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कलकत्ता हाईकोर्ट का विवादित फैसला- “नाबालिग के स्तनों को छूना रेप नहीं”…आरोपी को दे दी जमानत

इलाहाबाद हाईकोर्ट के बाद अब कलकत्ता हाईकोर्ट ने भी एक विवादास्पद फैसला दिया है. कलकत्ता हाईकोर्ट ने कहा है कि नशे में धुत होकर नाबालिग लड़की के स्तनों को छूने का प्रयास करना यौन अपराधों से बच्चों की रोकथाम (POCSO) अधिनियम के तहत बलात्कार का प्रयास नहीं माना जाता है.

जस्टिस अरिजीत बनर्जी और जस्टिस बिस्वरूप चौधरी की खंडपीठ ने इस कृत्य को गंभीर यौन उत्पीड़न के प्रयास के तौर पर वर्गीकृत किया और आरोपी को जमानत दे दी, जो पहले ही दो साल से अधिक समय जेल में बिता चुका है. यह निर्णय ट्रायल कोर्ट के उस फैसले को पलटता है, जिसने आरोपी को POCSO अधिनियम की धारा 10 और भारतीय दंड संहिता की धारा 448/376(2)(c)/511 के तहत 12 साल के कारावास और 50,000 रुपये का जुर्माना लगाया था.

इलाहाबाद हाईकोर्ट का भी ऐसा ही फैसला

यह फैसला इलाहाबाद हाईकोर्ट द्वारा लगभग एक महीने पहले दिए गए इसी तरह के विवादास्पद फैसले के बाद आया है, जिसमें कहा गया था कि नाबालिग के स्तनों को पकड़ना, उनके पायजामे की डोरी तोड़ना या उन्हें पुलिया के नीचे खींचने का प्रयास करना बलात्कार या बलात्कार का प्रयास नहीं माना जाता है.

इलाहाबाद मामले में घटना नवंबर 2021 में हुई थी, जब 14 वर्षीय लड़की को गांव के निवासी पवन, आकाश और अशोक ने घर तक छोड़ने की पेशकश की थी. यात्रा के दौरान दो आरोपियों ने कथित तौर पर लड़की के स्तनों को पकड़ लिया, उसे पुलिया के नीचे खींचने का प्रयास किया और जब लोग उसकी चीखें सुनकर भाग गए, तो उसके पायजामे का फीता तोड़ दिया.

निर्णयों के पीछे कानूनी तर्क

दोनों मामलों में, अदालतों ने कहा कि प्रवेश को दर्शाने वाले साक्ष्य की अनुपस्थिति, जिसे वे आईपीसी की धारा 376 के तहत आरोपों के लिए आवश्यक मानते हैं. कलकत्ता मामले में बचाव पक्ष ने सफलतापूर्वक तर्क दिया कि प्रवेश के बिना, अपराध को अधिकतम POCSO अधिनियम की धारा 10 के तहत गंभीर यौन हमले के रूप में वर्गीकृत किया जा सकता है, जिसमें 5 से 7 साल की कम सजा होती है.

कलकत्ता हाईकोर्ट का निर्णय तीन मुख्य प्रश्नों पर आधारित था:

  • क्या ऐसी हरकतें बलात्कार का प्रयास मानी जाती हैं
  • क्या विशेष न्यायाधीश ने समन जारी करने में उचित न्यायिक विवेक का प्रयोग किया
  • क्या मामला पक्षों के बीच मौजूदा प्रतिद्वंद्विता से पनपा है

बचाव पक्ष ने दावा किया कि आरोपी को झूठा फंसाया गया है, जबकि अभियोजन पक्ष ने कहा कि समन जारी करने के लिए केवल प्रथमदृष्टया मामला स्थापित करने की आवश्यकता है, विस्तृत सुनवाई की नहीं. इन निर्णयों ने यौन उत्पीड़न कानूनों की व्याख्या के बारे में महत्वपूर्ण प्रश्न उठाए हैं, विशेष रूप से नाबालिगों की सुरक्षा के लिए बनाए गए कानूनों के बारे में और भविष्य में इसी तरह के मामलों के निर्णय को प्रभावित कर सकते हैं.

-भारत एक्सप्रेस

Md Shadan Ayaz

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