Sheikh Hasina: बांग्लादेश की पूर्व प्रधानमंत्री शेख हसीना अपनी बहन के साथ भारत के गाजियाबाद में हिंडन एयरबेस के सेफ हाउस में रुकी हुई हैं और उन्होंने दूसरी रात भी सेफ हाउस में काटी है. मालूम हो कि शेख हसीना की सरकार ने बांग्लादेश में एक लम्बी पारी खेली है लेकिन छात्र आंदोलन ने 5 अगस्त को उनकी सरकार का पतन कर दिया और वह जान जोखिम में देखते ही वह देश छोड़ने के लिए मजबूर हो गईं. देश छोड़ने के बाद से ही यहां पर हिंदुओं और मंदिरों पर हमले लगातार जारी हैं. वह अपनी छोटी बहन शेख रेहाना को लेकर हेलीकॉप्टर से भारत पहुंची. फिलहाल ब्रिटेन में उन्होंने शरण मांगी है. कहा जा रहा है कि जब तक उनको ब्रिटेन में शरण नहीं मिलेगी, तब तक वह भारत में ही रहेंगी.
बता दें कि ये पहला मौका नहीं है जब शेख हसीना के जीवन में इतने मुश्किल दिन आए हैं. इससे पहले भी उनके जीवन ने बहुत से कठिन दिन देखे हैं लेकिन जिस तरह से आज भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी उनका सहयोग कर रहे हैं तो ठीक उसी तरह से जब-जब उनके जीवन में मुश्किल दिन आए, कोई न कोई देवदूत की तरह उनके जीवन में आया है. तो आइए देखें उनके जीवन के कौन हैं वो तीन देवदूत जिन्होंने मुश्किल दिनों में उनका साथ दिया है.
जब 15 अगस्त 1975 में उनके पिता शेख मुजीबुर रहमान का कत्ल हुआ तब शेख हसीना की उम्र महज 28 साल थी और उन्हें शरण के लिए भटकना पड़ा था. हालांकि तब उनका दुख बांटने के लिए उनके पति उनके साथ थे. उस वक्त भी भारत ने मदद का हाथ बढ़ाया था. हालांकि तब वह पति डॉ. वाजेद और बहन के साथ ब्रसेल्स में बांग्लादेश के राजदूत सनाउल हक के यहां थी और फोन के जरिए उनको पिता की हत्या की जानकारी हुई थी. तब वह पेरिस निकलने की तैयारी में लगी हुई थीं. उस वक्त जर्मनी में बांग्लादेश के राजदूत हुमायूं रशीद चौधरी से उनको पिता को लेकर इस दुखद घटना की जानकारी मिली थी. इस बीच, राजदूत सनाउल हक ने मदद का हाथ खींच लिया था. तब हुमायूं रशीद चौधरी देवदूत बनकर उनके सामने आए और उन्होंने हसीना और उनकी बहन रेहाना को जर्मनी बुलाया और आसरा दिया.
1975 में ही जब हसीना के रहने को लेकर समस्या खड़ी हो रही थी तब भारत ने हाथ आगे बढ़ाया था और इंदिरा गांधी उनकी दूसरी देवदूत बनकर उभरीं थीं. हुमायूं रशीद चौधरी ने पश्चिमी जर्मनी में भारत के राजदूत वाई से शेख हसीना और उनके परिवार को राजनीतिक शरण देने के लिए भारत का जिक्र किया था. मालूम हो कि उस समय भारत में इंदिरा गांधी की सरकार थी लेकिन उनकी सरकार तब आपातकाल की स्थिति से गुजर रही थी. तो दूसरी ओर जब शेख हसीना के कहीं रुकने का बंदोबस्त नहीं हुआ, तब चौधरी ने इंदिरा गांधी के दफ्तर में फोन किया और उनको पूरी स्थिति से अवगत कराया था. इसके बाद इंदिरा गांधी ने उनकी मदद की थी और तुरंत ही उनको परिवार सहित भारत बुला लिया था. वो 24 अगस्त, 1975 का दिन था जब वह एयर इंडिया के विमान से दिल्ली के पालम हवाई अड्डे पर उतरी थीं. इस पर सबसे पहले उनको रॉ के 56, रिंग रोड स्थित सेफ हाउस में ले जाया गया था. उसके बाद, हसीना को इंडिया गेट के पास पंडारा पार्क के सी ब्लाक में एक फ्लैट आवंटित किया गया. दिन बीतते गए. फिर 1977 में चुनाव हुआ था. तब इंदिरा गांधी चुनाव हार गईं थीं. इसके बाद भारत के नए प्रधानमंत्री मोरारजी देसाई ने हसीना के परिवार को शरण देने में कुछ खास रुचि नहीं दिखाई और इस तरह से उनके ऊपर धीरे-धीरे देश छोड़ने का दबाव बढ़ता चला गया. हालांकि जनवरी 1980 में इंदिरा गांधी एक बार फिर सत्ता में आ गईं और एक बार फिर से शेख हसीना के दुख के समय इंदिरा हसीना के परिवार के लिए देवदूत बनीं.
ये तो सभी जानते हैं कि वर्तमान में जो शेख हसीना पर मुसीबत आई है, उसमें पीएम नरेंद्र मोदी उनके लिए देवदूत की तरह साबित हुए हैं. मालूम हो कि भारत के वर्तमान पीएम नरेंद्र मोदी ने अपने पिछले दो कार्यकाल के दौरान बांग्लादेश के साथ संबंधों को मजबूत बनाने के लिए कई महत्वपूर्ण कदम उठाए हैं. तो दूसरी ओर बांग्लादेश में आतंकी गतिविधियों के खिलाफ मोदी सरकार ने शेख हसीना का खूब समर्थन दिया है जिसको लेकर हसीना कई बार भारत का दौरा भी कर चुकी हैं. तो वहीं हिंसा के बीच जैसे ही 5 अगस्त 2024 को हसीना ने बांग्लादेश प्रधानमंत्री पद से इस्तीफा दिया, उन्होंने भारत से बात की. तो वहीं भारत ने बहुत ही कम वक्त में उनकी ओर मदद का हाथ बढ़ाया और हेलीकॉप्टर से हिंडन एयरबेस पर उनको सुरक्षित रूप से गुप्त जगह पर उतारा. इस तरह से एक बार फिर से भारत ने हसीना का साथ दिया और पीएम मोदी उनके परिवार के लिए देवदूत की तरह साबित हुए.
-भारत एक्सप्रेस
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