Self Employment: प्राइमस पार्टनर्स के मुताबिक, भारत के सहकारी क्षेत्र में साल 2030 तक 5.5 करोड़ प्रत्यक्ष रोजगार और 5.6 करोड़ स्वरोजगार के अवसर पैदा करने की क्षमता है. इस संबंध में प्रबंधन परामर्श फर्म प्राइमस पार्टनर्स ने गुरुवार (28 नवंबर) को सहकारी क्षेत्र पर एक रिपोर्ट जारी की. रिपोर्ट में इस बात पर भी जोर दिया गया है कि भारत का सहकारी नेटवर्क, जो विश्व में सबसे बड़ा है, वैश्विक स्तर पर 30 लाख सहकारी समितियों का लगभग 30 प्रतिशत प्रतिनिधित्व करता है.
रिपोर्ट में इस बात का भी जिक्र किया गया है कि भारत 2030 तक 5 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर की अर्थव्यवस्था बनने के अपने महत्वाकांक्षी लक्ष्य की ओर आगे बढ़ रहा है.
प्राइमस पार्टनर्स ने कहा है कि सहकारिता, भारतीय अर्थव्यवस्था का सिर्फ एक हिस्सा नहीं हैं, बल्कि प्रगति और समृद्धि को बढ़ावा देने वाला एक पावरफुल इंजन है.
‘भारतीय सहकारी आंदोलन’ की रिपोर्ट का हवाला देते हुए कहा गया है कि 2016-17 तक अर्थव्यवस्था में कुल रोजगार में सहकारी समितियों का योगदान 13.3 प्रतिशत था, जो 2007-08 के 1.2 मिलियन रोजगार से बढ़कर 2016-17 में 5.8 मिलियन हो जाने की उल्लेखनीय वृद्धि को दर्शाता है जो कि 18.9 प्रतिशत की चौंका देने वाली वार्षिक वृद्धि है.
सलाहकार ने कहा, “सहकारी समितियों में 2030 तक 55 मिलियन प्रत्यक्ष रोजगार और 56 मिलियन स्वरोजगार के अवसर पैदा करने की क्षमता है, जिससे रोजगार सृजनकर्ता के रूप में उनकी भूमिका और भी बढ़ जाएगी.”
रोजगार के अलावा, प्राइमस पार्टनर्स ने यह भी कहा कि सहकारी समितियां स्वरोजगार के अवसर पैदा करने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही हैं.
रिपोर्ट में कहा गया है कि साल 2006-07 में 15.47 मिलियन अवसरों से बढ़कर 2018 तक 30 मिलियन तक पहुंच जाने के साथ, सहकारिताएं स्वरोजगार की आधारशिला हैं. 5-6 प्रतिशत की वृद्धि दर बनाए रखते हुए, यह क्षेत्र 2030 तक 56 मिलियन स्वरोजगार अवसर पैदा कर सकता है.”
सलाहकार ने कहा कि सकल घरेलू उत्पाद पर इनका प्रभाव भी उतना ही आकर्षक है, और साल 2030 तक इनका संभावित योगदान 3-5 प्रतिशत तक हो सकता है. साथ ही प्रत्यक्ष और स्वरोजगार दोनों को ध्यान में रखते हुए यह 10 प्रतिशत से अधिक हो सकता है.
रिपोर्ट में कहा गया है, “भारत में लगभग 8.5 लाख सहकारी समितियों के विशाल नेटवर्क, जिनकी सदस्य संख्या 29 करोड़ है, की स्वायत्तता, आत्मनिर्भरता और लोकतांत्रिक प्रबंधन सुनिश्चित करने के लिए उनकी वित्त पोषण संबंधी आवश्यकताओं को पूरा करना और उन्हें आत्मनिर्भर बनाने में सक्षम बनाना आवश्यक है.”
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