(अमृत तिवारी)
तुम्हारी फाइलों में गांव का मौसम गुलाबी है,
मगर ये आंकड़े झूठे हैं, ये दावे किताबी हैं.
क्यों, हिल गए ना? आज के राग दरबारी काल में जब ऐसी पंक्ति पढ़ने को मिलेगी तो दिमाग चकराना लाजमी है. यही नहीं, कुछ और लाइनें ऐसी हैं, जिन्हें पढ़ने के बाद हो सकता है आप शीर्षासन करने पर भी मजबूर हो जाएं. मसलन, इन पंक्तियों को ही ले लीजिए.
“काजू भुने हैं प्लेट में, व्हिस्की गिलास में
उतरा है राम राज्य, विधायक निवास में.”
इसे पढ़ने के बाद दावे से कहा जा सकता है कि आपके भीतर एक बेचैनी सी पैदा हो चुकी होगी. इससे पहले कि इनके लेखक का जिक्र यहां फरमाया जाए. बेहतर होगा कि बेचैनी को थोड़ा और लेवल-अप किया जाए. तभी ऐसी धक से लगने वाली लाइनों के लेखक की शख्सियत जाना जा सकता है. मसलन,
“एक जनसेवक को दुनिया में अदम क्या चाहिए
चार छह चमचे रहें, माइक रहे, माला रहे.”
ऐसी खूंखार और बेलाग बातें लिखने वाले और सत्ता से हमेशा मुठभेड़ करने वाले लेखक का नाम अदम गोंडवी है. वैचारिक तौर पर शोषित और पीड़ितों की मुखर आवाज और नेताओं के खद्दर पर उनके करतूतों की पिक उड़ेलने की झमता अदम गोंडवी ही रख सकते थे. हालांकि, इसकी कीमत भी उन्होंने खूब चुकाई. अब सत्ता से जो लोहा लेगा. समाज में भौतिक उन्नति तो बिल्कुल ही नहीं कर सकता. यही खेल अदम गोंडवी के साथ भी ताउम्र हुआ. मुफलिसी ने इन्हें कभी नहीं बख्शा. आखिरी दिनों में हालात ऐसे हुए कि सपा संरक्षक और हाल में ही दिवंगत हुए मुलायम सिंह यादव ने इनका इलाज कराया था. जबकि, अपनी कविताओं में मुलायम सरकार को भी गोंडवी साहब ने नहीं बख्शा था.
अदम गोंडवी की चर्चा हम इसलिए कर रहे हैं कि आज ही के दिन यानी 22 अक्टूबर 1947 को गोंडा जिले के आटा गांव में इनका जन्म हुआ था. इनका असली नाम तो वैसे रामनाथ सिंह था. लेकिन, जमीन और जमीर को तरजीह देने वाले इस शायर ने अपने ज़िले को अपने नाम से जोड़ लिया और अदम गोंडवी से दुनिया रूबरू हुई. बतौर लेखक गोंडवी साहब ने मजदूर, किसान, शोसित और वंचित समाज के लिए अपनी स्याही कभी खतम नहीं होने दी. जातिवाद और संप्रदायवाद पर उन्होंने जबरदस्त ढंग से तनकीद की.
“जिनके चेहरे पर लिखी थी जेल की ऊंची फसील
रामनामी ओढ़कर संसद के अंदर गए.”
अदम गोंडवी जातियों के वर्चस्व में सिसकते शोषित और वंचित वर्ग को लेकर भी खूब लिखा. “आइए महसूस करिए ज़िन्दगी के ताप को, मैं चमारों की गली तक ले चलूँगा आपको.” अदम गोंडवी की यह कविता गांव-देहात में दलित समुदाय की जमीनी स्थिति को दर्शाती है. बतौर लेखक उन्होंने अधिकारियों के भ्रष्टाचार पर भी गजब की अपनी लेखनी चलाई.
“पिन खुली, टाई खुली, बकलस खुला, कॉलर खुला
खुलते-खुलते डेढ़ घंटे में कहीं अफसर खुला.”
अदम गोंडवी की धारदार लेखनी ने किसी को नहीं बख्शा. नेता, अफसर, जातिवादी, संप्रदायवादी सभी को कटघरे में खड़ा किया. आपको यकीन नहीं होगा कि इस कालजयी लेखक को एक भी पद्म पुरस्कार नहीं मिला. हालांकि, जब कभी भी इनकी लेखनी किसी के आंख से गुजरी, सीधे दिल में उतरती चली गई.
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