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दिल्ली हाईकोर्ट का फैसला: आवारा बंदरों को असोला भट्टी वन्यजीव अभ्यारण्य में स्थानांतरित किया जाएगा

दिल्ली हाईकोर्ट ने राजधानी में आवारा पशुओं की समस्या से निपटने के उद्देश्य से एक महत्वपूर्ण कदम उठाते हुए दिल्ली के सभी बंदरों को असोला भट्टी वन्यजीव अभ्यारण्य में स्थानांतरित करने का निर्देश दिया है. यह निर्णय शहर की दिव्यांग आबादी की सुरक्षा में सुधार के लिए अदालत के प्रयासों का हिस्सा है, जो विशेष रूप से आवारा पशुओं से प्रभावित हैं. मुख्य न्यायाधीश मनमोहन और न्यायमूर्ति तुषार राव गेडेला की पीठ ने यह निर्देश एनजीओ धनंजय संजोगता फाउंडेशन की जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए दिया. एनजीओ की और से पेश दृष्टिबाधित वकील राहुल बजाज ने तर्क दिया कि आवारा कुत्तों और बंदरों की उपस्थिति दिव्यांग लोगों की गतिशीलता और सुरक्षा में काफी बाधा डालती है.

अदालत ने आवारा पशुओं, विशेष रूप से बंदरों और कुत्तों द्वारा दिव्यांगों पर हमला करने की रिपोर्टों पर अपनी चिंता व्यक्त की. पीठ ने कहा समाज में विभिन्न समूह शामिल हैं, जिनमें विभिन्न विकलांगताओं से पीड़ित लोग भी शामिल हैं, जिनके पास वास्तविक समस्या है.पीठ ने मानव कल्याण को प्राथमिकता देते हुए आवारा पशुओं से निपटने के लिए एक संतुलित और सम्मानजनक दृष्टिकोण की आवश्यकता पर बल दिया. मुख्य न्यायाधीश ने जोर देकर कहा कि जानवरों को सम्मान मिलना चाहिए, लेकिन मनुष्यों विशेष रूप से विकलांग लोगों के अधिकारों और सुरक्षा को प्राथमिकता दी जानी चाहिए.

अदालत ने इस बात पर प्रकाश डाला कि आवारा पशुओं को सड़कों, पार्कों, स्कूलों और अस्पतालों जैसे सार्वजनिक स्थानों पर अतिक्रमण करने की अनुमति नहीं दी जानी चाहिए, जो सभी के लिए सुरक्षित और सुलभ होने चाहिए, विशेष रूप से कमजोर समूहों के लिए. पीठ ने दिल्ली के मुख्य सचिव को 4 नवंबर को एक महत्वपूर्ण बैठक बुलाने का भी निर्देश दिया. इस बैठक में नई दिल्ली नगर पालिका परिषद, दिल्ली नगर निगम, दिल्ली छावनी बोर्ड और वन विभाग के प्रमुखों के साथ-साथ दिल्ली के पशु कल्याण बोर्ड के सचिव और भारतीय पशु कल्याण बोर्ड के प्रतिनिधियों सहित प्रमुख हितधारक शामिल होंगे. इसका लक्ष्य आवारा पशुओं की समस्या को प्रभावी ढंग से संबोधित करने के लिए एक व्यापक योजना तैयार करना है.

अदालत ने इसके अलावा आवश्यक सार्वजनिक स्थानों पर आवारा पशुओं के गंभीर प्रभाव को इंगित किया. इसमें तीस हजारी कोर्ट परिसर का उदाहरण दिया गया, जहां बंदरों के कब्जे के कारण शाम 4 बजे के बाद पहुंचना मुश्किल हो जाता है, जिससे न्यायिक सेवाओं का कामकाज काफी बाधित होता है. अधिकारियों को यह सुनिश्चित करने का आदेश दिया गया है कि बंदरों का स्थानांतरण प्राथमिकता के आधार पर किया जाए, तथा इस पहल की प्रगति का आकलन करने के लिए अगली सुनवाई 18 नवंबर को निर्धारित की गई है.

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-भारत एक्सप्रेस

गोपाल कृष्ण

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