मध्य प्रदेश के इंदौर में तीन दिवसीय भारतीय पत्रकारिता महोत्सव का आयोजन किया गया है. इस कार्यक्रम में भारत एक्सप्रेस न्यूज नेटवर्क के चेयरमैन, एमडी और एडिटर इन चीफ उपेंद्र राय वक्ता के रूप में शामिल हुए. इस दौरान उन्होंने कहा कि “दुनिया में बहुत सारे सर्वे कराए गए कि समाज पहले से बेहतर हुआ है कि खराब हुआ है. इस सर्वे में ये निकल कर आया कि समाज का बहुत पतन हो गया है. स्थितियां बहुत खराब हो गई है. पहले समाज बहुत अच्छा था, अब अच्छा नहीं रहा. जबकि हकीकत इसके उलट है. दुनिया पहले से हजारों गुना बेहतर हुई है और हो रही है. लेकिन लोगों ने ऐसा क्यों कहा, उसके पीछे भी कारण है. उस सर्वे में ये भी निकल कर आया कि कारण का जो मूल आधार है, वो कहीं ना कहीं मीडिया है.”
वरिष्ठ पत्रकार उपेंद्र राय ने कहा कि “जो नकारात्मक खबरें हम परोसते हैं. उन खबरों में जिसमें लोग रस भी लेते हैं. मीडिया वाले जो खबरें दिखाते हैं यू हीं नहीं दिखाते, लेकिन ये तय कौन करता है कि क्या दिखाना चाहिए और क्या नहीं दिखाना चाहिए. क्या भरोसा पैदा करता है क्या भरोसा तोड़ता है. कहीं ना कहीं इसकी भी शुरुआत हम ही से होती है. एक समाज के रुप में इस सभागार में जितने लोग बैठे हैं, उनसे होती है. लेकिन कुछ माइल स्टोन होते हैं, कुछ घटनाएं ऐसी होती हैं जिनका उदाहरण इसलिए दिया जाता है कि वो मील का पत्थर होती है. वो शुरुआत होती है. वो मानक होती है.”
भारत एक्सप्रेस के चेयरमैन, एमडी और एडिटर इन चीफ उपेंद्र राय ने कहा कि “अगर विश्व की पत्रकारिता पर नजर डालें तो अमेरिका के कुछ फाउंडिंग फादर फीगर हैं उसमे मैं थॉमस जेफ़र्सन का नाम लेना चाहूंगा, जो बाद में अमेरिका के राष्ट्रपति भी बने. उन्होंने पत्रकारिता के क्षेत्र में बड़ी गहरी बात कही है. उन्होंने कहा कि सरकार युक्त और प्रेस विहिन राष्ट्र हो या सरकार विहिन प्रेस युक्त राष्ट्र हो ? तो उन्होंने (थॉमस जेफ़र्सन) कहा कि अगर सरकार नामक संस्था का गठन न हो यानी सरकार न हो, लेकिन प्रेस जिंदा रहे. तो ऐसा राष्ट्र मैं चाहूंगा. लेकिन सरकार रहे और प्रेस न रहे, प्रेस की आजादी न रहे तो मैं ऐसा राष्ट्र देखना नहीं चाहूंगा.”
जाने-माने पत्रकार उपेंद्र राय ने कहा कि “जो येलो जर्नलिज्म की बात होती है उसकी भी शुरूआत सबसे पहले अमेरिका में ही हुई. और मैं उदाहरण देना चाहूंगा जब क्यूबा को लेकर जब स्पेन और अमेरिका में काफी तनातनी थी. तब दो मीडिया पर्सनालिटी बहुत बड़े हुए जिनका नाम सब लोग जानते हैं पुलित्जर और बिलियम हार्ट, पुलित्जर अवॉर्ड भी दिया जाता है. तो बिलियम हॉर्ट ने जो अखबार शुरू किया तो उनका एक मात्र उदेश्य था सर्कुलेशन बढ़ाना और उसके लिए उन्होंने अमेरिका जैसे देश को युद्ध की आग में झोंक दिया. जो क्यूबा में तनाव चल रहा था उसको लेकर उन्होंने बहुत गलत रिपोटिंग की. और घटना उस वक्त हुई जब उन्होंने बड़ी खबर छापी की स्पेन ने अमेरिका के एक युद्धपोत को डूबा दिया.”
उन्होंने आगे कहा कि “दरअसल, युद्धपोत तकनीकी कारणों से डूबा था. लेकिन खबर छापी गई स्पेन ने अमेरिकी जहाज को डूबा दिया. उस खबर के छपने के बाद उसके तथ्यों का आंकलन नहीं किया गया. कई बार झूठी खबरें छापी जाती हैं. एक झूठी खबर छपी और कह सकते हैं युद्ध हुआ भी. यानी जो मीडिया है, ये जो हमारा अखबार है ये जो हमारा टेलीविजन है ये लोगों के भरोसे के का प्रतीक है. और भरोसे का प्रतीक क्यों है क्योंकि इसी को देख कर हम तय करते हैं कि हमें क्या करना चाहिए और क्या नहीं करना चाहिए, क्या अच्छा चल रहा है क्या बुरा चल रहा है. यहीं हमें संकेत देता है.”
वरिष्ठ पत्रकार उपेंद्र राय ने कहा कि “व्यवसाय के युग में दोष सिर्फ मीडिया को ही क्यों दिया जाए. सिर्फ आदर्श का प्रतिमान, उच्चतम प्रतिमान मीडिया ही स्थापित करें इसका बोझ मीडिया ही क्यों उठाए? लेकिन ये जरुर कि अगर किसी से थोड़ा अच्छा होने की अपेक्षा की जाए तो अच्छा होता है. एक शेर है कि “मेरा वक्त बुरा था, मगर आप तो अच्छे होते” हो सकता है मीडिया का वक्त थोड़ा बुरा हो, लेकिन मीडिया के सामने जो लोग हैं वो अच्छा रहें तो मीडिया अच्छा हो सकता है.”
भारत एक्सप्रेस के चेयरमैन, एमडी और एडिटर इन चीफ उपेंद्र राय ने कहा कि “पत्रकारिता के उच्चतम कीर्तिमान स्थापित करने वाले माखन लाल चतुर्वेदी साहब ने जब अपना प्रकाशन शुरू किया, शायद मैं गलत नहीं हूं तो ‘प्रतिमान’ नाम था उनके पत्रिका का. तो उन्होंने लिखा कि मैं इश्वर से प्रार्थना करता हूं मुझे वो ऐसी दृष्टी देते रहे जिससे कि मैं अपने दोषों को देख सकूं. तो मेरा ये कहना है कि मीडिया और समाज दरकता विश्वास है.”
वरिष्ठ पत्रकार उपेंद्र राय ने कहा कि “जो सोशल मीडिया है उसने जो ताकत दी है, जो प्रतिमान सोशल मीडिया के कारण स्थापित हुए हैं. सोशल मीडिया रेगुलेटेड नहीं है, इसके थोड़े खतरे भी हैं. हां ये जरुर है जहां संभावनाएं बहुत ज्यादा होती हैं, खतरे भी वहीं होते हैं. लेकिन उन खतरों की तुलना में संभावनाएं ज्यादा है. आज आम आदमी जितना सशक्त हुआ है, ताकतवर हुआ है, जितना मजबूत हुआ है…मुझे लगता है पत्रकारिता के माध्यम अखबार, पत्रिका, रेडियो और टेलीविजन पत्रकारिता के जितने में भी माध्यम हैं उनमें सोशल मीडिया बहुत आगे निकल गया है. और इसी कारण जो टेलीविजन और जो अखबार है वो जिंदा भी रहेगा, लेकिन जो भरोसे का गणित होता है उसके पीछे भी काफी जोड़-घटाना होता है.”
देश के जाने-माने पत्रकार उपेंद्र राय ने इस दौरान एक कहानी का जिक्र करते हुए कहा कि “पश्चिम बंगाल में एक बंगाली बाबा थे उनकी कहानी जो भी लोग थोड़ा बहुत पढ़ें होंगे, जानते होंगे कि वो कैसे मशहूर हुए, कैसे पूरा हिंदुस्तान उनके चरणों में जाकर गिर गया. भरोसा भी कैसे पैदा किया जाता है. इसकी एक अनूठी कहानी है वो एक बार की कहानी है कि अंग्रजों का राज था. बंगाली बाबा ट्रेन में सवार हुए और सवार हुए तो टिकट चेकर आया तो उनसे टिकट मांगा तो उन्होंने कहा कि हम फकीर लोग हैं, फकीर लोगों से टिकट नहीं मांगते, हम बिना टिकट यात्रा करते हैं. जो टिकट कलेक्टर था वो बंगाली बाबा को ट्रेन के बाहर फेकवा दिया. फिर बंगाली बाबा को गुस्सा आया तो उन्होंने कहा कि देखता हूं तुम मेरे बिना ट्रेन कैसे चला लेते हो. उनके हाथ में डंड था उन्होंने मंत्र पढ़ा और डंड को स्टेशन पर टिका दिया. और ट्रेन का इंजन चालू था सारे पैरामीटर सही था. ट्रेन के ड्राइवर ने बड़ी कोशिश की, लेकिन ट्रेन हिलने का, चलने का नाम ही नहीं ले रही थी.”
वरिष्ठ पत्रकार उपेंद्र राय ने आगे कहा कि “धीरे-धीरे लोग अपने बोगियों से उतर कर इक्ठ्ठा हो गए. गाली-गलौच होने लगा, मार पीटाई की नौबत आ गई. सब लोग टिकट कलेक्टर को कहने लगे कि भाई बंगाली बाबा से मांफी मांगो. और वो मांफी मांगने को तैयार नहीं था. जब भीड़ काफी इकठ्ठा हो गई और उसको लगा की भीड़ उसको मारने लगेगी तो बेचारे ने हार थक कर मांफी मांग ली. फिर बंगाली बाबा ने कोई मंत्र पढ़ा और ट्रेन चलने लगी.”
वरिष्ठ पत्रकार उपेंद्र राय ने कहानी सुनाते हुए कहा कि “इस चमत्कार की पूरी दुनिया में इतनी चर्चा हुई कि बंगाली बाबा बहुत मशहूर हो गए, बहुत ताकतवर हो गए. अंत समय आया…तो बंगाली बाबा की दोस्ती एक पत्रकार से थी. जिस दिन बंगाली बाबा मरने वाले थे, उस दिन खुलासा किया. जब पत्रकार दोस्त ने पूछा कि असली बात क्या थी अब बता दो मुझे तो बंगाली बाबा ने खुलासा किया तीनों मेरे द्वारा खरीदे हुए लोग थे. जो ड्राइवर था वो भी, जो टिकट कलेक्टर था वो भी और जो स्टेशन मास्टर था वो भी. तो जो विश्वास और अविश्वास का जो खेल है इसके पीछे भी गणित का खेल होता है.”
-भारत एक्सप्रेस
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