Delhi MCD: दिल्ली नगर निगम चुनाव के नतीजे आ गए हैं. आम आदमी पार्टी ने यहां जीत दर्ज की है. नतीजों के बाद अब मेयर पद को लेकर सियासी सरगर्मी तेज हो गई है. भाजपा ने हार के बाद भी अपना मेयर बनाने का दावा किया है. तो वहीं आम आदमी पार्टी भी मेयर पद को लेकर पूरी तरह आश्वस्त नजर आ रही है.
दिल्ली एमसीडी (Delhi MCD) में चुनाव में किसी पार्टी की जीत से ही मेयर का पद तय नहीं होता. एमसीडी के नियमों के मुताबिक मेयर बनाने का काम पार्षद करते हैं. ऐसे में कुछ भी हो सकता है. यही वजह है कि भारतीय जनता पार्टी भी मेयर पद को लेकर अपना दावा ठोंक रही है.
दिल्ली एमसीडी (Delhi MCD) के कुछ नियम ऐसे हैं, जिसकी वजह से भाजपा मेयर पद को लेकर काफी उत्साहित है. बता दें कि चंडीगढ़ नगर निगम चुनाव में हार के बाद भी भाजपा ने वहां अपना मेयर बनाया है. ऐसे में आइए जानते हैं कि कैसे चुना जाएगा दिल्ली का नया मेयर और क्यों महिला ही होगी एकीकृत दिल्ली नगर निगम की पहली मेयर.
दिल्ली एमसीडी अधिनियम के मुताबिक पहले साल महिला मेयर होना अनिवार्य है. पहले एक साल के लिए मेयर का पद महिला पार्षद के लिए आरक्षित किया गया है. ऐसे में जिस भी पार्टी का मेयर बनेगा, वो एक महिला ही होगी.
इसके अलावा ये भी पहले से ही नियम है कि तीसरे साल अनुसूचित जाति का मेयर होगा. वहीं अन्य 3 सालों के लिए मेयर का पद अनारक्षित है. इसमें कोई भी पार्षद मेयर का चुनाव लड़ सकता है. आखिरी बार 2011 में जब एकीकृत एमसीडी थी, तो मेयर बीजेपी की रजनी अब्बी थी.
दिल्ली नगर निगम अधिनियम के मुताबिक चुनाव सम्पन्न होने के बाद सदन की पहली बैठक होती है, उसमें मेयर के चुनाव की प्रकिया शुरू की जाती है. सबसे पहले मेयर पद के लिए नामांकन होता है और उसके बाद सभी पार्षद मतदान कर मेयर चुनते हैं. दिल्ली में पार्षदों का कार्यकाल 5 साल के लिए होता है. मगर मेयर का कार्यकाल सिर्फ एक साल के लिए ही होता है. इसी के चलते पार्षद हर साल नया मेयर चुनते हैं.
दिल्ली नगर निगम में मेयर के चुनाव में पार्षद के अलावा और भी लोग वोट करते हैं. इसमें 250 जीते हुए पार्षद, 7 लोकसभा सांसद और 3 राज्यसभा सांसद मिलकर मेयर का चुनाव करेंगे. इसके अलावा विधानसभा अध्यक्ष के मनोनीत किए गए 14 विधायक भी मेयर पद के लिए वोट डालते हैं. यही वजह है कि एमसीडी में मेयर बनने के लिए 138 वोट पाना अनिवार्य है.
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आम आदमी पार्टी के सामने ये भी चुनौती है कि मेयर के चुनाव में दल-बदल कानून लागू नहीं होता. ऐसे में अगर आप का पार्षद बीजेपी उम्मीदवार को वोट दे भी दे तो उसे पद से नहीं हटाया जाएगा. ये पता करना भी मुश्किल होगा कि किस पार्षद ने पाला बदला है. यही वजह है कि नतीजे सामने आते ही आप नेताओं ने आरोप भी लगाना शुरू कर दिया है कि बीजेपी उसके पार्षदों को अपने पाले में लाने की कोशिश कर रही है.
-भारत एक्सप्रेस
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