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तो क्या पिघलने लगी है देवेंद्र फडणवीस और उद्धव ठाकरे के रिश्तों पर जमी बर्फ, दोनों नेताओं की मुलाकात के मायने क्या हैं?

सही ही कहावत है कि राजनीति में कब क्या हो जाए, कोई नहीं जानता. थोड़ी सी हलचल होते ही अटकलों और चर्चाओं का बाजार गर्म हो जाता है. ऐसा ही एक मामला महाराष्ट्र से सामने आया है, जहां मंगलवार को शिवसेना यूबीटी के प्रमुख उद्धव ठाकरे, प्रदेश के सीएम देवेंद्र फडणवीस से मुलाकात करने पहुंच गए.

विधानसभा चुनाव के बाद पहली मुलाकात

महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव के बाद दोनों नेताओं की पहली बार मुलाकात हुई. वैसे विरोधी नेताओं के बीच मुलाकात कोई बड़ी बात नहीं है, लेकिन उद्धव ठाकरे जिस तरह से अचानक देवेंद्र फडणवीस से मिलने पहुंचे, वो वाकई में हैरान करने वाली है. ऐसा इसलिए, क्योंकि पिछले ढाई साल से दोनों एक दूसरे को आंख उठाकर देखना तक पसंद नहीं करते थे. इतना ही नहीं दोनों ही नेता एक दूसरे का जिस तरह से विरोध करते थे और जिस तरह एक-दूसरे पर हमला करते थे, उससे तो संदेश यही जाता रहा कि भविष्य में दोनों के रिश्तों में आई दरार शायद ही खत्म हो.

शपथ ग्रहण समारोह में नहीं गये थे उद्धव

देवेंद्र फडणवीस की ताजपोशी में न्योता मिलने के बावजूद उद्धव ठाकरे शामिल नहीं हुए. हां, चुनाव के बाद एक बात जरूर देखने को मिली और वो यह कि दोनों में से किसी ने भी एक दूसरे पर कोई व्यक्तिगत हमला नहीं किया. कभी दोस्त रहे दोनों नेताओं के बीच इस तरह तल्खी आ जाएगी, इसकी कल्पना शायद ही किसी ने की होगी, लेकिन अंत भला तो सब भला. दोनों नेताओं की ये मुलाकात न सिर्फ प्रदेश की सियासत के लिए टर्निंग प्वाइंट साबित होने वाली है, बल्कि आने वाले दिनों में इस मुलाकात का असर महायुति से लेकर महाविकास अघाड़ी तक पर देखने को मिलेगा.

मुलाकात हुई, क्या बात हुई?

इन दिनों नागपुर में महाराष्ट्र विधानसभा का शीतकालीन सत्र चल रहा है. विधानसभा सत्र में हिस्सा लेने के लिए तमाम दलों के विधायक नागपुर में हैं. इसी दौरान उद्धव ठाकरे सीएम फडणवीस से मुलाकात करने पहुंच गए. उद्धव के साथ उनके बेटे आदित्य ठाकरे, वरुण सरदेसाई और अनिल परब भी मौजूद रहे. दोनों के बीच करीब 15 मिनट तक ये मुलाकात चली.

मुलाकात के बाद बाहर आए उद्धव ठाकरे ने कहा कि उन्होंने देवेंद्र फडणवीस को चुनाव में जीत और सीएम बनने की बधाई दी. साथ ही विधानसभा में नेता विपक्ष को लेकर चर्चा हुई. इसके बाद उद्धव ने विधानसभा अध्यक्ष राहुल नार्वेकर से भी मुलाकात की. अब ये उद्धव भी जानते हैं कि महाविकास अघाड़ी में उनकी शिवसेना यूबीटी भले ही 20 विधायकों के साथ सबसे बड़ी पार्टी है, बावजूद इसके नेता विपक्ष की कुर्सी मिल पाना मुश्किल है, क्योंकि इस कुर्सी के लिए कम से कम 29 विधायक चाहिए, जो उनके पास नहीं हैं.

ये मुलाकात एक बहाना है

हिंदी फिल्म ‘खानदान’ का एक गाना है, ये मुलाकात एक बहाना है, प्यार का सिलसिला पुराना है. महाराष्ट्र की राजनीति में मंगलवार को ऐसी ही दो बड़े नेताओं की मुलाकात नेता विपक्ष की कुर्सी के बहाने हुई, जिसने महाराष्ट्र की सियासत में हलचल पैदा कर दी. ये मुलाकात कभी दोस्त रहे दो नेताओं देवेंद्र फडणवीस और उद्धव ठाकरे की थी.

मुलाकात के दौरान जिस तरह की गर्मजोशी देखने को मिली, उससे ये अंदाजा कतई नहीं लगाया जा सकता है कि दोनों इतने दिनों के बाद मिले हों, या दोनों के बीच कभी कोई अनबन भी हुआ करती थी. वहीं उद्धव हैं, जिन्हें फडणवीस से मिलना और बात करना गंवारा नहीं था. 5 साल पहले उद्धव, देवेंद्र फडणवीस के लिए ‘मातोश्री’ के दरवाजे बंद करवा दिए थे. लेकिन आज की मुलाकात वाली तस्वीर बहुत कुछ कह रही थी. सियासी गलियारे इस मुलाकात को दोनों के रिश्तों पर जमी बर्फ को पिघलाने की कोशिश के तौर पर देखा जा रहा है.

क्या ‘घर वापसी’ करेंगे उद्धव?

इस मुलाकात के बाद तो कयास उद्धव ठाकरे की ‘घर वापसी’ को लेकर भी लगाए जा रहे हैं. हालांकि उद्धव के लिए ये इतना आसान भी रहने वाला नहीं है, क्योंकि बीजेपी से रिश्ता तोड़ने के बाद से गोदावरी और कृष्णा नदी में काफी पानी बह चुका है. फडणवीस से मुलाकात के दौरान उद्धव को बीते 5 साल के दौरान के घटनाक्रम याद आ रहे होंगे, क्योंकि शिवसेना यूबीटी के लिए काफी कुछ बदल चुका है. कभी साथ रहे एकनाथ शिंदे उनकी नाक के नीचे से पार्टी छीनकर ले गए. बीजेपी के साथ कहां उद्धव सत्ता में रहा करते थे. उनको पूरा सम्मान मिलता था.

कट्टर हिंदुत्व की राजनीति उद्धव की यूएसपी थी, लेकिन सत्ता के लिए महाअघाड़ी के साथ जाकर उन्होंने एक झटके में सब कुछ गंवा दिया. MVA में उन्हें न वो सम्मान मिल रहा है, ना ही उनकी कट्टर हिंदुत्व वाली राजनीति रही. इसका नतीजा ये निकला कि उनके कोर वोटर्स भी उनसे छिटक गए और एकनाथ शिंदे के साथ शिफ्ट हो गए. और तो और उनकी पार्टी को अब विपक्ष में बैठना पड़ रहा है. उद्धव भले ही तत्काल कोई बड़ा कदम नहीं उठाएं, लेकिन इस मुलाकात से दोनों के बीच जो कड़वाहट थी, वो जरूर कम हुई है. वैसे भी राजनीति में जो होता है, वो दिखता नहीं और जो दिखता है वो असल में होता नहीं है.

मुलाकात के सियासी संदेश

देवेंद्र फडणवीस से उद्धव की मुलाकात का असर आने वाले दिनों में प्रदेश की सियासत पर खासकर महायुति और महागठबंधन पर देखने को मिलेगा. महायुति की बात की जाए, तो प्रदेश में भले ही महायुति की सरकार बन गई हो, भले ही एकनाथ शिंदे की पार्टी शिवसेना और अजित पवार की NCP सरकार में शामिल हो, लेकिन गठबंधन में ऑल इज वेल नजर नहीं आ रहा.

सीएम नहीं बनाए जाने और मलाईदार विभाग नहीं मिलने की टीस शिंदे के चेहरे पर दिखाई दे रही है, तो वहीं खबर है कि अजित पवार भी खुश नहीं हैं और वो विधानसभा भी नहीं जा रहे हैं. ऐसे में उद्धव और फडणवीस के एक फ्रेम में नजर आने के बाद हो सकता है, दोनों नेता अपने स्टैंड में बदलाव लाएं, क्योंकि इस मुलाकात के बाद उनके मन सबकुछ खत्म हो जाने का डर सताने लगा होगा.

वीर सावरकर को भारत रत्न देने की मांग

उधर फडणवीस से मिलने के बाद उद्धव ने एक प्रेस कॉन्फ्रेंस की, जिसमें उन्होंने न सिर्फ वीर सावरकर को भारत रत्न देने की मांग उठाई, लगे हाथ कांग्रेस खासकर राहुल गांधी को ये संदेश भी दे दिया कि उन्हें सावरकर को लेकर रोना बंद कर देना चाहिए. हालांकि उन्होंने बीजेपी को भी नेहरू-नेहरू करने से बचने की नसीहत दी. लेकिन सावरकर को भारत रत्न देने की मांग कांग्रेस को रास नहीं आई.


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महाराष्ट्र कांग्रेस के प्रमुख नाना पटोले ने साफ कर दिया कि यह शिवसेना का मत हो सकता है. साफ है पहले फडणवीस मुलाकात और फिर सावरकर पर कांग्रेस को फटकार, बहुत कुछ इशारा कर रहा है. अब ये मुलाकात महाराष्ट्र की राजनीति में क्या गुल खिलाती है, ये तो आने वाले दिनों में ही पता चलेगा.

-भारत एक्सप्रेस

दीपक मिश्रा

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