मुद्दे की परख

‘HIT’ फॉर्मूले के साथ प्रगति की राह पर भारत और नेपाल

Forging an Unstoppable Alliance: दशकों से भारत और नेपाल का अटूट संबंध रहा है. इसी संबंध को अब पीएम मोदी आगे बढ़ा रहे हैं. दरअसल, पीएम मोदी के नेतृत्व में भारत और नेपाल ने दूरदर्शी परियोजनाओं की शुरुआत की है. हाल ही में नेपाली प्रधानमंत्री ‘प्रचंड’ चार दिवसीय भारत दौरे पर आए थे. इस यात्रा के दौरान, दोनों देशों के बीच कई मुद्दों पर बातचीत हुई. वहीं, नेपाल के साथ संबंधों को बढ़ाने के लिए ‘HIT’ फॉर्मुला (राजमार्ग, आई-वे और ट्रांस-वे) के साथ-साथ और भी महत्वपूर्ण निर्णय लिए गए हैं.

बता दें कि कनेक्टिविटी और विकास की साझा दृष्टि से नेपाल और भारत के बीच भविष्य के लिए जबरदस्त संभावनाएं हैं. हालांकि, पहले के समझौते का ठोस परिणाम मिल रहा है लेकिन आगे का रास्ता चुनौतियों से भरा हुआ है, जिस पर दोनों देशों को अधिक ध्यान देने की आवश्यकता है.

भारत और नेपाल ने परिवहन नेटवर्क को बढ़ाने, व्यापार में तेजी लाने और आर्थिक एकीकरण को बढ़ावा देने के लिए राजमार्गों, आई-वे और ट्रांस-वे फॉर्मुला के साथ प्रगति की है. नेपाली लोगों को भारत में काम करने की अनुमति है. वहीं, भारतीय रुपये का नेपाल में स्वतंत्र रूप से उपयोग किया जाता है. दोनों देश सीमा साझा करते हैं. भारत नेपाल का सबसे बड़ा व्यापार भागीदार है. नेपाल के लिए भारत (FDI) का प्रमुख स्रोत है. इस प्रकार आधुनिक राजमार्गों की स्थापना न केवल हमारे दोनों देशों के बीच संपर्क को और मजबूत करेगी बल्कि पारस्परिक प्रगति के नए द्वार भी खोलेगी.

इसके साथ ही, मजबूत आई-वे के विकास से संचार और प्रौद्योगिकी के बुनियादी ढांचे में क्रांतिकारी बदलाव आएगा, जिससे विचारों, ज्ञान और नवाचार के निर्बाध आदान-प्रदान की सुविधा मिलेगी. यह डिजिटल क्रांति हमारे समाजों को सशक्त करेगी और भारत और नेपाल दोनों को डिजिटल युग में सबसे आगे रखते हुए सामाजिक-आर्थिक विकास को गति देगी.

इसके अलावा, ट्रांस-वे, परिवहन सिस्टम पर जोर देते हुए, हमारी सीमाओं के भीतर और बाहर कनेक्टिविटी में सुधार करके हमारे द्विपक्षीय संबंधों को और मजबूत करेगा. सीमा पार परिवहन नेटवर्क को बढ़ाकर, हम अपने संबंधित क्षेत्रों की विशाल क्षमता को अनलॉक कर सकते हैं. वहीं निरंतर विकास और क्षेत्रीय सहयोग की नींव बना सकते हैं. सामाजिक, धार्मिक और सामुदायिक. नेपाल के साथ तीनों प्रकार के संबंध रहे हैं. दोनों देशों के बीच शाही परिवारों के बीच अंतर-विवाह भी हुए हैं.

 

चीन फैक्टर और सीमा संवेदनशीलता

 

फिर भी, इन ऐतिहासिक संबंधों के साथ-साथ हमें सीमा की संवेदनशीलता और क्षेत्र में चीनी प्रभाव के संबंध में भारत की चिंताओं को दूर करने की तत्काल आवश्यकता को भी स्वीकार करना चाहिए.

भारत और नेपाल के बीच सीमा विवाद, कालापानी के आसपास केंद्रित है. 2014 के समझौते के बावजूद यह अनसुलझा है.अधिकारियों ने इस मामले पर सीमित चर्चा की है. 2019 में, भारत ने जम्मू और कश्मीर की सीमाओं को रेखांकित करते हुए एक नया नक्शा जारी किया, जिससे नेपाल के साथ देश का विवाद बढ़ा. जवाब में, नेपाल ने 2020 में अपने नए नक्शे को मंजूरी दी. इसके बावजूद प्रधानमंत्री मोदी ने सहकारी तरीके से सीमा समस्या को हल करने की प्रतिबद्धता व्यक्त की है.

नई संसद भवन के उद्घाटन में दीवार पर बनी ‘अखंड भारत’ की भित्ति चित्र से विवाद खड़ा हो गया. नेपाल के पूर्व प्रधानमंत्री बाबूराम भट्टाराई ने भारत के नए संसद भवन में बने अखंड भारत भित्ति-चित्र को लेकर चिंता जताई. पिछले प्रधानमंत्रियों भट्टाराई और ओली ने आंतरिक रूप से इस मुद्दे को उठाया, लेकिन प्रधानमंत्री प्रचंड ने इसका समर्थन नहीं किया.

नेपाल लगातार भारत के साथ 1950 की मैत्री संधि में संशोधन की मांग करता रहा है. नेपाल हमेशा से तर्क देता रहा है कि यह एक अन्यायपूर्ण समझौता है. हालांकि, इन सब के बावजूद, भारत ने इस मुद्दे को हल करने के लिए कोई कदम नहीं उठाया है. अफसोस की बात है कि ईपीजी रिपोर्ट को एक दशक से अधिक समय से अछूता छोड़ दिया गया है, जो दोनों देशों के संबंध में बदलाव की बात करता है.

2019 में, नेपाल ने चीन के साथ एक महत्वाकांक्षी सौदा शुरू किया है. इस कदम के परिणामस्वरूप नेपाल में चीन के प्रभाव में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है. जवाब में, भारत ने अपनी नई परियोजनाएं शुरू की हैं और चल रही परियोजनाओं को सफलतापूर्वक पूरा किया है. इसके अतिरिक्त, भारत सरकार ने चीनी कंपनियों द्वारा निर्मित या वित्त पोषित जलविद्युत परियोजनाओं से बिजली प्राप्त करने पर प्रतिबंध लगा दिया है. 2022 में प्रचंड और ओली के प्रतिस्पर्धी गुटों में सामंजस्य स्थापित करने के चीन के असफल प्रयास के विपरीत, भारत ने नेपाली राजनीति के साथ अपने संबंधों में अधिक संयमित और समावेशी दृष्टिकोण अपनाया है.

हालांकि, 2015 में भारत ने नेपाल के साथ व्यापार पर रोक लगाई. यह नेपाल के नए संविधान के लिए भारत सरकार के विरोध की प्रतिक्रिया थी. इसका प्रभाव नेपालियों पर पड़ा. इससे कहीं न कहीं नेपाली आबादी के बीच असंतोष और दुश्मनी को बढ़ावा मिला है.

अब आगे क्या?

विश्वास और सहयोग सुनिश्चित करने के लिए दोनों देशों के बीच ईमानदार संवाद आवश्यक है, क्योंकि हम अपनी सीमाओं को सुरक्षित करने और अपने साझा हितों की रक्षा के लिए मिलकर काम करते हैं. भारत और नेपाल न केवल भौगोलिक सीमा साझा करते हैं बल्कि सांस्कृतिक और सामाजिक आदान-प्रदान के समृद्ध इतिहास से भी बंधे हैं. इस अमूल्य रिश्ते को पोषित करके और इसे ‘HIT’ फॉर्मूले के साथ मजबूत करके, हम आने वाली चुनौतियों को दूर कर सकते हैं और आपसी सम्मान, समझ और सामूहिक समृद्धि पर बने एक अटूट गठबंधन का निर्माण कर सकते हैं.

साथ मिलकर, हमारे पास भविष्य को आकार देने का अवसर है, जहां भारत और नेपाल प्रगति के प्रकाश स्तंभ के रूप में खड़े हैं. उद्देश्य में एकजुट हैं. असीम क्षमता से भरे हुए हैं. आइए, हम अपनी साझी आकांक्षाओं के बल पर इस क्षण का लाभ उठाएं और अपने लोगों के उज्जवल और अधिक समृद्ध भविष्य की दिशा में एक मार्ग तैयार करें.

-भारत एक्सप्रेस

Rakesh Kumar

Sr. Sub-Editor

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