कार्तिक पूर्णिमा का सनातन धर्म में विशेष महत्व है. ऐसी मान्यता है कि इस दिन देवता स्वर्ग लोक से उतरकर दीपदान करने धरती पर आते हैं, इसलिए इस दिन को देव दीपावली के नाम से भी जाना जाता है. यह पर्व दीवाली के 15 दिन बाद कार्तिक पूर्णिमा के दिन मनाया जाता है. धर्म नगर काशी में इस दिन गंगा स्नान, पूजन, हवन और दीपदान किया जाता है. पूरी काशी नगरी को रौशनी से सजाया जाता है और घाटों पर दीप जलाकर जगमगाया जाता है. इस मनमोहक नजारे को देखने के लिए बड़ी संख्या में लोग काशी आते हैं, लेकिन आखिर काशी में ही क्यों मनाया जाता है देव दीपावली का त्योहार क्या है और इसके पीछे की पौराणिक कथा क्या है.
इस साल 7 नवंबर को काशी में देव दीपावली मनाई जाएगी. घाट से लेकर गलियों में जन जन का उत्साह अलग स्वरूप में देखने को मिलता है. मान्यता है कि काशीपुराधिपति कार्तिक पूर्णिमा पर स्वयं सभी देवी देवताओं के साथ गंगा तट पर दीपदान करने आते हैं. इसलिए भी इसको देव दीपावली कहा जाता है.
कथा के मुताबिक, भगवान शिव और माता पार्वती के पुत्र कार्तिकेय ने तारकासुर का वध करके देवताओं को स्वर्ग वापस दिलवाया था. तारकासुर के वध के बाद उसके तीनों पुत्रों ने देवताओं से बदला लेने का प्रण किया था. उन्होंने ब्रह्माजी की तपस्या की और सभी ने एक-एक वरदान मांगा था. वरदान में उन्होंने कहा कि उन्होंने कहा कि जब ये तीनों नगर अभिजीत नक्षत्र में एक साथ आ जाएं तब असंभव रथ, असंभव बाण से बिना क्रोध किए हुए कोई व्यक्ति ही उनका वध कर सकता है. इस वरदान को पाकर तीनों आतंक मचाने लगे और अत्याचार करने लगे. उन्होंने देवताओं को भी स्वर्ग से निकाल दिया था. इससे परेशान होकर देवता भगवान शिव की शरण में पहुंच गए. तब जाकर भगवान शिव ने काशी में पहुंचकर सूर्य और चंद्र का रथ बनाकर अभिजीत नक्षत्र में उनका वध किया था. इस खुशी में देवताओं ने काशी में पहुंचकर दीपदान किया और इसी दिन से देव दीपावली का उत्सव मनाया जाता है.
–भारत एक्सप्रेस
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