Nuclear Submarines: पनडुब्बी निर्माण एक जटिल प्रक्रिया है जिसमें न केवल तकनीक, बल्कि व्यक्तियों का प्रशिक्षण भी शामिल होता है. इसके लिए विशुद्ध तकनीकी ज्ञान से परे आवश्यक कौशल हासिल करने के लिए अनुभव का महत्वपूर्ण रोल होता है. अगर हम भारतीय नौसेना की बात करें तो करीब तीन दशकों के अनुभव वाले पूर्व विशेषज्ञ पनडुब्बी चालक अनिल जय सिंह ने स्पुतनिक इंडिया के साथ बातचीत में उन्होंने कहा था कि परमाणु पनडुब्बी के संचालन और रखरखाव के लिए अत्यधिक जटिल और जटिल पारिस्थितिकी तंत्र की आवश्यकता होती है.
बता दें कि परमाणु पनडुब्बी एक ऐसी पनडुब्बी होती है, जो परमाणु रिएक्टर द्वारा संचालित होती है लेकिन ये जरूरी नहीं कि वह परमाणु सशस्त्र हो. जानकार बताते हैं कि पहली बात यह है कि परमाणु ऊर्जा से चलने वाली पनडुब्बी परमाणु हथियार नहीं है. एक पनडुब्बी बैलास्ट टैंक का उपयोग करके समुद्र में ऊपर-नीचे जाती है. इसके बारे में बताया गया है क जब पनडुब्बी सतह पर होती है, तो उसके बैलस्ट टैंक हवा से भर जाते हैं, जिससे उसका घनत्व आस-पास के पानी से कम हो जाता है और डूबने के लिए, बैलस्ट टैंक पानी से भर जाते हैं, जिससे जहाज का कुल घनत्व आस-पास के पानी से अधिक हो जाता है. इसकी सतह एकदम चिकनी होती है और ये पानी के अंदर तेज रफ्तार से चलती है. इसके अंदर दो प्रकार
अपने अकार के कारण ही ये तेज रफ्तार से समुद्र के अंदर चल पाती है. दो प्रकार के हल मौजूद होते हैं जिसे आउटर हल और प्रेशर हल कहते हैं. प्रेशर हल को स्ट्रेंथ मेटल की मदद से बनाया जाता है जो कि पनडुब्बी को समुद्र की गहराई में प्रेशर झेलने की मदद करता है और कई हिस्सों में ये बंटा होता है. इसी के साथ ही प्रेशर हल में ही कम्युनिकेशन रूम, कंट्रोल रूम, वेपन रखने की जगह बनी होती है. इसी के साथ ही किचन से लेकर कई तरह की चीजें होती हैं. पनडुब्बी की बाहरी हिस्से पर नजर डालेंगे तो एक ढांचा नजर आएगा यहां पर पेलीस्कोप भी लगा होता है.
इस तरह के पेलीस्कोप अंदर पर 45 डिग्री के एगर पर दो मिरर या फिर प्रिज्म लगे होते हैं. जो कि निकलने वाली रोशनी को रिफ्लेक्ट करके नीचे देखने वाले के इंसानों की आंखों पर पहुंचा देती है. इसी के इस्तेमाल से ही पनडुब्बी के अंदर बैठा इंसान ऊपर की तरफ निगरानी रख सकता है. जब इसका इस्तेमाल नहीं करना होता है तो उसे आउटर हल की ओर खींच लिया जाता है. पेलीस्कोप का इस्तेमाल काफी सोच कर करना पड़ता है, क्योंकि जैसे ही ये पेलीस्कोप समुद्र की सतह पर पहुंचता है तो समुद्र की सतह पर लहरें पैदा होने लगती है और इस तरह से दुश्म की नजर इस पेलीस्कोप पर पड़ सकती है. या तो फिर रडार के जरिए भी इसे आसानी से डिटेक्ट किया जा सकता है. पनडुब्बी में लगे सोनार के बारे में जानते हैं.
पनडुब्बी में लगे सोनार के बारे में जानते हैं. ये थोड़ा अलग होता है और आउटर प्रेशर के बीचो बीच लगा होता है. ये एक खास तरीके का एक्विमेंट है. ये समुद्र के अंदर के आने-जाने वाले खतरे को डिटेक्ट करता है. इसके अंदर से एक साउंड वेब को पानी में भेजा जाता है, जो किसी भी ऑब्जेक्ट से टकरा कर वापस रिसीव होती है. जो सिग्नल रिसीव होती है, उसे हम इको कहते हैं. इसी इको से पता लगता है कि सामने आने वाला ऑब्जेक्ट कितनी दूरी पर है. टोपिडो ट्यूब है उसकी मदद से टोपिडो को पानी में छोड़ा जाता है.
इन टोपिडो की मदद से प्रेशर हल में रखा जाता है और यहीं से हथियारों को कंट्रोल करने वाला कंट्रोल सिस्टम भी मौजूद होता है. पनडुब्बी के हर फंक्शन को यहीं से कंट्रोल किया जाता है.यहां से पनडुब्बी के नेविगेशन से लेकर टोपिडो के लांच करने तक के कमांड दिए जाते हैं. यहां पर वेपन फायरिंग सिस्टम, ड्राइविंग कंट्रोल सिस्टम, सर्फेस सिस्टम और मॉनिटरिंग पैनल भी मौजूद होता है. पनडुब्बी में काम करने वाले लोगों से लेकर किचन आदि सब यहीं पर होता है. यहां पर मिसाइल ट्यूब भी मौजूद मिलेंगे, जहां से पनडुब्बी के अंदर से मिसाइलों को लांच किया जाता है.
इसी के साथ ही यहां पर सहायक उपकरण कम्पार्टमेंट भी मौजूद होता है. इसी कम्पार्टमेंट के पीछे ही परमाणु रिएक्टर मौजूद मिलेगा. इसी की मदद से पनडुब्बी के लिए ऊर्जा तैयार की जाती है. यहां पर परमाणु फ्युजन तकनीक का इस्तेमाल किया जाता है. इसके पीछे इंजन कम्पार्टमेंट होता है, जहां पर टर्बाइन होता है. यहां पर ही जनरेटर आदि हर जरूरी चीज मौजूद रहती है. इसकी मदद से ही सबमरीन को आगे की ओर बढ़ाया जाता है. आने वाले समय में ये पनडुब्बी एक गेम चेंजर साबित होने वाली है.
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ये पनडुब्बियां 30 साल तक के संचालन के लिए परमाणु ईंधन ले जा सकती हैं पानी के नीचे समय को सीमित करने वाला एकमात्र संसाधन चालक दल के लिए भोजन की आपूर्ति और पोत का रखरखाव है. परमाणु पनडुब्बियों की स्टील्थ तकनीक की कमजोरी यह है कि जब पनडुब्बी नहीं चल रही होती है, तब भी रिएक्टर को ठंडा करने की आवश्यकता होती है; रिएक्टर से निकलने वाली गर्मी का लगभग 70% समुद्री जल में नष्ट हो जाता है। यह एक “थर्मल वेक” छोड़ता है, कम घनत्व के गर्म पानी का एक प्लम जो समुद्र की सतह पर चढ़ता है और एक “थर्मल निशान” बनाता है जिसे थर्मल इमेजिंग सिस्टम, जैसे, FLIR द्वारा देखा जा सकता है
सोशल मीडिया पर वायरल खबरों की मानें तो परमाणु पनडुब्बियों का संचालन करने वाले देशों की परमाणु पनडुब्बियों को बंद करने की अलग-अलग रणनीति होती है एक परमाणु पनडुब्बी के कार्य करते रहने की उम्र करीब 25 से 30 वर्ष होने की सम्भावना होती है. इन पनडुब्बियों को बंद करने भी एक लंबी प्रक्रिया होती है. कुछ को कुछ समय के लिए रिजर्व या मॉथबॉल में रखा जाता है और अंततः स्क्रैप कर दिया जाता है, तो वहीं कुछ का तुरंत निपटारा कर दिया जाता है लेकिन परमाणु पनडुब्बियों का प्रभावी निपटान काफी खर्चीला होता है. अगर 2004 तक इसकी लागत की बात करें तो इसकी अनुमानित राशि 4 बिलियन डॉलर थी.
इस सम्बंध में जानकार बताते हैं कि पारंपरिक पनडुब्बियों और परमाणु पनडुब्बियों के बीच मुख्य अंतर बिजली उत्पादन प्रणाली है. परमाणु पनडुब्बियां इस कार्य के लिए परमाणु रिएक्टरों का उपयोग करती हैं. पनडुब्बियों में उपयोग किए जाने वाले रिएक्टर आमतौर पर अत्यधिक समृद्ध ईंधन (अक्सर 20% से अधिक) का उपयोग करते हैं ताकि वे एक छोटे रिएक्टर से बड़ी मात्रा में बिजली प्रदान कर सकें और ईंधन भरने के बीच लंबे समय तक काम कर सकें – जो पनडुब्बी के दबाव वाले पतवार के भीतर रिएक्टर की स्थिति के कारण मुश्किल है. तो वहीं इसको लेकर ये भी जानकारी मिलती है कि वे या तो बिजली उत्पन्न करती हैं जो प्रोपेलर शाफ्ट से जुड़ी इलेक्ट्रिक मोटरों को शक्ति प्रदान करती है या भाप बनाने के लिए रिएक्टर की गर्मी पर निर्भर करती हैं जो भाप टर्बाइनों को चलाती है.
-भारत एक्सप्रेस
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