आदर्श आचार संहिता (Model Code of Conduct) राष्ट्रीय और राज्य स्तर के अलावा अन्य चुनावों की घोषणा के साथ लागू होने के वाला नियमों का एक सेट होता है, जिसके तहत पार्टी और उसके उम्मीदवारों से व्यवहार करने की उम्मीद की जाती है. चुनाव आयोग (Election Commission) द्वारा बीते 16 मार्च को लोकसभा चुनाव कार्यक्रम की घोषणा के बाद देश में आदर्श आचार संहिता लागू हो गई है, जो चुनाव प्रक्रिया के खत्म होने तक यानी मतगणना वाले दिन 4 जून तक लागू रहेगी.
स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव सुनिश्चित करने के अपने संवैधानिक अधिकार के तहत चुनाव आयोग ने आदर्श आचार संहिता विकसित की है, जिसका उद्देश्य सभी दलों और उम्मीदवारों के लिए ‘समान अवसर’ तैयार करना होता है.
आचार संहिता एक सर्वसम्मत दस्तावेज है. इसके तहत पार्टियों और उम्मीदवारों को अपने विरोधियों के प्रति सम्मान दिखाना चाहिए, उनकी नीतियों और कार्यक्रमों की रचनात्मक आलोचना करनी चाहिए और कीचड़ उछालने और व्यक्तिगत हमलों का सहारा नहीं लेना चाहिए.
आचार संहिता लागू होने के बाद केंद्र और राज्य सरकारों के मंत्रियों को चुनाव कार्य के लिए आधिकारिक मशीनरी का उपयोग नहीं करने के अलावा चुनाव प्रचार में आधिकारिक दौरों को शामिल नहीं करना चाहिए. पब्लिक फंड का उपयोग करके मौजूदा सरकार के कार्यों की प्रशंसा करने वाले विज्ञापनों से बचना चाहिए.
इस दौरान सरकार किसी वित्तीय अनुदान की घोषणा नहीं कर सकती, सड़कों या अन्य सुविधाओं के निर्माण का वादा नहीं कर सकती और सरकारी या सार्वजनिक उपक्रम में कोई एड-हॉक नियुक्ति नहीं कर सकती.
इसके लिए मंत्री मतदाता या उम्मीदवार की हैसियत के अलावा किसी भी मतदान केंद्र या मतगणना केंद्र में प्रवेश नहीं कर सकते.
चुनाव के लिए आचार संहिता अपनाने वाला पहला राज्य केरल था. साल 1960 में केरल में विधानसभा चुनावों से पहले प्रशासन ने एक मसौदा संहिता तैयार की, जिसमें चुनाव प्रचार के महत्वपूर्ण पहलुओं जैसे जुलूस, राजनीतिक रैलियां और भाषण आदि को लेकर कुछ नियम तय किए गए थे.
चुनाव आयोग के अनुसार, ‘ऐतिहासिक रूप से राजनीतिक दलों के लिए एक आदर्श आचार संहिता का विचार देने का श्रेय केरल राज्य को जाना चाहिए, जिसने पहली बार फरवरी 1960 में राज्य विधानसभा चुनाव के दौरान राजनीतिक दलों के लिए एक आचार संहिता लागू की थी.’
उस जमाने में यह प्रयोग सफल रहा, जिसके बाद भारतीय चुनाव आयोग ने केरल के उदाहरण का अनुकरण करने और 1962 के लोकसभा चुनावों के लिए सभी मान्यता प्राप्त दलों और राज्य सरकारों के बीच मसौदा संहिता प्रसारित करने का निर्णय लिया. हालांकि इसे तुरंत लागू नहीं किया जा सका.
साल 1974 में मध्यावधि लोकसभा चुनावों से ठीक पहले चुनाव आयोग ने एक औपचारिक आदर्श आचार संहिता को लागू किया और इसके कार्यान्वयन की निगरानी के लिए जिला स्तर पर नौकरशाहों को नियुक्त किया. यह संहिता 1977 के संसदीय चुनावों के दौरान भी प्रसारित की गई थी. इस समय तक आचार संहिता का उद्देश्य केवल राजनीतिक दलों और उम्मीदवारों के आचरण से संबंधित था.
इंडियन एक्सप्रेस के अनुसार, इसके बाद 12 सितंबर, 1979 को सभी राजनीतिक दलों की एक बैठक में चुनाव आयोग को सत्ताधारी पार्टियों द्वारा आधिकारिक मशीनरी के दुरुपयोग से अवगत कराया गया. आयोग को बताया गया कि सत्तारूढ़ दलों ने सार्वजनिक स्थानों पर एकाधिकार कर लिया है, जिससे दूसरों के लिए बैठकें करना मुश्किल हो गया है. मतदाताओं को प्रभावित करने के लिए सरकारी खजाने की कीमत पर विज्ञापन प्रकाशित करने वाली पार्टी के भी उदाहरण थे. इस बैठक में राजनीतिक दलों ने चुनाव आयोग से संहिता में बदलाव करने का आग्रह किया था.
राजनीतिक दलों की मांगों को ध्यान में रखते हुए चुनाव आयोग ने 1979 के लोकसभा चुनावों से ठीक पहले 7 भागों वाली एक संशोधित आचार संहिता लागू की, जिसमें एक भाग सत्ताधारी पार्टी को समर्पित था कि चुनाव की घोषणा होने के बाद वह क्या कर सकती है और क्या नहीं. आचार संहिता बाद में निष्पक्ष और स्वतंत्र चुनाव कराने के एक अभिन्न अंग के रूप में विकसित है.
इसके बाद आदर्श आचार संहिता को कई मौकों पर संशोधित किया गया है. आखिरी बार ऐसा 2014 में हुआ था, जब आयोग ने सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों के अनुसार घोषणा-पत्र पर भाग VIII पेश किया था. भाग-1 उम्मीदवारों और राजनीतिक दलों से अपेक्षित अच्छे व्यवहार के सामान्य सिद्धांतों से संबंधित है. भाग-2 और 3 सार्वजनिक बैठकों और जुलूसों पर केंद्रित है. भाग-4 और 5 में बताया गया है कि राजनीतिक दलों और उम्मीदवारों को मतदान के दिन और मतदान केंद्रों पर कैसा व्यवहार करना चाहिए.
आदर्श आचार संहिता के तहत किसी को दंड देने का अधिकार नहीं है. फिर भी इसके भीतर के विशिष्ट प्रावधानों को अन्य कानूनों में संबंधित खंडों के माध्यम से लागू किया जा सकता है, जिनमें 1860 का भारतीय दंड संहिता, 1973 का आपराधिक प्रक्रिया संहिता और 1951 का लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम शामिल है. इसके अलावा चुनाव आयोग के पास 1968 के चुनाव चिह्न (आरक्षण और आवंटन) आदेश के पैराग्राफ 16ए के तहत किसी पार्टी की मान्यता को निलंबित करने या वापस लेने का अधिकार होता है.
-भारत एक्सप्रेस
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