सरकार द्वारा किए गए नीतिगत बदलावों के कारण भारत के बैंकिंग सिस्टम में बड़ा सुधार देखने को मिला है और बीते 6 वर्षों से अधिक समय में शेड्यूल्ड कमर्शियल बैंकों के ग्रॉस एनपीए में 8.5 प्रतिशत से ज्यादा की गिरावट आई है. वित्त मंत्रालय द्वारा दी गई जानकारी के अनुसार, देश के शेड्यूल्ड कमर्शियल बैंकों का ग्रॉस नॉन-परफॉर्मिंग एसेट्स (एनपीए) जून 2024 तक कम होकर 2.67 प्रतिशत रह गया है, जो कि मार्च 2018 तक 11.18 प्रतिशत था.
मंत्रालय द्वारा सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर की गई एक पोस्ट में लिखा गया कि एसेट्स क्वालिटी में काफी सुधार आया है और इस कारण प्रोविजनल कवरेज रेश्यो (पीसीआर) जून 2024 तक सुधरकर 92.52 प्रतिशत हो गया है, जो कि मार्च 2015 में 49.51 प्रतिशत था.
एनपीए वह लोन है जिसने बैंकों के लिए एक निश्चित अवधि के लिए मूल राशि पर आय या ब्याज पैदा नहीं की है. अगर लोन लेने वाले व्यक्ति ने कम से कम 90 दिनों तक ब्याज या मूल राशि का भुगतान नहीं किया है, तो बैंक द्वारा मूल राशि को एनपीए घोषित कर दिया जाता है. प्रोविजनल कवरेज रेश्यो (PCR) वह रेश्यो या राशि होती है, जो कि बैंक द्वारा खराब लोन से हुए नुकसान को रिकवर करने के लिए रखी जाती है.
एनपीए कम होने के साथ शेड्यूल्ड कमर्शियल बैंकों के मुनाफे में भी बड़ा उछाल देखने को मिला है. वित्त वर्ष 2023-24 में सभी शेड्यूल्ड कमर्शियल बैंकों ने मिलकर 23.50 लाख करोड़ रुपये का मुनाफा दर्ज किया था, जो कि वित्त वर्ष 2022-23 में 22.63 लाख करोड़ रुपये था.
इसके अलावा सरकारी बैंकों के ग्रॉस एनपीए में भी कमी देखने को मिली है और यह सितंबर 2024 में यह घटकर 3.12 प्रतिशत हो गया है, जो कि मार्च 2015 में 4.97 प्रतिशत और मार्च 2018 में अपने पीक पर 14.58 प्रतिशत था. भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा हाल में किए गए स्ट्रेस टेस्ट के परिणाम से पता चला है कि शेड्यूल्ड कमर्शियल बैंकों में पर्याप्त पूंजी हैं और सभी पक्षकार किसी भी अतिरिक्त पूंजी निवेश के अभाव में भी बड़े आर्थिक झटकों को सहन करने में सक्षम हैं.
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-भारत एक्सप्रेस
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