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क्या ब्रिटेन की तरह भारत की चुनावी प्रक्रिया को एक दिन में समेटा जा सकता है?

हाल ही में ब्रिटेन (Britain/United Kingdom) में प्रधानमंत्री पद के लिए चुनाव हुए. 4 जुलाई को हुए चुनाव के परिणाम 24 घंटे के अंदर यानी एक ही दिन में ही आ गए. ब्रिटेन में हुए इस आम चुनाव में वहां की लेबर पार्टी (Labour Party) की जीत हुई और पार्टी नेता कीर स्टार्मर (Keir Starmer) देश के नए प्रधानमंत्री (Prime Minister) बने. हाउस ऑफ कॉमन्स (House of Commons) की 641 सीटों में से लेबर पार्टी ने रिकॉर्ड 410 सीटों पर जीत दर्ज कर करीब 14 साल बाद सत्ता में वापसी की.

एक ही चरण में आयोजित इस चुनाव और एक ही दिन में आए इसके परिणाम को देखते हुए यह सवाल जेहन में उठने लगता है कि क्या भारत में भी ऐसा हो सकता है?

चुनाव आयोग जैसी संस्था नहीं है

हालांकि, ब्रिटेन के चुनाव के कुछ अन्य दिलचस्प पहलू भी हैं, जो कि भारत (India) से अलग हैं. जैसे कि मतपत्रों (Ballot Papers) से हुए इस मतदान के लिए लोग रात के 10 बजे तक वोट कर सकते थे. वहीं वोटिंग के तुरंत बाद मतपत्र की गिनती शुरू हो जाती है और एक घंटे के अंदर ही पहला परिणाम आ जाता है.

पूरी रात चलने वाली यह गिनती अगले दिन सुबह तक जारी रहती है और करीब 9 बजे तक अधिकतर सीटों के परिमाण आ जाते हैं है. वहीं आपको यह जानकर हैरानी होगी कि ब्रिटेन में चुनाव की निगरानी के लिए चुनाव आयोग (Election Commission) जैसी कोई राष्ट्रीय संस्था भी नहीं है. यहां रिटर्निंग अधिकारी पर ही अपने निर्वाचन क्षेत्रों के लिए चुनाव कराने से लेकर परिणाम की घोषणा का सारा दारोमदार रहता है.

मतगणना के दौरान जहां उम्मीदवारों के अलावा उनके एजेंटों और पर्यवेक्षक मतगणना स्थल पर रहते हैं वहीं मीडिया भी वहां उपस्थित रहती है. हाउस ऑफ कॉमन्स लाइब्रेरी चुनाव से जुड़े डेटा का संकलन और उसका सत्यापन करती है.

भारत में चुनाव

दूसरी ओर अगर भारत की बात करें तो लोकसभा की 543 सीटों के लिए 19 अप्रैल से लेकर 1 जून तक सात चरणों में मतदान (Lok Sabha Election) हुए और वोटों की गिनती 4 जून सुबह 8 बजे से लेकर अगले दिन तक चलती रही. ऐसे में ब्रिटेन के चुनाव को देखते हुए यह सवाल लाजमी है कि क्या भारत में एक दिन में चुनाव और एक ही दिन में परिणाम की संकल्पना की जा सकती है. ऐसे में सवाल के बुनियाद में छिपे कुछ पहलुओं को जानना जरूरी हो जाता है.

(प्रतीकात्मक तस्वीर)

भारत और ब्रिटेन

तुलनात्मक रूप से दोनों देशों का आकलन करने पर हम पाते हैं कि विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्र भारत में 2024 के लोकसभा चुनाव में 97 करोड़ मतदाताओं ने अपना पंजीकरण कराया था, जबकि ब्रिटेन में हुए इस चुनाव में मतदाताओं की संख्या 4.6 करोड़ थी.

ऐसे में वोटरों की संख्या में एक बड़ा अंतर देखने को मिलता है. ब्रिटेन की जनसंख्या ही करीब 6.5 करोड़ के आसपास है. वहां की भौगालिक स्थिति भी भारत के मुकाबले काफी भिन्न है. भारत में कहीं बड़े-बड़े पहाड़, घने जंगल और मीलों तक सफर तय करने वाली नदियां हैं.

18वीं सदी में हुई औद्योगिक क्रांति ने ब्रिटेन में बड़ा बदलाव लाया और वहां की करीब 80 फीसदी आबादी ने शहरों में अपना ठिकाना बना लिया, जबकि भारत में कुल आबादी का आधे से अधिक हिस्सा आज भी गांवों में रहता है.

आजादी के बाद ही साल 1951-52 में हुआ चुनाव करीब पांच महीने तक चलता रहा, जबकि साल 1962 और साल 1989 के दौरान हुए आम चुनाव चार से 10 दिन में ही संपन्न हो गए थे. वहीं साल 1980 में चार दिनों में चुनाव की प्रक्रिया खत्म हो गई थी, जो कि इतिहास में अब तक का सबसे छोटा चुनाव था.

सुरक्षा का सवाल

भारत के चुनावों में हिंसा भी एक प्रमुख मुद्दा रहा है. पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त एसवाई कुरैशी के अनुसार और कई चरणों में संपन्न होने वाले चुनाव का एकमात्र कारण सुरक्षा है.

एसवाई कुरैशी कहते हैं, ‘स्थानीय पुलिस पर पक्षपात का आरोप लगता है, इसलिए हमें केंद्रीय सुरक्षा बलों की तैनाती करनी पड़ती है. इन सुरक्षा बलों को उनकी अन्य जिम्मेदारियों से मुक्त कर दिया जाता है और चुनावों के दौरान शांति व्यवस्था स्थापित करने के लिए उन्हें पूरे देश में भेजा जाता है. यही कारण है कि इसमें समय लगता है.’

(प्रतीकात्मक तस्वीर: IANS)

व्यवहारिक दिक्कतें

हालांकि, कुछ शोध चुनाव की इस प्रक्रिया को छोटा किए जाने के पक्ष के निष्कर्ष पर पहुंचे हैं. वजह में सत्तारूढ़ दल का प्रचार के लिए सरकारी मशीनरी का उपयोग और चुनावों के दौरान सरकारों का सामान्य कामकाज के प्रभावित होने की बात कही गई है.

मुख्य चुनाव आयुक्त राजीव कुमार के अनुसार, चुनाव के लिए तारीखों के निर्धारण में कई पहलुओं का ध्यान रखना पड़ता है. इनमें भारत के अलग-अलग क्षेत्रों की भौगोलिक स्थिति के अलावा सार्वजनिक छुट्टियों, त्योहार और परीक्षाओं जैसे अन्य कारक शामिल हैं.

अलग-अलग मौसम में देश की भौगोलिक स्थिति के आधार पर सुरक्षा बलों की गतिविधियों पर असर पड़ता है. वहीं एक साथ चुनाव कराने में सुरक्षा बलों की पर्याप्त उपलब्धता का भी सवाल है.

क्या हैं मुश्किलें

अगर एक चरण में चुनाव हो पाते तो बहुत अच्छा होता, क्योंकि महीने-डेढ़ महीने लंबे चुनाव उबाऊ और अधिक खर्चीले तो होते ही हैं, सत्तारूढ़ दलों और नेताओं के लिए उन्हें प्रभावित करना भी आसान हो जाता है, लेकिन व्यावहारिक रूप से ऐसा करने में मुश्किल यह है कि देश भौगोलिक दृष्टि से बहुत बड़ा और विविधता भरा तो है ही आबादी भी दुनिया में सबसे ज्यादा है.

वरिष्ठ पत्रकार अभिरंजन कुमार कहते हैं, ‘स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव कराने के लिहाज से चुनावों के दौरान कानून व्यवस्था बनाए रखना बहुत बड़ी चुनौती है. एक साथ पूरे देश में चुनाव कराने के लिए चुनावकर्मियों और सुरक्षा बलों का इंतजाम करना अत्यंत कठिन है. फिर भी मेरा मानना है कि सरकार और चुनाव आयोग अगर दृढ़ संकल्प दिखाएं तो मौजूदा डेढ़ महीने लंबे आम चुनावों को लगभग 15 से 20 दिनों में समेटा जा सकता है. केवल इससे भी यहां के चुनावों की गुणवत्ता में काफी सुधार आ सकता है.’

बीते मई महीने में असम के कामरूप में लोकसभा के तीसरे चरण के तहत वोट डालने के लिए नाव से जाते लोग. (फाइल फोटो: IANS)

परिस्थितियां अलग

भारत निर्वाचन आयोग से प्रकाशित ‘लीप ऑफ फेथ: जर्नी ऑफ इंडियन इलेक्शन’ नाम की किताब लिखने वाले स्वतंत्र शोधकर्ता प्रियदर्शी दत्ता कहते हैं, ‘भारत एवं ब्रिटेन का भौगालिक आयतन एवं जनसंख्या में कोई तुलना नहीं हो सकती. अगर 4.5 करोड़ मतदाता मानदंड हो तो भारत में 20 चरण में मतदान होने चाहिए थे. ब्रिटेन में कोई रिमोट (सुदूर) इलाका, ऊंचें पहाड़, गहरे जंगल, बड़ी नदियां नहीं है. पूरा देश एक बगीचा या म्यूजियम जैसा है.’

वे कहते हैं, ‘ब्रिटेन की जनसंख्या 6.5 करोड़ भारत के एक मझोले राज्य की तरह है. तमिलनाडु, कर्नाटक, आदि में एक दिन में ही चुनाव हो जाते हैं. गुजरात में भी होते हैं. आंतरिक सुरक्षा व चुनावी हिंसा भारत के कुछ राज्यों में एक मुद्दा है. इसलिए झारखंड या पश्चिम बंगाल में विधानसभा चुनाव भी कई चरणों में कराना पड़ता है.’

चुनाव प्रक्रिया की तुलना बेमानी

दत्ता ने आगे कहा, ‘कई चरणों में चुनाव होने से राष्ट्रीय स्तर के नेताओं को चुनाव प्रचार के लिए भरपूर समय मिलता है. ऐसा नहीं हैं कि अंग्रेज अति कुशल हैं और हम अकुशल हैं. अंग्रेज शासन के दौरान भारत सरकार अधिनियम, 1919 के अंतर्गत जब भारत में सीमित मतदान शुरू हुए तब भी अलग-अलग प्रदेशों में चुनाव कराने में अलग-अलग समय लगता था. बॉम्बे प्रेसिडेंसी (महाराष्ट, गुजरात, सिंध) में तीन दिन से लेकर असम में दो हफ्ते तक का समय लगता था. चुनावों की योजना बनाना भारतीय निर्वाचन आयोग के अंतर्गत आता है. भारत के लिए निर्बाध एवं शांतिपूर्ण मतदान के लिए जितना समय दिया जाना चाहिए उतना ही दिया जाता है.’

बीबीसी से जुड़े रहे वरिष्ठ पत्रकार राजेश जोशी कहते हैं, ‘ब्रिटेन या किसी पश्चिमी देश की चुनाव प्रक्रिया से भारत की तुलना बेमानी है. कई व्यवहारिक स्तरों पर इसे समझा जा सकता है. जैसे आबादी और भौगोलिक स्वरूप. हां, भारत में लंबी अवधि के चुनावी स्वरूप को छोटा किया सकता है, इसके लिए राजनीतिक स्वार्थों से ऊपर उठना होगा.’

-भारत एक्सप्रेस

विशाल तिवारी, संपादकीय सलाहकार

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