दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा है कि किसी के नाम से या माता-पिता की संतान के रूप में पहचाना जाना किसी भी व्यक्ति की पहचान का मूल आधार है. उसने यह टिप्पणी याचिकाकर्ता की 10वीं एवं 12वीं की सीबीएसई की मार्कशीट में पिता का नाम बदलने की मांग वाली याचिका पर विचार करते हुए की.
जस्टिस सी. हरिशंकर ने पाया कि केंद्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड (सीबीएसई) के प्रमाण-पत्रों में उल्लिखित नाम वास्तव में याचिकाकर्ता के पिता का नहीं था. छात्र ने पंजीकरण के समय अपने चाचा का नाम अंकित किया था, क्योंकि उसके पिता की मृत्यु हो चुकी थी.
ऐसे मामलों में अपनाया जाए व्यावहारिक दृष्टिकोण
वैसे कई सार्वजनिक दस्तावेजों में याचिकाकर्ता के पिता के नाम की वर्तनी में कुछ विसंगतियां थीं. जस्टिस सी. हरिशंकर ने कहा कि नाम पहचान से जुड़ा होता है और ऐसे मामलों में व्यावहारिक दृष्टिकोण अपनाया जाना चाहिए, न कि पांडित्यपूर्ण रुख अपनाया जाना चाहिए.
उन्होंने हाल के एक आदेश में कहा था कि अदालत को ऐसे मामलों में यथार्थवादी दृष्टिकोण अपनाना होगा और प्रमुख विचार को ध्यान में रखना होगा कि नाम पहचान से जुड़ा है. किसी के नाम के साथ ही माता-पिता की बेटी या बेटे के रूप में भी पहचाने जाने का अधिकार एक व्यक्ति के रूप में उसकी पहचान का मूल आधार है.
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