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अंकित गुर्जर हत्या मामले में तिहाड़ जेल के पूर्व उपाधीक्षक को जमानत देने से दिल्ली हाईकोर्ट ने किया इनकार

तिहाड़ जेल में बंद कैदी अंकित गुर्जर की हत्या के मामले में जेल में बंद तिहाड़ जेल के पूर्व उपाधीक्षक नरेंद्र मीणा को जमानत देने से दिल्ली हाई कोर्ट ने इनकार कर दिया है. न्यायमूर्ति सुधीर कुमार जैन ने अपराध की प्रकृति और गंभीरता तथा गवाहों को प्रभावित करने या साक्ष्यों से छेड़छाड़ करने की संभावना को देखते हुए यह आदेश दिया है.

29 वर्षीय कथित गैंगस्टर अंकित गुर्जर 2021 में जेल के अंदर मृत पाया गया था. अदालत ने कहा कि ऐसा कोई भी सबूत रिकॉर्ड में नहीं है जिससे पता चले कि मुकदमे में देरी केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) के कारण हुई थी, जिसे सितंबर 2021 में न्यायिक आदेश के माध्यम से जांच स्थानांतरित कर दी गई थी.

न्यायिक हिरासत में हुई थी मौत

अंकित गुर्जर की मृत्यु न्यायिक हिरासत में रहने के दौरान हुई थी. पोस्टमार्टम रिपोर्ट में अंकित गुर्जर के शरीर पर कई पूर्व-मृत्यु चोटों के निशान दिखाई दिए हैं. निचली अदालत ने अपने आदेश में यह भी कहा कि याचिकाकर्ता ने गवाहों को प्रभावित करने की कोशिश की और समाज के व्यापक हित को आरोपी की स्वतंत्रता पर वरीयता दी जानी चाहिए.

अंकित गुर्जर 4 अगस्त, 2021 को तिहाड़ जेल के अंदर मृत पाया गया था. वह सेंट्रल जेल नंबर 3 में बंद था. घटना के सिलसिले में डीजीपी ने मीना सहित चार अधिकारियों को निलंबित कर दिया था. निलंबित किए गए अन्य लोगों में दो सहायक अधीक्षक और एक वार्डन शामिल हैं.

जेल में बेरहमी से पिटाई का था आरोप

आरोप लगाया गया था कि मीना और अन्य जेल अधिकारियों ने 3 अगस्त, 2021 को अंकित गुर्जर की बेरहमी से पिटाई की थी और उसे कोई चिकित्सकीय सहायता नहीं दी जिससे जेल परिसर में उसकी मौत हो गई. यह भी आरोप लगाया गया था कि आरोपी व्यक्ति मृतक के रिश्तेदारों से पैसे ऐंठने के लिए उसे परेशान कर रहे थे.

गुर्जर की मां की याचिका पर समन्वय पीठ ने जांच दिल्ली पुलिस से सीबीआई को स्थानांतरित कर दी. मीना को जमानत देने से इनकार करते हुए न्यायमूर्ति जैन ने कहा कि चश्मदीद गवाहों या पीड़ितों ने मीना समेत अन्य आरोपियों द्वारा बयान बदलने के लिए धमकाने का आरोप लगाया है. अदालत ने कहा सभी तथ्यों पर विचार करने और अपराध की प्रकृति और गंभीरता तथा याचिकाकर्ता द्वारा गवाहों को प्रभावित करने/साक्ष्यों से छेड़छाड़ करने की संभावना को ध्यान में रखते हुए जमानत का कोई आधार नहीं बनता है.

– भारत एक्सप्रेस

गोपाल कृष्ण

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