मुद्दे की परख

विदेशी फंडों के सहारे भारत को अस्थिर करने की कोशिश में पत्रकारों का नेटवर्क

OCCRP: भारत एक मजबूत अर्थव्यवस्था के साथ-साथ बढ़ते वैश्विक प्रभाव वाला जीवंत लोकतांत्रिक देश है. हालांकि, दुनिया इसकी सफलता से खुश नहीं है. कुछ देसी-विदेशी ताकतें हैं जो भारत की प्रगति को कमजोर करना चाहती हैं और दुनिया में इसकी छवि खराब करना चाहती हैं. उनमें से एक खोजी पत्रकारों का नेटवर्क है, जिसे ऑर्गेनाइज्ड क्राइम एंड करप्शन रिपोर्टिंग प्रोजेक्ट (OCCRP) कहा जाता है.

क्या है OCCRP?

OCCRP खोजी पत्रकारों का एक वैश्विक नेटवर्क होने का दावा करता है. मीडिया घरानों के साथ इसकी जबरदस्त साझेदारी है. समय-समय पर OCCRP ‘समाचार लेखों’ को प्रकाशित करता है. लेकिन क्या यह वास्तव में वैसा ही है जैसा वह होने का दावा करता है या इसका लक्ष्य कुछ और हासिल करने का है? इसका उत्तर एक और प्रश्न की ओर ले जाता है: इन्हें फंड कहां से मिलता है? OCCRP के वेबसाइट के अनुसार, जॉर्ज सोरोस के ओपन सोसाइटी फ़ाउंडेशन से इसे खूब पैसे मिलते हैं. जॉर्ज की यह संस्था दुनियाभर में कट्टरपंथियों को समर्थन करने वालों का फाइनेंसर है. अन्य प्रमुख डोनर फोर्ड फाउंडेशन, रॉकफेलर ब्रदर्स फंड और ओक फाउंडेशन हैं. अधिकांश लोगों का दावा है कि यह पश्चिमी संस्थान कहता कुछ और है, करता कुछ और है.

OCCRP का एजेंडा क्या है?

एक तरफ जहां चंद्रयान 3 के सफल लैंडिंग पर भारत ऐतिहासिक उपलब्धि का जश्न मना रहा था, वहीं प्रेस ट्रस्ट ऑफ इंडिया की एक परेशान करने वाली खबर ने देश की खुशी पर ग्रहण लगा दिया है. रिपोर्ट के मुताबिक, ओसीसीआरपी अपने सहयोगी टूलकिट ग्रुपों के साथ मिलकर एक बार फिर खोजी पत्रकारिता की आड़ में हमला करने की तैयारी कर रहे हैं. पीटीआई की रिपोर्ट से पता चलता है कि OCCRP भारत में कुछ कॉर्पोरेट घरानों को ‘बेनकाब’ करने की योजना बना रही है. इसमें कहा गया है कि ‘एक्सपोज़’ में कॉरपोरेट घरानों के शेयरों में निवेश करने वाले विदेशी फंड शामिल हो सकते हैं. इन फर्मों की अभी तक पहचान नहीं की गई है लेकिन एजेंसियां कथित तौर पर कैपिटल मार्केट पर कड़ी नजर रख रही हैं.

अब समय आ गया है कि हम OCCRP के पीछे के उद्देश्यों के बारे में जानें

यह जानना बेहद जरूरी है कि हिंडनबर्ग रिपोर्ट सामने आने के बाद जॉर्ज सोरोस ने पीएम मोदी को लेकर क्या कहा था. जॉर्ज ने कहा, “भारत में, मोदी और बिजनेस टाइकून अडानी करीबी सहयोगी हैं. अडानी एंटरप्राइजेज ने शेयर बाजार में पैसे जुटाने की कोशिश की लेकिन असफल रहे. मोदी को संसद में अडानी पर जवाब देना होगा. इससे भारत में मोदी की पकड़ काफी कमजोर हो जाएगी. मुझे भारत में लोकतांत्रिक पुनरुद्धार की उम्मीद है. इससे मुझे लगता है कि लोकतंत्र फिर से फलेगा-फूलेगा.”

गौरतलब है कि सोरोस ने यूपीए 1 और यूपीए 2 के दौर में भारत को खुशहाल और स्वस्थ देखा था. हालांकि हिंडनबर्ग रिपोर्ट सामने आने के बाद अडानी के शेयर बुरी तरह गिर गए. देश में एक राजनीतिक तूफान खड़ा हो गया. विपक्षी कांग्रेस और उसके सहयोगियों ने संसद के शीतकालीन सत्र को पूरी तरह से रद्द करने के लिए मजबूर कर दिया. मोदी सरकार पर कई तरह के आरोप लगाए गए. लेकिन जैसे-जैसे समय बीतता गया लोगों और निवेशकों ने हिंडनवर्ग रिपोर्ट को भूला दिया. अडानी के शेयरों में तेजी आई और अदानी-हिंडनबर्ग मुद्दे पर सुप्रीम कोर्ट के पूर्व न्यायाधीश एएम सप्रे के नेतृत्व में सुप्रीम कोर्ट इस निष्कर्ष पर आई कि “प्रथम दृष्टया कीमत में हेराफेरी के आरोप को लेकर सेबी की ओर से कोई नियामक विफलता नहीं हुई है. ”

ऐसा कह सकते हैं कि सोरोस की इच्छाओं को वह उड़ान नहीं मिल सका जो वह चाहता था. इस प्रकार, यह अटकलें हैं कि OCCRP भारत में और अधिक राजनीतिक और आर्थिक उथल-पुथल पैदा करने के लिए “हिंडनबर्ग 2.0” लेकर आ रहा है.
यह कई मौकों पर साबित हुआ है कि वे अपनी रिपोर्ट का समय भारत के कैलेंडर की कुछ महत्वपूर्ण घटनाओं के साथ जोड़ते हैं. आइए देखें कि वर्तमान समय क्यों महत्वपूर्ण है. लेकिन उससे पहले थोड़ा बैकग्राउंड पर नजर डालते हैं.

मई में, सुप्रीम कोर्ट द्वारा नियुक्त छह सदस्यीय विशेषज्ञ समिति ने कहा कि हिंडनबर्ग रिपोर्ट जारी होने से पहले अडानी समूह के शेयरों में शॉर्ट पोजीशन के निर्माण के सबूत मिले थे. छह संस्थाओं की ओर से संदिग्ध व्यापार देखा गया. इनमें से चार एफपीआई, एक कॉरपोरेट निकाय और एक व्यक्तिगत है. कुछ समाचार रिपोर्टों से पता चलता है कि आगे की जांच करने पर, ऐसी संस्थाओं की संख्या बढ़ गई है. इसने सुझाव दिया कि सेबी को ऐसी कार्रवाइयों की जांच करनी चाहिए.

उम्मीद है कि सेबी 29 अगस्त को अपनी रिपोर्ट सुप्रीम कोर्ट को सौंपेगी. यह कहना किसी के बस की बात नहीं है कि उच्च न्यायपालिका का फैसला कुछ मीडिया या अन्य निजी तौर पर वित्त पोषित रिपोर्टों से प्रभावित हो सकता है, लेकिन ऐसी रिपोर्टें नकारात्मक चर्चा पैदा करती हैं.

कुछ दिन बाद पीएम मोदी नई दिल्ली में जी20 शिखर बैठक की मेजबानी करेंगे. राजनीतिक धूल उछालना या प्रतिकूल आर्थिक और शेयर बाजार रिपोर्ट सर्वोत्तम हित में नहीं होगी. हाल के वर्षों में पीएम मोदी और भारत ने वैश्विक स्तर पर बड़ा कद हासिल किया है. भारत विभिन्न क्षेत्रों में अपनी कड़ी मेहनत से बढ़ने का प्रयास कर रहा है. मोदी पहले ही घोषणा कर चुके हैं कि उनके तीसरे कार्यकाल में भारत 5 ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था बन जाएगा.

हम उनका मुकाबला कैसे कर सकते हैं?

ओसीसीआरपी जैसे विदेशी वित्त पोषित नेटवर्क के ऐसे प्रयासों का मुकाबला करने का सबसे अच्छा तरीका उनके छिपे हुए एजेंडे और फंडिंग के संदिग्ध स्रोतों को उजागर करना है. हमें उनकी विश्वसनीयता और भारत और उसके नेताओं को निशाना बनाने के पीछे के उनके उद्देश्यों पर भी सवाल उठाना चाहिए. हमें उनके दुष्प्रचार और उनकी सनसनीखेज बातों का शिकार नहीं बनना चाहिए. हमें अफवाहों और आक्षेपों पर नहीं बल्कि तथ्यों और सबूतों पर भरोसा करना चाहिए.

भारत का गौरवशाली इतिहास और उज्ज्वल भविष्य वाला राष्ट्र है. हमें किसी को भी अपने आत्मविश्वास या अपनी संप्रभुता को कमजोर नहीं करने देना चाहिए. हमें किसी भी बाहरी या आंतरिक खतरे के खिलाफ एकजुट होना चाहिए, जो हमारे हितों या हमारे मूल्यों को नुकसान पहुंचाना चाहते हैं. हमें अपनी सरकार और संस्थानों का समर्थन करना चाहिए जो भारत को एक मजबूत और समृद्ध देश बनाने के लिए कड़ी मेहनत कर रहे हैं.

हमें अपनी उपलब्धियों और अपनी क्षमता का भी जश्न मनाना चाहिए. हमें अपनी संस्कृति और अपनी विविधता पर गर्व होना चाहिए. हमें अपने लोकतंत्र और अपनी स्वतंत्रता पर गर्व होना चाहिए. हमें अपने लोगों और अपने नेताओं पर गर्व होना चाहिए। हमें भारतीय होने पर गर्व होना चाहिए.

-भारत एक्सप्रेस

उपेन्द्र राय, सीएमडी / एडिटर-इन-चीफ, भारत एक्सप्रेस

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