देश के बेहतरीन बल में शामिल दिल्ली पुलिस के वरिष्ठ अधिकारियों पर लग रहे आरोप महकने की साख पर लगातार कालिख पोत रहे हैं. इसे राजधानी दिल्ली में अपराध नियंत्रण और प्रशासनिक दक्षता के अनुभव की कमी कहें या नेतृत्व की उदासीनता, लेकिन हकीकत यही है कि दिल्ली पुलिस की साख लगातार गिर रही है.
बीते कुछ समय से दिल्ली पुलिस में नियुक्त आईपीएस अधिकारियों पर लगे भ्रष्टाचार के आरोप और उनके कामकाज पर उठ रहे सवालों ने पुलिस नेतृत्व पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं. हैरानी की बात यह है कि ऐसे अधिकारियों की संख्या भी कोई एक-दो नहीं बल्कि दर्जन भर पहुंच रही है. ऐसे में सवाल उठता है की कमजोर नेतृत्व के कारण क्या यह अधिकारी निरंकुश हो गए हैं ? ऐसे में दिल्ली पुलिस के निचले काडर में तैनात कर्मचारियों से बेहतर काम कराने की उम्मीद कैसे की जा सकती है?
इसी महीने पश्चिमी जिला में दर्ज अवैध उगाही के एक मुकदमे के मुख्य सूत्रधारों को बरी कराने की कवायद भी सामने आई. खास बात यह है कि गुनाह के जिन आरोपियों को आजाद करने की कोशिश की जा रही है, उन्होंने इस घटना को अंजाम देने के लिए मकोका में बंद कुख्यात अपराधियों को चुना था. आरोप है कि पुलिस उपायुक्त पद पर तैनात एक आईपीएस अधिकारी ने इस मेहरबानी की एवज में लाखों रुपए वसूले हैं.
इतना ही नहीं फिल्म अभिनेता सतीश कौशिक की मौत के बाद उठे सवालों को लेकर भी विशेष पुलिस आयुक्त और पुलिस उपायुक्त के पद पर तैनात अधिकारियों की भूमिका पर प्रश्न चिन्ह लग रहा है. आरोप है कि इन अधिकारियों ने इस मामले में मोटे लेन-देन के कारण घटना की जानकारी मिलने के बावजूद, समय पर कार्यवाही नहीं की और सबूत नष्ट करने में मदद की.
बीते साल दिल्ली पुलिस में संयुक्त पुलिस आयुक्त के पद पर तैनात एक आईपीएस अधिकारी पर अवैध उगाही के आरोपियों को बरी कराने का आरोप लगा था. इससे पहले इस अधिकारी को फार्म हाउस खरीदने के नाम पर एक कारोबारी से करीब एक करोड रूपए की रिश्वत मांगने के तथाकथित आरोप में जिला पुलिस उपायुक्त के पद से भी हटा दिया गया था. हाल ही में यह आरोप भी सामने आया कि इस अधिकारी ने एक अन्य वरिष्ठ अधिकारी की काली कमाई एक प्रोपर्टी डीलर के पास इन्वेस्ट कराई थी. जिसकी मौत के बाद इस पैसे को लेकर विवाद की चर्चा काफी गरम हुई थी.
हाल ही में तिहाड़ जेल में बंद शातिर ठग सुकेश चंद्रशेखर से प्रोटेक्शन मनी वसूलने के तथाकथित आरोप में केंद्रीय कारागार के पुलिस महानिदेशक को भी केंद्र सरकार ने निलंबित कर दिया था. हालांकि वित्तीय अपराधों में तिहाड़ जेल में बंद रसूखदार कारोबारियों से अवैध उगाही के आरोप लगातार लगते रहे हैं. लेकिन यह पहला मामला था कि ऐसे आरोप पुलिस महानिदेशक के पद पर तैनात किसी आईपीएस अधिकारी पर लगे थे.
इनके अलावा यमुना से सटे एक जिले में पुलिस उपायुक्त के पद पर तैनात रही एक आईपीएस अधिकारी पर सरकारी जमीन पर भी अवैध निर्माण कराने के तथाकथित आरोप सामने आए थे. सूत्रों की माने तो इस इलाके की कई कालोनियों को तो उस अधिकारी के नाम से पहचाना जाने लगा था. शायद यही कारण रहा इस अधिकारी के कार्यकाल में यमुना किनारे धड़ल्ले से अवैध निर्माण का दौर चला. जिसके चलते रोहिंग्या घुसपैठियों ने सरकारी जमीन पर कब्जा कर निर्माण करने में भी कोई कसर नहीं छोड़ी.
पुलिस सूत्रों की माने तो एक जिले में पुलिस उपायुक्त के पद पर तैनात रही महिला अधिकारी ने कमीशन वसूलने के चक्कर में जिलों के कई थानों को लाक्षागृह बनाने में कसर नहीं छोड़ी। चर्चा है कि मूलभूत सुविधाओं के लिए मशक्कत करने वाले कई थाना भवनों में लकड़ी के इतने काम कराए गए कि खुद वहां तैनात पुलिसकर्मी भी कहने लगे कि लाक्षागृह बन रहे हैं.
हाल ही में आला पुलिस अधिकारी की नाराजगी के बाद अवैध कैसिनों से वसूली गई रकम में हेराफेरी करने के आरोपी पुलिस वालों को भी उत्तर पूर्वी जिला पुलिस ने क्लीन चिट दे दी. खास बात यह है कि इस मामले की जांच पुलिस मुख्यालय की नाराजगी के बाद शुरू हुई थी. मगर संयुक्त पुलिस आयुक्त के पद पर तैनात एक आईपीएस अधिकारी ने आरोपी पुलिसवालों की कार्यवाही के लिए उनकी पीठ ही थपथपा दी. ऐसे में पहले ही चर्चा शुरू हो गई थी कि जाँच के नाम पर खानापूर्ति की जाएगी.
बीते महीने दिल्ली पुलिस में विशेष पुलिस आयुक्त के पद पर तैनात एक अधिकारी पर पुलिस प्रशिक्षण केंद्र में वित्तीय अनियमितताओं के आरोपों की जांच नहीं कराने का आरोप लगा था. खास बात यह है कि जब यह अधिकारी खुद पुलिस प्रशिक्षण केंद्र में तैनात थे. तो इन पर भी उस समय लाखों रुपए की कथित वित्तीय अनियमितताओं के आरोप चर्चा का विषय बन गए थे.
बीते महीने पुलिस उपायुक्त के पद पर तैनात एक आईपीएस अधिकारी पर भी अंतरराष्ट्रीय सट्टेबाज को रिहा करने का आरोप लगा था. इस मामले में दिल्ली पुलिस की साइबर सेल एक आला अधिकारी की भूमिका पर भी सवाल उठे. ख़ास बात यह है कि इस मामले में उस पुलिस उपायुक्त के साथ एक संयुक्त पुलिस आयुक्त को भी कड़ी फटकार पड़ी. लेकिन ऐसी कार्रवाई नहीं हुई, जो नज़ीर बन सके.
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