भारत के कॉरपोरेट जगत में कई प्रमुख व्यावसायिक समूहों का हाल के दिनों में उत्थान और पतन देखा गया है, जिसमें उदाहरण के तौर पर अनिल अंबानी के नेतृत्व वाला धीरूभाई अंबानी समूह, वीडियोकॉन समूह, जेपी समूह, यूनिटेक समूह और एस्सार समूह की विफलताएं हैं.
इन कॉरपोरेट के पतन में तमाम ऐसी वजह हैं जिनमें भयंकर प्रतिस्पर्धा, महत्वाकांक्षी विविधीकरण, आर्थिक मंदी, कुप्रबंधन और अस्थिर ऋण स्तर का होना शामिल है. इस लेख का उद्देश्य इन कॉरपोरेट विफलताओं के पीछे के कारणों की पड़ताल करना है, और इससे भी महत्वपूर्ण बात यह है कि भारतीय कॉरपोरेट का क्षेत्र इससे महत्वपूर्ण सबक सीख सकता है.
अनिल अंबानी समूह, वीडियोकॉन समूह और जेपी समूह के अर्श से फर्श पर गिरने के पीछे जो मुख्य कारण हैं, उनमें से एक उनकी अभूतपूर्व महत्वाकांक्षाएं और कई क्षेत्रों में अत्यधिक विस्तार था. अपने व्यवसायों में तेजी से विविधता लाने और व्यापक स्तर पर इसे फैलाने की तीव्र इच्छा के कारण कर्ज और संसाधनों का विस्तार हुआ. विकास की चाह में, उन्होंने अपनी मूल दक्षताओं पर ध्यान केंद्रित करने के महत्व को अनदेखा कर दिया. जिससे उनके सामने वित्तीय समस्याएं खड़ी हो गईं.
सबक: भारतीय कंपनियों को विस्तार करने की योजनाओं का बहुत ही बारीकी से मूल्यांकन करना चाहिए और विविधता लाने से पहले अपने मुख्य व्यवसायों को मजबूत करने पर ध्यान देना चाहिए. स्थायी सफलता के लिए विवेकपूर्ण वित्तीय प्रबंधन और एक अच्छी तरह से परिभाषित विकास रणनीति आवश्यक है.
बाजारों की गतिशील प्रकृति हमेशा अनुकूलन और नवीनता की मांग करती है. वीडियोकॉन उपभोक्ताओं की मांग और इलेक्ट्रॉनिक्स सेक्टर में बदलती उपभोक्ताओं की प्राथमिकताओं के साथ ही तकनीकी प्रगति पर ध्यान देने में विफल हो गया. जिससे उसकी बाजार में हिस्सेदारी में भी गिरावट आ गई. ठीक इसी तरह, एस्सार समूह की वैश्विक इस्पात उद्योग की मंदी से पैदा हुईं चुनौतियों से निपटने में असफल रहा और उसके सामने भी वित्तीय समस्याएं पैदा हो गईं.
सबक: भारतीय निगमों को समय के साथ नवप्रवर्तन की संस्कृति को अपनाना चाहिए और उभरते बाजार की गतिशीलता के लिए तेजी से अनुकूलन करने के लिए हमेशा अलर्ट होना चाहिए. नियमित बाज़ार का विश्लेषण और ग्राहक-केंद्रित दृष्टिकोण कंपनियों को आगे रहने में मदद कर सकता है.
इनमें से कई असफल व्यावसायिक समूहों को कुप्रबंधन और कमजोर कॉरपोरेट प्रशासन प्रथाओं के कारण आंतरिक चुनौतियों का सामना करना पड़ा. यूनिटेक समूह की समय पर परियोजनाएं देने में विफलता और वित्तीय अनियमितताओं के आरोपों ने निवेशकों का विश्वास खो दिया और लिक्विडिटी का संकट पैदा हो गया. इस तरह की विफलताएं कॉरपोरेट एडमिनिस्ट्रेशन के हितधारकों के भरोसे को कमजोर करती हैं और पूंजी तक पहुंच में बड़ी समस्या खड़ी करती हैं.
सबक: हितधारकों का विश्वास बनाए रखने और निवेश आकर्षित करने के लिए मजबूत .कॉरपोरेट प्रशासन, नैतिक प्रथाएं और पारदर्शिता का होना सबसे जरूरी है. कॉरपोरेट के खराब प्रबंधन को खत्म करने के लिए कंपनियों को आंतरिक नियंत्रण, जवाबदेही और नियमों के पालन को सबसे ज्यादा प्राथमिकता देनी चाहिए.
इन असफल व्यावसायिक समूहों के बीच एक सबसे महत्वपूर्ण और सामान्य कारक अस्थिर कर्ज का बोझ था. अत्यधिक प्रतिस्पर्धी दूरसंचार उद्योग में प्रतिस्पर्धा करने के लिए रिलायंस कम्युनिकेशंस के संघर्ष के कारण अनिल अंबानी समूह पर कर्ज बढ़ गया. अधिग्रहण और कंपनी के विस्तार से एस्सार समूह के भारी-भरकम कर्ज ने कंपनी की चुनौतियों को और बढ़ा दिया.
सबक: भारतीय कंपनियों को कर्ज प्रबंधन में हमेशा सतर्क रुख अपनाना चाहिए और जितना हो सके, ज्यादा कर्ज लेने से बचना चाहिए. इसके अलावा वित्तीय स्थिरता को बनाए रखने के लिए जिम्मेदारी से उधार लेने के बाद उसे समय पर भुगतान किया जाना चाहिए.
जेपी समूह की गिरावट आर्थिक उतार-चढ़ाव के प्रति संवेदनशील क्षेत्रों में काम करने वाली कंपनियों की कमजोरी को उजागर करती है. भारत में आर्थिक मंदी के कारण बुनियादी ढांचे और रियल एस्टेट क्षेत्रों को प्रतिकूल परिस्थितियों का सामना करना पड़ा. परियोजनाओं को लागू करने में आने वाली चुनौतियों और उसके देरी के चलते जेपी ग्रुप के सामने भी लिक्विडिटी के संकट को बढ़ा दिया.
सबक: भारत में कंपनियों को किसी भी क्षेत्र विशेष में जाने से पहले उसके जोखिमों का आकलन बहुत ही सावधानीपूर्वक करना चाहिए. इसके अलावा आर्थिक मंदी का सामना करने के लिए भी पहले से रणनीति बनाकर आगे बढ़ने की जरूरत है. राजस्व धाराओं में विविधता लाने और मजबूत कैश फ्लो मैनेजमेंट को बनाए रखने से आने वाली आर्थिक चुनौतियों के प्रभाव को कम करने में मदद मिल सकती है.
भारत में प्रमुख व्यावसायिक समूहों की बिगड़ते हालात पूरे .कॉरपोरेट जगत के लिए एक तरह से चेतावनी का काम करती हैं. इन कंपनियों के डूबने के लिए जिन कारणों को जिम्मेदार ठहराया जा सकता है, उनमें कंपनियों का तेजी से विस्तार, अस्थिर कर्ज, अनुकूल परिस्थितियां बनाने में असफलता और सबसे बड़ा कारण .कॉरपोरेट के मिस मैनेजमेंट शामिल हैं.
भारत में एक बेहतरीन कॉरपोरेट के वातावरण को बढ़ावा देने के लिए व्यवसायों को सतत विकास, जिम्मेदार वित्तीय प्रथाओं और नैतिक शासन को प्राथमिकता देनी चाहिए. अतीत की गलतियों से सीखकर, स्टार्टअप्स और अनुकूलनशीलता की संस्कृति को अपनाकर, भारतीय निगम इसे बेहतर बना सकते हैं. इसके अलावा वैश्विक व्यापार के लिए आने वाली जटिलताओं को सफलतापूर्वक पार कर सकते हैं. अंततः, टिकाऊ और जिम्मेदार व्यावसायिक प्रथाओं के प्रति प्रतिबद्धता भारतीय कंपनियों के भविष्य की सफलता की कुंजी होगी.
-भारत एक्सप्रेस
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