आस्था

जानें भगवान शिव के केदारनाथ बनने की कहानी और शिवलिंग से जुड़ा यह रहस्य

Kedanath Dham: भगवान शिव की महिमा अपरंपार है. अलग-अलग समय पर उन्होंने अलग-अलग अवतारों में अपने भक्तों और प्राणियों का उद्दार किया है. विभिन्न समयांतरालों पर बने देश के कोने-कोने में भगवान शिव के मंदिर श्रद्धालुओं की भक्ति और आस्था का केंद्र हैं. ऐसा ही एक प्रसिद्ध शिव मंदिर है देव भूमि उत्तराखंड में बसा केदारनाथ मंदिर. यहां शिव मंदिर में स्थापित शिवलिंग 12 ज्‍योतिर्लिंग में से एक है और यह 11वें स्‍थान पर है. हालांकि यहां भगवान शिव का नाम केदारनाथ है जिसके पीछे एक रोचक पौराणिक कहानी है.

केदारनाथ कहलाने की कहानी

हिंदू पौराणिक ग्रंथों में उल्लेखित और चली आ रही प्रचलित कथाऔ के अनुसार एक बार सतयुग में भगवान विष्‍णु ने नर और नारायण के रूप में अवतार लिया. अवतार रूप में ही वे उत्तराखंड में अलकनंदा नदी के किनारे स्थित नर और नारायण पर्वत पर ध्यान लगाकर बैठ गए और कठोर तपस्‍या करने लगे. तपस्‍या को देखते हुए भगवान भोलेनाथ प्रकट हुए और वर मांगने को कहा. तब नर और नारायण ने भगवान शिवजी से कहा कि हे प्रभु हमें किसी और चीज चाहत नहीं है. अगर आप कुछ देना ही चाहते हैं तो बस आप यहां आकर बस जाएं. उनकी इन बातों से प्रसन्न होते हुए भगवान शिव ने खुद को शिवलिंग के रूप में खुद को प्रकट करने का वरदान दिया और स्‍वयंभू शिवलिंग के रूप में स्‍थापित हो गए. वहीं जिस स्‍थान पर भगवान शिव शिवलिंग रूप में प्रकट हुए, वह जगह केदार नामक राजा के राज्य का हिस्सा थी. यह भूमि केदार खंड कहलाती थी. इसी कारण उनका नाम केदारनाथ पड़ गया.

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क्यों है बैल के पीठ जैसी शिवलिंग

कहते हैं कि द्वापर युग में पांडवों ने सबसे पहले इस मंदिर की खोज की थी. अपने पापों से मुक्ति पाने के लिए हिमालय में भटकते हुए शिवजी की खोज में पांडव यहां तक आ पहुंचे. धार्मिक ग्रंथों में इस बात का जिक्र है कि पांडवों के वंशज जनमेजय ने मंदिर की सबसे पहले आधारशिला रखी थी. उसके बाद मंदिर को क्षति पहुंचने पर आदिशंकाराचार्य ने मंदिर का जीर्णोद्धार करवाया था. पांडवों द्वारा घनघोर तपस्‍या करने के बाद शिवजी ने उन्‍हें बैल के रूप में दर्शन दिए थे. इसी कारण शिवजी बैल के रूप शिवलिंग बन इसी स्‍थान पर स्थापित हो गए. यही कारण है कि यहां पर शिवलिंग बैल की पीठ के जैसा दिखता है.

Rohit Rai

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