Election Results 2023: पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव में से आज चार के लिए वोटों की काउंटिंग जारी हैं. काउंटिंग में तीन राज्यों में बीजेपी को प्रचंड बहुमत मिलता दिख रहा है. वहीं एक राज्य में कांग्रेस को बहुमत मिल रहा है. कांग्रेस के हाथ से जहां छत्तीसगढ़ और राजस्थान निकल गए हैं और दूसरी ओर बीजेपी को दो राज्यों का मुनाफा हुआ है. खास बात यह भी है कि बीजेपी को एक साधारण नहीं बल्कि प्रचंड जीत मिलती दिख रही है. मध्य प्रदेश में बीजेपी 160 से ज्यादा सीटें जीत रही है. दूसरी ओर बीजेपी का राजस्थान में जादू भी चला है. ऐसे में सवाल उठता है कि आखिर वो क्या वजहें रहीं कि कांग्रेस को इतनी बड़ी हार हो गईं.
रुझानों की बात करें तो मध्य प्रदेश में बीजेपी ने 160 और कांग्रेस 63 सीटों पर आगे चल रही हैं. दूसरी ओर राजस्थान में 114 सीटों पर बीजेपी आगे है और कांग्रेस 72 सीटों पर आगे है. इस बार सबसे ज्यादा छत्तीसगढ़ की जनता ने चौंकाया है. बीजेपी को छत्तीसगढ़ मे55 सीटों पर बढ़ मिलती दिख रही है, दूसरी ओर कांग्रेस को महज 32 सीटें ही मिलती दिख रही है. हालांकि तेलंगाना में कांग्रेस जीत की ओर है लेकिन उसे तीन अहम राज्यों में मिली बुरी हार 2024 के पहले एक बड़ा झटका है.
कांग्रेस की हार की वजहों पर नजर डालें तो जमीनी स्तर पर कांग्रेस का संगठन काफी कमजोर नजर आता है. पहले कांग्रेस सेवा दल, महिला कांग्रेस, सर्वोदय, यूथ कांग्रेस जैसे संगठन पार्टी के लिए खूब काम करते थे. उनका संपर्क सीधा लोगों से था और सरकार की नीतियों और योजनाओं को आम लोगों तक पहुंचना सरल हो जाता था, लेकिन अब यह स्थिति पलट चुकी है और लचर संगठन कांग्रेस के लिए मुसीबत बना हुआ है.
कांग्रेस के संगठन के अलावा कांग्रेस का नेतृत्व कमजोर भी कमजोरी बनता जा रहा है. भारत जोड़ा यात्रा से राहुल गांधी को एक मास लीडर (जन-नेता) के तौर पर स्थापित करने की कोशिश की गई. उसका फायदा कांग्रेस को तेलंगाना में तो दिखा लेकिन वह भीड़ अन्य राज्यों में वोट के तौर पर तब्दील नहीं हुई. नतीजा ये कि कांग्रेस बैकफुट पर है.
मध्य प्रदेश और राजस्थान में कांग्रेस के अंदर ही बड़ी गुटबाजी देखने को मिली थी. राजस्थान में अशोक गहलोत और सचिन पायलट के गुटों में तकरार पहले दिन से ही उजागर थी. पूरे पांच सालों तक कांग्रेस का शीर्ष नेतृत्व इसे गड़बड़ी को ठीक करने में जुटा रहा. मध्य प्रदेश में ज्योतिरादित्य सिंधिया के भाजपा में जाने के बाद कई छोटे नेताओं ने भी बीजेपी का दामन थाम लिया. तब से वह खाली जगह भरी नहीं गई है.
कांग्रेस पर सवाल यह भी है कि पार्टी कम्युनिकेशन के मुद्दे पर पार्टी फेल दिखती है. इस बार प्रियंका गांधी ने काफी प्रचार किया और कई तरह के वादे किए. परंतु वे वादे लोगों को समझ नहीं आए. इसे दूसरी तरह से कहा जाए तो कह सकते हैं कि प्रियंका अपनी बात लोगों को समझा नहीं पाईं. कुछ ऐसा ही राहुल गांधी के साथ भी हुआ है.
कांग्रेस के नेताओं ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को टारगेट करने की विफल कोशिशें कीं. हर बार भाषायी सीमा लांघी गई और भाजपा ने इसे अपने पक्ष में मोड़ने में कामयाबी हासिल कर ली. कांग्रेस नेता मल्लिकार्जुन खड़गे ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर विवादित बयान दिया था. इन सारे बयानों का नुकसान कांग्रेस को देखने को मिला.
-भारत एक्सप्रेस
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