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क्या आप जानते हैं सौरभ शुक्ला की पहचान सिर्फ अभिनय से ही नहीं है

आज 5 मार्च को हिंदी सिनेमा के दिग्गज कलाकार सौरभ शुक्ला (Saurabh Shukla) का जन्मदिन है. अक्सर जब उनकी बात होती है, तब उनकी प्रतिभा को अभिनेता और कॉमेडियन के ही बतौर ही सीमित कर दिया जाता है. हालांकि उनके काम का दायरा इससे कहीं बड़ा है. अभिनेता होने के साथ ही ​वह​ एक मंझे हुए लेखक भी हैं और उनकी लेखनी का जादू कई फिल्मों में देखने को भी मिला है.

लगभग 40 साल के अपने दमदार करिअर में उन्होंने न सिर्फ अभिनय की दुनिया में छाप छोड़ी, बल्कि तमाम सीरियलों के साथ फिल्मों में भी अपनी लेखनी का जलवा बिखेरा. फिल्मों की पटकथा (Screenplay) लिखने के अलावा उन्होंने निर्देशन में भी हाथ आजमाया है.

अक्सर लोग उनकी पहचान साल 1998 में आई फिल्म ‘सत्या’ के गैंगस्टर ‘कल्लू मामा’ के किरदार से करते हैं. ऐसा हो भी क्यों न, मनोज बाजपेयी के ‘भीखू म्हात्रे’ के किरदार के बाद फिल्म में उनका किरदार अन्य कलाकारों पर भारी पड़ा था.

‘सत्या’ में अभिनय के साथ इसकी पटकथा भी लिखी

फिल्मकार राम गोपाल वर्मा के 1998 में आई ‘सत्या’ एक हाहाकारी फिल्म साबित हुई थी, इस फिल्म ने न सिर्फ तमाम कलाकारों को पहचान दी, बल्कि यह कुछ लोगों के फिल्मी करिअर में मील का पत्थर भी है.

सत्या ने फिल्मकार अनुराग कश्यप को बॉलीवुड में ब्रेक भी दिया था. इस फिल्म की पटकथा उन्होंने सौरभ शुक्ला के साथ लिखी थी. ऐसी खबरें हैं कि अनुराग फिल्म की कहानी लिख रहे थे, लेकिन रामगोपाल वर्मा को एक अनुभवी लेखक की जरूरत महसूस हुई और उनकी खोज सौरभ शुक्ला तक आकर खत्म हुई.

फिल्म ‘बर्फी’ में सौरभ शुक्ला.

 

शुरुआत में सौरभ फिल्म के साथ जुड़ने से झिझक रहे थे, हालांकि फिल्म की कहानी सुनने के बाद वह इसके प्रभाव में ‘उलझ’ से गए और उन्होंने वर्मा का प्रस्ताव प्रस्ताव स्वीकार कर लिया.

इन फिल्मों में चला कलम का जादू

सौरभ शुक्ला ने दिल पे मत ले यार (2000), रघु रोमियो (2003), कलकत्ता मेल (2003), मुंबई एक्सप्रेस (2005), सलाम ए इश्क: अ ट्रिब्यूट टू लव (2007), मिथ्या (2008), एसिड फैक्टरी (2009), उट पटांग (2011), फैटसो (2012) जैसी फिल्मों का पटकथा लिखी है.

इसके अलावा मुद्दा: द इश्यू (2003), चेहरा (2005), रात गई बात गई (2009), पप्पू कांट डांस साला (2011), आई ऐम 24 (2012) जैसी फिल्मों का निर्देशन करने के साथ वह इनके पटकथा लेखक भी रहे हैं. हाल ही में उनके निर्देशन में बनी फिल्म ‘ड्राई डे’ आई, जो ओटीटी प्लेटफॉर्म अमेजॉन प्राइम पर दिसंबर 2023 में रिलीज हुई थी. इस फिल्म में जितेंद्र कुमार, श्रिया पिलगांवकर और अन्नू कपूर मुख्य भूमिका में थे.

छोटे पर्दे यानी टीवी की बात करें तो यहां भी अभिनय के अलावा उन्होंने 1997-98 में जी टीवी पर प्रसारित सीरियल ‘9 मालाबार हिल’ की पटकथा लिखी थी. इसमें उन्होंने अभिनय भी किया था.

किरदार जिनसे होती है, फिल्मों की पहचान

सौरभ शुक्ला अपनी कॉमिक टाइमिंग के लिए जाने जाते हैं. ‘सत्या’ के अलावा उन्होंने ऐसे कई किरदारों को निभाया है, जिनसे अब उन फिल्मों की पहचान होती है. ऐसा ही एक किरदार 2013 में आई कोर्टरूम ड्रामा फिल्म ‘जॉली एलएलबी’ में था. इस फिल्म में वह जज सुंदर लाल त्रिपाठी की भूमिका में थे.

फिल्म ‘जॉली एलएलबी’ में जज के रूप में सौरभ शुक्ला द्वारा बोले गए तमाम डायलॉग का इस्तेमाल मीम के रूप में होता है.

 

यह किरदार इतना प्रसिद्ध हुआ कि इसके तमाम सारे मीम आज भी सोशल मीडिया पर साझा किए जाते हैं. इसके अलावा इसमें उनके द्वारा बोले गए तमाम डायलॉग भी काफी फेमस हुए थे. जैसे- ले जाओ इसे, इससे पहले मैं इसे मुर्गा बना दूं यहां पर… और ये निरुपा रॉय की एक्टिंग मेरे सामने करने की जरूरत नहीं है… आदि.

इसके अलावा 2012 में आई फिल्म ‘बर्फी’ में सीधे-साधे पुलिस इंस्पेक्टर सुधांशु दत्ता के उनके किरदार को भी काफी सराहा गया था. फिल्मी दुनिया में अपने दमदार अभिनय और पटकथा लेखक के रूप में अपने 40 साल के करिअर में उन्हें सिर्फ एक राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार मिला है. साल 2014 में फिल्म ‘जॉली एलएलबी’ के लिए उन्हें बेस्ट सपोर्टिंग एक्टर का राष्ट्रीय पुरस्कार मिला था.

तहकीकात का गोपी तो याद ही होगा

दूरदर्शन पर साल 1994 में एक जासूसी ​सीरियल प्रसारित हुआ था ‘तहकीकात’, इसमें सौरभ शुक्ला ने गोपी नाम का किरदार निभाया था. देव आनंद के अभिनेता भाई विजय आनंद ने इसमें डिटेक्टिव सैम डिसिल्वा का किरदार निभाया था और सौरभ उनके असिस्टेंट गोपी बने थे.

इसका निर्देशन विजय आनंद के अलावा, शेखर कपूर और करण राजदान ने दिया है. ‘सत्या’ के गैंगस्टर ‘कल्लू मामा’ के किरदार से पहले गोपी के रूप में सौरभ का किरदार घर-घर में चर्चित हुआ था.

गोरखपुर में हुआ था जन्म

सौरभ शुक्ला का जन्म 5 मार्च 1963 को उत्तर प्रदेश के गोरखपुर शहर में हुआ था, हालांकि जब वे दो साल के थे तब ही उनका परिवार गोरखपुर से दिल्ली शिफ्ट हो गया था. उनकी मां जोगमाया शुक्ला भारत की पहली महिला तबला वादक थीं और पिता शत्रुघ्न शुक्ला आगरा घराने के गायक थे.

अपनी स्कूली शिक्षा पूरी करने के बाद उन्होंने दिल्ली के एसजीटीबी खालसा कॉलेज से ग्रेजुएट की उपाधि प्राप्त की थी. उनके पेशेवर करिअर की शुरुआत 1984 में थियेटर में प्रवेश के साथ हुई थी. साल 1994 में शेखर कपूर के निर्देशन में बनी फिल्म ‘बैंडिट क्वीन’ से उन्होंने फिल्मी दुनिया में कदम रखा था. इस फिल्म में उन्होंने कैलाश का किरदार निभाया था.

-भारत एक्सप्रेस

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