Court News: दिल्ली हाईकोर्ट ने एक मंदिर के संपत्ति विवाद में शख्स पर एक लाख रुपये का जुर्माना लगाया है. दरअसल उसने हनुमान जी के मंदिर वाली एक निजी भूमि पर कब्जे के संबंध में याचिका में उन्हें भी सह-वादी बना लिया था.
जस्टिस सी. हरिशंकर ने बीते सोमवार (6 मई) को दिए गए 51 पेज के फैसले में कहा, ‘मैंने कभी नहीं सोचा था कि भगवान एक दिन मेरे सामने मुद्दई (Litigant/वादी) बनेंगे. हालांकि शुक्र है कि यह छद्म रूप से देवत्व का मामला प्रतीत होता है.’
अदालत ने 31 वर्षीय अंकित मिश्रा की याचिका खारिज करते हुए उन्हें संबंधित संपत्ति के मालिक सूरज मलिक को 1 लाख रुपये जुर्माना देने का आदेश दिया.
याचिका में दिल्ली की निचली अदालत के उस आदेश को चुनौती दी गई थी, जिसमें कहा गया था कि मंदिर पूरी तरह से सूरज मलिक की निजी भूमि पर स्थित है. अदालत ने कहा था कि अगर किसी व्यक्ति को अपने कब्जे वाली निजी भूमि पर मंदिर का निर्माण करना है, तो यह नहीं कहा जा सकता है कि केवल उस पर मंदिर होने के कारण वह भूमि के कब्जे (मालिकाना हक) से वंचित हो गया है.
निचली अदालत ने यह भी कहा था कि हालांकि जनता को उत्सव के अवसरों पर पूजा करने की अनुमति है, लेकिन यह तथ्य एक निजी मंदिर को सार्वजनिक मंदिर में नहीं बदल देगा.
अंकित मिश्रा ने निचली अदालत के आदेश को चुनौती दी थी, जिसमें कहा गया था कि सूरज मलिक की संपत्ति को ‘सौंप’ दिया जाना चाहिए, क्योंकि इसने ‘सार्वजनिक मंदिर’ का दर्जा हासिल कर लिया है, जिससे मालिक जमीन पर सभी अधिकार खो देते हैं. उन्होंने आगे कहा था कि वह ‘लंबे समय’ से उत्तम नगर में स्थित मंदिर में पूजा-अर्चना कर रहे हैं और मंदिर और उसके देवताओं के साथ उनकी ‘गहरी धार्मिक आस्था’ जुड़ी हुई है.
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इसे संपत्ति हड़पने के इरादे से मिलीभगत का मामला बताते हुए जस्टिस सी. हरिशंकर ने याचिका खारिज कर दी और फैसला सुनाया कि अंकित मिश्रा ने जमीन के वर्तमान कब्जाधारकों के साथ ‘गलत मिलीभगत’ से काम किया था, ताकि जमीन मालिक को दोबारा कब्जा करने से रोका जा सके.
आदेश में कहा गया है कि किसी निजी मंदिर में जनता द्वारा पूजा करने मात्र से वह सार्वजनिक मंदिर में नहीं बदल जाता, क्योंकि इससे विनाशकारी परिणाम होंगे, जिसका सामना कानून की कोई भी सभ्य व्यवस्था नहीं कर सकती.
आदेश में कहा गया, ‘जैसा कि वर्तमान मामले में हुआ है, एक व्यक्ति दूसरे की संपत्ति हड़प सकता है, उस पर कब्जा कर सकता है, संपत्ति पर एक मंदिर का निर्माण कर सकता है, जनता को कभी-कभार वहां पूजा करने की अनुमति दे सकता है और स्थायी रूप से संपत्ति को उसके असली मालिक को लौटाने में बाधा डाल सकता है. ऐसी खतरनाक प्रथा को अनुमति देना न्याय के ताबूत में आखिरी कील ठोंकने जैसा होगा.’
अपने फैसले में जस्टिस सी. हरिशंकर ने कहा, ‘यह स्पष्ट रूप से सूरज मलिक (अपील में प्रतिवादी और एडीजे के समक्ष वादी) को 22 वर्षों तक इसके उपयोग से वंचित करने के बाद मुकदमे की संपत्ति को हड़पने के इरादे से मिलीभगत का मामला है. इतना ही नहीं उन्हें अपना कब्जा वापस दिलाने के लिए 11 लाख रुपये की मांग की और वसूली भी की.’
लॉ ट्रेंड की रिपोर्ट के अनुसार, यह मामला दिल्ली के उत्तम नगर इलाके की जैन कॉलोनी में स्थित एक संपत्ति विवाद से जुड़ा हुआ है. मामले में वादी के रूप में सूरज मलिक और प्रतिवादी के रूप में लखन लाल शर्मा, संतोष शर्मा और अन्य शामिल थे.
वादी सूरज ने 1997 के कानूनी दस्तावेजों और लेनदेन की एक श्रृंखला के माध्यम से संपत्ति पर अपने का दावा किया था. दूसरी ओर प्रतिवादियों ने साल 2000 से प्रतिकूल कब्जे का दावा किया और संपत्ति पर मंदिर बनाने के अपने अधिकार का तर्क दिया था.
इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार, अपने आदेश में अतिरिक्त जिला न्यायाधीश (ADJ) ने कहा था कि अंकित मिश्रा ‘कोई प्रामाणिकता’ नहीं दिखा सके, जो उन्हें भगवान हनुमान के ‘Next Friend’ के रूप में मुकदमा करने का अधिकार देती है.
‘Next Friend’ वह व्यक्ति होता है, जो किसी अन्य व्यक्ति के स्थान पर अदालत में पेश होता है, जो ऐसा करने में सक्षम नहीं है, आमतौर पर ऐसा इसलिए होता है, क्योंकि वे नाबालिग होते हैं या इसके अयोग्य समझे जाते हैं.
ADJ ने यह भी माना था कि भारत के संविधान के अनुच्छेद 25 के तहत पूजा करने का कोई अधिकार ‘किसी अन्य की निजी भूमि पर बनी अवैध धार्मिक संरचना में निहित नहीं हो सकता है’ और कहा कि ऐसी स्थिति में उस धार्मिक संरचना में स्थापित देवता में कोई अधिकार निहित नहीं है.
अपीलकर्ता अंकित मिश्रा ने अतिरिक्त जिला न्यायाधीश के फैसले के खिलाफ दिल्ली हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया था.
-भारत एक्सप्रेस
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