आईआईटी दिल्ली ने एनडीआरएफ को लेकर एक केस स्टडी पब्लिश किया है. जिसमें बताया गया कि तत्कालीन डीजी ओपी सिंह (आईपीएस बैच-1983) के कार्यकाल के दौरान कैसे संगठन ने जुड़ाव को बढ़ावा देने, जागरूकता बढ़ाने और प्रभावशाली हस्तक्षेपों को लागू करने की पहल पर सक्रिय रूप से काम किया. प्रोफेसर महिम सागर और दीप श्री ने विकसित, अध्ययन प्रतिक्रिया तंत्र और नेतृत्व चुनौतियों पर एक विश्लेषणात्मक रिपोर्ट प्रस्तुत की है.
– एनडीआरएफ के डीजी रहे ओपी सिंह ने अपने कार्यकाल के दौरान साल 2014-16 में देश में आई विभिन्न प्राकृतिक आपदाओं में प्रमुख खोज और बचाव अभियानों का नेतृत्व किया है. जम्मू और कश्मीर शहरी बाढ़ में, उन्होंने न केवल अपनी सेना को तुरंत सक्रिय किया, बल्कि स्थानीय आबादी, राज्य सरकार और राष्ट्रीय मीडिया के सहयोग से आगे बढ़कर मानवीय बचाव कार्यों का नेतृत्व किया.
– ओपी सिंह के नेतृत्व में एनडीआरएफ ने नेपाल भूकंप के दौरान उत्कृष्ट शहरी खोज और बचाव कार्य किया, जिसकी वैश्विक स्तर पर संयुक्त राष्ट्र और नेपाल सरकार द्वारा सराहना की गई. उन्हें 2015 में चेन्नई शहरी बाढ़ के दौरान बचाव अभियान का हिस्सा होने पर गर्व था, जहां उनकी करीबी निगरानी में एनडीआरएफ ने हजारों मानव जीवन बचाए थे.
– एनडीआरएफ में डीजी रहते हुए ओपी सिंह ने लगभग 148 मिलियन डॉलर के बजट का निरीक्षण किया और 8 प्रमुख आपदा प्रतिक्रिया कार्यक्रमों की योजना बनाई और उन्हें क्रियान्वित किया, जिससे भारत और नेपाल में 30 मिलियन से अधिक लोगों को लाभ हुआ.
– प्रतिक्रिया बल के प्रमुख के रूप में, उन्होंने आपदा प्रबंधन योजना को परिष्कृत करने, विभिन्न हितधारकों की क्षमता निर्माण के विकास और SAADMEx 2015 के संचालन में योगदान दिया, जिसमें क्षेत्र के सार्क देशों ने भाग लिया.
एनडीआरएफ में डीजी रहने के दौरान ओपी सिंह के अच्छे काम को लेकर उन्हें भारत सरकार ने कई बार सम्मानित किया. ओपी सिंह को वीरता के लिए भारतीय पुलिस पदक, सराहनीय सेवा के लिए भारतीय पुलिस पदक, पुलिस विशेष कर्तव्य पदक, आपदा प्रतिक्रिया पदक और विशिष्ट सेवाओं के लिए राष्ट्रपति पुलिस पदक से सम्मानित किया गया है.
बीते कुछ दशकों में जलवायु और भू-गर्भीय परिवर्तन काफी देखे गए हैं. इस दौरान बाढ़, समुद्री तूफान और भूकंप जैसी आपदाएं काफी संख्या में देखी गई हैं. रिसर्च में यह बात सामने आई है कि आपदाओं की फ्रिक्वेंसी और तेजी से बढ़ने वाली है. क्योंकि, जैसे-जैसे धरती पर जनसंख्या का ग्राफ बढ़ रहा है, आपदाओं की फ्रिक्वेंसी भी बढ़ रही है.
भारत देश में आपदाओं की आशंका काफी ज्यादा है. रिसर्च के मुताबिक भारत कई सारी आपदाओं के मुहाने पर बराबर खड़ा रहता है. पूरे उपप्रायद्वीप की बात करें तो स्थिति एक समान ही है. गौरतलब है कि बीते दशक में दुनिया की कुल आपदाओं का 38.1 फीसदी हिस्सा सिर्फ 5 देशों बरपा था. इनमें भारत भी शामिल है. भारत में भी हर साल बाढ़, तूफान और भूकंप के चलते छोटी-बड़ी तबाहियां पेश आती रही हैं. वहीं, पड़ोसी मुल्क पाकिस्तान, बांग्लादेश, नेपाल भी इससे अछूते नहीं हैं.
भौगोलिक और जलवायु के लिहाज से भारत का दो तिहाई हिस्सा आपदाओं की आशंका से ग्रस्त है. तूफानी हवाएं अरब सागर और बंगाल की खाड़ी से उठती हैं और इसके तटवर्ती क्षेत्रों में तबाही मचाती हैं. हिमालयन प्लेट में हलचल के चलते इससे जुड़े देश का 50 फीसदी हिस्सा भूकंप प्रभावी है. 12 फीसदी हिस्सा बाढ़ प्रभावित है. बाकी का सूखा प्रभावित है. अकेले 2004 में आई सुनामी ने कहर बरपाया और 7600 किलोमीटर तक तबाही मचाई.
2005 में डिजास्टर मैनेजमेंट एक्ट के प्रभाव में आने के बाद कई सुधार हुए. राहत और बचाव कार्य में एक ही फ्रंट नहीं होता. लिहाजा, इसके मद्देनजर 4 लेयर तैयार किए गए. जिसमें NDRF, NDMA, NEC और NIDM हैं. भारत में एनडीआरएफ को तीन जोन में बांटा गया है. ईस्ट एंड नॉर्थ ईस्ट जोन, नॉर्थ एंड वेस्ट जोन और साउथ जोन. इन सभी जोन के हेडक्वार्टर कोलकाता, दिल्ली और चेन्नई में हैं.
एनडीआरएफ के गठन के बाद कई सारे ऑपरेशन हुए. कई विषम परिस्थितियों में इस विभाग ने त्वरित कार्रवाई और रिलीफ पहुंचाकर अपने काम का लोहा मनवाया. लेकिन, इस दौरान विभाग ने कई सारी मुश्किलों को फेस किया, जिसे आसानी से किया जा सकता था. रिसर्च में पाया गया है कि एनडीआरएफ को कम्युनिकेशन, तकनीक और स्कील ट्रेनिंग की कमी देखी गई. ऑपरेशन के दौरान ग्राउंड जीरो पर शिक्षा, जागरूकता और पर्यवारण संबंधी जानकारी की कमी एक बड़ी बाधा के तौर पर देखी गई है. इस दौरान कानूनी चुनौतियां भी पेश आई हैं. क्योंकि, कानून बनाते वक्त सामजिक और भौगोलिक परिस्थितियों का भी ख्याल नहीं रखा गया. फैसले लेने में देरी और लॉजिस्टिक्स एक बड़ी चुनौती रही है.
NDRF का पहला बड़ा ऑपरेशन 2008 में बिहार में कोसी नदी में आई बाढ़ के दौरान हुआ. टीम ने तुरंत वहां पहुंच कर युद्ध स्तर पर काम शुरू किया. देखते ही देखते हवा से 153 हाईस्पीड मोटरबोट उतारी गईं, जिससे 780 बाढ़ग्रस्त इलाकों में राहत और बचाव का काम किया गया. इसमें एनडीआरएफ के तीन बटालियन के बाढ़ एक्सपर्ट्स ने हिस्सा लिया. पांच जिलों में फैले इस आपरेशन में एक लाख से ज्यादा प्रभावित लोगों को बचाकर सुरक्षित स्थानों पर पहुंचाया गया.
– जनवरी 2010 में बेल्लारी में छह मंजिला गिर गई. टीम तुरंत वहां पहुंची और सात दिन लगातार राहत के काम करती रही. मलबे से 20 लोगों को जिंदा निकाला गया जबकि 29 शवों को बाहर निकाला.
– अप्रैल 2012 में पंजाब के जालंधर में बहुमंजिली फैक्ट्री बिल्डिंग गिर गई. एनडीआरएफ ने मलबे से 12 लोगों को जिंदा निकाला. 19 शव भी निकाले गए. ये काम बहुत कठिन था.
– 46 एनडीआरएफ जवानों को मार्च-अप्रैल 2011 में जापान में एक आपदा में भेजा गया, जहां उनके काम की खूब तारीफ की गई
– सितंबर 2014 में जब जम्मू-कश्मीर में भयंकर बाढ आई तब एनडीआरएफ ने बड़े पैमाने पर राहत और बचाव का अभियान चलाया. टीम श्रीनगर पहुंची. तब बाढ़ के चलते पुल टूट गए थे. सड़कें बह गईं थीं. लोगों के घर डूबे हुए थे.बड़े पैमाने पर नुकसान हुआ था. लाखों लोगों ने अपने घरों की छतों पर शरण ली हुई थी. सबसे खराब बात ये भी हुई थी कि संचार और बिजली आपूर्ति पूरी तरह ध्वस्त हो चुकी थी. इसमें एनडीआरएफ की 23 टीमों ने 150 नौकाओं की मदद से 50 हजार से कहीं ज्यादा लोगों को बचाया साथ ही 80 टन राहत का सामान वितरित किया.
– 25 अप्रैल 2015 को नेपाल में 7.8 तीव्रता के भूकंप ने वहां तबाही मचा दी थी, एनडीआरएफ की टीम वहां सबसे पहले पहुंची और बचाव का काम शुरू किया.
26 दिसंबर 2005 को आपदा मोचन एक्ट के आधार पर नेशनल डिजास्टर मैनेजमेंट अथारिटी (एनडीआरएफ) बनाई गई. जिसकी योजना, नीतियों और गाइडलाइंस के आधार पर एनडीआरएफ का गठन किया गया. जो प्राकृतिक और मानव निर्मित आपदाओं से एक्सपर्ट के रूप में तुरंत रिस्पांस दे सकें. साल 2006 में आठ बटालियनों के साथ एनडीआरएफ को गठित किया गया.
फिलहाल एनडीआरएफ की क्षमता 16 बटालियनों की है. करीब 05 साल पहले इसकी क्षमता 12 बटालियनों की थी. हर बटालियन में 1149 जवान होते हैं. हाल के बरसों में ना केवल एनडीआरएफ का बजट बढ़ा है बल्कि ये हर तरह के उपकरणों से युक्त भी की गई है. इसके जवान पूरी तरह से केवल आपदा संबंधी स्थितियों से निपटने के लिए तैनात किये जाते हैं. पहले इन्हें कभी कभार कानून और व्यवस्था की स्थिति को संभालने के लिए भी तैनात किया जाता था लेकिन बाद में एनडीआरएफ के नियमों में बदलाव किया गया. 14 फरवरी 2008 से वो केवल आपदा संबंधी दायित्वों के लिए निर्धारित कर दिये गए.
-भारत एक्सप्रेस
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