जो उसे मानवाधिकारों और गरिमा का उल्लंघन है.

कोर्ट ने कहा कि याचिकाकर्ता का नाम यूसीएम में शामिल किया जाना प्रथम दृष्टया मानवाधिकारों का उल्लंघन हैं, क्योंकि इससे उनकी गरिमा और पेशेवर प्रतिष्ठा को नुकसान पहुचा है. उसने यह कहते हुए इस मामले पर.नए सिरे से विचार के लिए सीआईसी को वापस भेज दिया.

साथ ही सीआईसी से मानवाधिकार उल्लंघन के मुद्दे पर विचार करने और यह निर्धारित करने के लिए कहा कि मांगी गई जानकारी आरटीआई अधिनियम की धारा 24 (1) के प्रावधान में किए गए अपवाद के अंतर्गत आती है या नहीं.

ये भी पढ़ें: दिल्ली पुलिस ने मेधा पाटकर को साकेत कोर्ट में किया गिरफ्तार, मानहानि मामले में दोषी करार

-भारत एक्सप्रेस 

गोपाल कृष्ण

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