दिल्ली हाई कोर्ट
दिल्ली हाईकोर्ट ने फैमिली कोर्ट के उस आदेश को रद्द करने से इनकार कर दिया, जिसमें एक पति को अपनी पत्नी और बच्चे को 75,000 का मासिक भरण-पोषण देने के लिए कहा गया था. कोर्ट ने कहा उसके द्वारा प्रस्तुत की गईं तस्वीरों को मुकदमे में साबित करना होगा कि वह व्यभिचार में रह रही थी.
जस्टिस राजीव शकधर और जस्टिस अमित बंसल ने हाल ही में दिए फैसले में तस्वीरों पर भरोसा करने से इनकार करते हुए डीपफेक के खतरे का उल्लेख किया और जोर देकर कहा कि कथित तस्वीरों को पहले मुकदमे के माध्यम से साबित किया जाना चाहिए. हमने तस्वीरों को देखा है. यह स्पष्ट नहीं है कि पत्नी की तस्वीरों में दिख रहा व्यक्ति है या नहीं जैसा कि पति के वकील ने कहा है.
अदालत ने कहा, हम इस तथ्य का न्यायिक संज्ञान ले सकते हैं कि हम डीपफेक के युग में रह रहे हैं, इसलिए यह एक ऐसा पहलू है, जिसे पति को शायद पारिवारिक न्यायालय के समक्ष साक्ष्य के माध्यम से साबित करना होगा.न्यायालय ने यह भी कहा कि ऐसा कुछ भी नहीं है जो यह संकेत दे कि पत्नी के कथित व्यभिचार के बारे में तर्क पारिवारिक न्यायालय के समक्ष उठाया गया था.
पीठ ने कहा कि विशेष रूप से यह पहलू जिसे हमारे सामने जोरदार तरीके से दबाया गया है, लगभग आरोपित निर्णय में दिए गए दायित्व से बचने के लिए हताशा के उपाय के रूप में आरोपित निर्णय में कोई उल्लेख नहीं है.
न्यायालय एक आर्किटेक्ट द्वारा दायर अपील पर सुनवाई कर रहा था, जिसमें 15 अप्रैल के फैमिली कोर्ट के आदेश को चुनौती दी गई थी. फैमिली कोर्ट ने उसे अपनी पत्नी को मासिक भरण-पोषण के रूप में 75,000 का भुगतान करने का निर्देश दिया गया था. इस जोड़े की शादी 2018 में हुई थी और उनकी एक 5 साल की बच्ची है.
न्यायालय को बताया गया कि पत्नी पोस्ट ग्रेजुएट है, लेकिन वर्तमान में बेरोजगार है और अपने माता-पिता के साथ रह रही है. उसने अपने पति से मासिक भरण-पोषण के रूप में 2,00,000 की मांग की थी, लेकिन फैमिली कोर्ट ने अंततः भरण-पोषण के रूप में 75,000 का भुगतान करने का आदेश दिया.
इस आदेश को हाईकोर्ट में चुनौती देते हुए पति ने आरोप लगाया कि उसकी पत्नी व्यभिचार में रह रही है और अपने दावे का समर्थन करने के लिए उसने कुछ तस्वीरें दिखाने की मांग की. हालांकि, हाईकोर्ट ने फैमिली कोर्ट के आदेश में हस्तक्षेप करने से इनकार कर दिया. हाईकोर्ट ने कहा कि पत्नी के कथित व्यभिचार के पहलू को समीक्षा याचिका दायर करके पारिवारिक न्यायालय के समक्ष उठाया जा सकता है.
अपीलकर्ता/पति के वकील का कहना है कि इस पहलू को फैमिली कोर्ट के समक्ष उठाया गया था, हालांकि निर्णय देते समय इसे नजरअंदाज कर दिया गया. अगर यह स्थिति थी तो पति के लिए सबसे अच्छा रास्ता फैमिली कोर्ट के समक्ष समीक्षा के लिए आवेदन करना था. हालांकि अपीलकर्ता/पति द्वारा ऐसा कोई उपाय नहीं अपनाया गया है.
-भारत एक्सप्रेस
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