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Eid Ul Fitr 2025: क्या आप जानते हैं ईद-उल-फितर की ये कहानी, पैगंबर साहब ने किसके कंधे पर थपथपाया था हाथ?

Eid Ul Fitr: रमजान इस्लाम में सबसे खास और बरकतों से भरा दिन माना जाता है. इसे महीने के बाकी दिनों में सबसे अहम माना गया है. इस बार रमजान की शुरुआत 2 मार्च 2025 से हुई थी और 30 मार्च यानी कल पूरे देश में ईद का चांद दिखा इसलिए ईद-उल-फितर 31 मार्च यानी आज मनाई जा रही है. कहा जाता है कि ईद का महीना अपने साथ कई प्रेरणादायक कहानियाँ लेकर आता है. यह महीना केवल उपवास और इबादत का ही नहीं, बल्कि करुणा, प्रेम और उदारता का भी प्रतीक है. ऐसे में आज हम आपको पैगंबर मुहम्मद की दयालुता की एक ऐसी अद्भुत घटना के बारे में बताएंगे जो ईद के दिन घटित हुई, जो हमें एक महत्वपूर्ण सीख देती है.

ईद की खुशी और मदीना का माहौल

जी हां यह कहानी पैगंबर मुहम्मद के ईद के जश्न के दिनों की हैं. उस दिन मदीना की गलियों में उल्लास और खुशी का नजारा दिखाई दे रहा था. हर कोई सुंदर कपड़े पहनकर उत्सव मना रहा था बच्चे खेल-कूद रहे थे, लोग एक-दूसरे को बधाई दे रहे थे, और हर तरफ आनंद का वातावरण था. तभी अचानक सुबह, पैगंबर मुहम्मद ने शहर के बाहरी इलाके में ईद की नमाज़ अदा करवाई. नमाज के बाद सभी लोग अपने-अपने घरों को लौट गए, लेकिन इसी दौरान दयालुता का अद्भुत घटना घटी.

पैगंबर साहब ने किसके कंधे पर थपथपाया था हांथ?

जब पैगंबर मुहम्मद घर लौट रहे थे, तो उन्होंने एक छोटे बच्चे, जुहैर-बिन-सगीर, को सड़क के किनारे उदास और अकेला बैठा देखा. वह रो रहा था और बाकी सभी बच्चों की तरह खुश नहीं था. तभी पैगंबर ने प्यार से उसके कंधे पर हाथ थपथपाया और पूछा, “बच्चे, तुम क्यों रो रहे हो?”लड़के ने आंसू पोंछते हुए जवाब दिया, “मेरे पिता का देहांत हो गया है और, मेरी माँ ने दूसरी शादी कर ली.

बच्चे ने आगे कहा कि मेरे सौतेले पिता मुझे पसंद नहीं करते. वे नहीं चाहते कि मैं उनके साथ रहूँ. आज ईद है, सबके पास नए कपड़े और स्वादिष्ट खाना है, लेकिन मेरे पास कुछ भी नहीं है.”यह सुनकर पैगंबर मुहम्मद की आँखों में आंसू झलक उठी. उन्होंने बड़े ही प्यार से कहा, “मैं भी तुम्हारी तरह अनाथ था, मैंने भी अपने माता-पिता को बहुत छोटी उम्र में खो दिया था.”

पैगंबर की दयालुता और नया परिवार

जब बच्चे ने ऊपर देखा और पैगंबर मुहम्मद को पहचाना, तो वह हैरान रह गया और सम्मानपूर्वक खड़ा हो गया. पैगंबर मुस्कुराते हुए बोले, “क्या तुम चाहोगे कि मैं तुम्हारा पिता बन जाऊं? मेरी पत्नी तुम्हारी माँ और मेरी बेटी तुम्हारी बहन बन जाए?”पैंगबर की यह बात सुनकर बच्चे की आँखों में आंसू आ गए और वह खुशी से बोला, “हां! ये तो मेरे लिए सोभाग्य की बात होगी!”तभी पैगंबर मुहम्मद उसे अपने घर ले गए, उसे नए कपड़े पहनाए, स्वादिष्ट भोजन कराया और ईद की खुशियों में उसे शामिल किया.

दयालुता और परोपकार को अपनाएं

यह कहानी हमें सिखाती है कि हमें हमेशा जरूरतमंदों की मदद करनी चाहिए, न केवल ईद पर, बल्कि जीवन के हर अवसर पर. पैगंबर मुहम्मद की सुन्नत को अपनाते हुए हमें करुणा और प्रेम का परिचय देना चाहिए और उन लोगों के प्रति संवेदनशील रहना चाहिए जो हमसे कम सौभाग्यशाली हैं. ईद का असली संदेश यही है—प्रेम, दया और उदारता!

-भारत एक्सप्रेस 

Akansha

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