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लेटरल एंट्री के विज्ञापन पर केंद्र सरकार ने लगाई रोक, UPSC को दिया ये आदेश; जानें क्या है ये योजना और क्यों मचा है सियासी घमासान?

Lateral Entry System: यूनियन पब्लिक सर्विस कमीशन (UPSC) ने जबसे लेटरल एंट्री’ से केंद्र में वरिष्ठ नौकरशाहों की नियुक्ति का विज्ञापन निकाला है, तभी से सियासी घमासान पूरे देश में मचा हुआ है. इसी बीच ताजा खबर सामने आ रही है कि मंगलवार को केंद्र सरकार ने लेटरल एंट्री के विज्ञापन पर रोक लगा दी है. इस संबंध में कार्मिक मंत्री जितेंद्र सिंह ने यूपीएससी चेयरमैन को पत्र लिखा है. मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, प्रधानमंत्री मोदी के निर्देश पर सीधी भर्ती के विज्ञापन पर रोक लगाई गई है.

बता दें कि लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी ने इसे ‘देश विरोधी कदम’ करार दिया था और कहा था कि ऐसा करके ‘खुलेआम आरक्षण छीना जा रहा है.’ इस मामले में सपा प्रमुख अखिलेश यादव ने भी निशाना साधा था तो वहीं इस पूरे विरोध पर सरकार ने जवाब भी दिया था.

जानें क्या है ‘लेटरल एंट्री’ योजना?

UPSC ने केंद्र के विभिन्न मंत्रालयों में संयुक्त सचिवों, निदेशकों और उप सचिवों के प्रमुख पदों पर 45 विशेषज्ञों की नियुक्ति का विज्ञापन निकाला है. बता दें कि आमतौर पर ऐसे पदों पर अखिल भारतीय सेवाओं – भारतीय प्रशासनिक सेवा (IAS), भारतीय पुलिस सेवा (IPS) और भारतीय वन सेवा (IFOS) – और अन्य ‘ग्रुप ए’ सेवाओं के अधिकारी नियुक्त किए जाते हैं. शनिवार को UPSC ने 45 पदों के लिए विज्ञापन दिया था, जिनमें 10 संयुक्त सचिव और 35 निदेशक/उप सचिव के पद शामिल हैं. इन पदों को अनुबंध के आधार पर ‘लेटरल एंट्री’ के माध्यम से भरा जाना है. मालूम हो कि इसके लिए सरकारी कर्मचारी आवेदन नहीं कर सकते थे. इसके लिए प्राइवेट सेक्टर में कार्यरत योग्य लोग ही आवेदन कर सकते थे.

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मालूम हो कि विज्ञापन में ये बात कही गई थी कि ‘भारत सरकार संयुक्त सचिव और निदेशक/उप सचिव स्तर के अधिकारियों की ‘लेटरल एंट्री’ के जरिये नियुक्ति करना चाहती है. इस तरह, राष्ट्र निर्माण में योगदान देने के आकांक्षी प्रतिभाशाली भारतीय नागरिकों से संयुक्त सचिव या निदेशक/उप सचिव के स्तर पर सरकार में शामिल होने के लिए ऑनलाइन आवेदन आमंत्रित किए जाते हैं.’ विभिन्न मंत्रालयों, विभागों में रिक्तियों को अनुबंध के आधार पर तीन साल की अवधि के लिए (प्रदर्शन के आधार पर पांच साल तक बढ़ाया जा सकता है) भरा जाना है. इसके लिए यूपीएससी की वेबसाइट के माध्यम से 17 सितंबर तक आवेदन किए जा सकते हैं.

जानें क्या रखी गई थी सैलरी?

बता दें कि निदेशक स्तर के पद के लिए न्यूनतम आयु 35 वर्ष और अधिकतम आयु 45 वर्ष है. चयनित उम्मीदवारों को लगभग 2.32 लाख रुपये वेतन मिलना था. उप सचिव स्तर के लिए, न्यूनतम आयु 32 वर्ष और अधिकतम आयु 40 वर्ष वाले उम्मीदवार आवेदन करने के पात्र थे. इस स्तर पर उम्मीदवारों के लिए लगभग 1.52 लाख रुपये का सकल वेतन निर्धारित किया गया था. मालूम हो कि यूपीएससी की ओर से, केंद्र सरकार में संयुक्त सचिव, निदेशक और उप सचिव के स्तर पर ‘लेटरल एंट्री’ से भर्ती 2018 से ही की जा रही थी. अब तक ‘लेटरल एंट्री’ के जरिए 63 नियुक्तियां की जा चुकी हैं, जिनमें से 35 नियुक्तियां निजी क्षेत्र से हैं. संयुक्त सचिव स्तर के पद के लिए न्यूनतम और अधिकतम आयु सीमा क्रमशः 40 और 55 वर्ष रखी गई थी.

जानें क्या कहा था राहुल गांधी ने

बता दें कि रविवार को राहुल गांधी ने कहा था कि ‘लेटरल एंट्री’ के जरिए भर्ती ‘राष्ट्र विरोधी कदम’ है. इस तरह की कार्रवाई से अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और अन्य पिछड़ा वर्ग का आरक्षण ‘खुलेआम छीना जा रहा है.’ उन्होंने आगे कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ‘संघ लोक सेवा आयोग के बजाय राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के माध्यम से लोक सेवकों की भर्ती करके संविधान पर हमला कर रहे हैं.’ राहुल ने ये भी कहा कि ‘मैंने हमेशा कहा है कि शीर्ष नौकरशाहों समेत देश के सभी शीर्ष पदों पर वंचितों का प्रतिनिधित्व नहीं है, उसे सुधारने के बजाय ‘लेटरल एंट्री’ द्वारा उन्हें शीर्ष पदों से और दूर किया जा रहा है.’ राहुल गांधी ने आगे ये भी कहा था कि ‘यह यूपीएससी की तैयारी कर रहे प्रतिभाशाली युवाओं के हक पर डाका और वंचितों के आरक्षण समेत सामाजिक न्याय की परिकल्पना पर चोट है. इसके अलावा राहुल गांधी ने कहा कि प्रशासनिक ढांचे और सामाजिक न्याय दोनों को चोट पहुंचाने वाले इस देश विरोधी कदम का ‘INDIA’ मजबूती से विरोध करेगा. इस योजना को लेकर उन्होंने पीएम मोदी पर भी निशाना साधा था और कहा था कि आईएएस का ‘निजीकरण’ आरक्षण खत्म करने की ‘मोदी की गारंटी’ है.

अखिलेश ने दी थी चेतावनी

सपा प्रमुख अखिलेश यादव ने इस फैसले के खिलाफ दो अक्टूबर से प्रदर्शन करने की चेतावनी दी थी. उन्होंने सोशल मीडिया पर एक पोस्ट शेयर करते हुए कहा था कि ‘भाजपा अपनी विचारधारा के संगी-साथियों को पिछले दरवाजे से यूपीएससी (संघ लोक सेवा आयोग) के उच्च सरकारी पदों पर बैठाने की जो साजिश कर रही है, उसके खिलाफ एक देशव्यापी आंदोलन करने का समय आ गया है.’ इसी के साथ ही उन्होंने दावा किया था कि आज के अधिकारियों के साथ युवाओं के लिए भी वर्तमान और भविष्य में उच्च पदों पर जाने का रास्ता बंद कर देगा. उन्होंने ये भी दावा किया था कि ‘आम लोग बाबू व चपरासी तक ही सीमित हो जाएंगे. इसी के साथ उन्होंने आरोप लगाया है कि यह सारी चाल पीडीए (पिछड़ा, दलित और अल्पसंख्यकों) से आरक्षण और उनके अधिकार छीनने की है.

मायावती ने भी किया था विरोध

बता दें कि इसको लेकर बसपा प्रमुख मायावती ने भी विरोध किया था और कहा था कि सरकार का ये फैसला गलत है. उन्होंने ‘एक्स’ पर लिखा था कि ‘केंद्र में संयुक्त सचिव, निदेशक एवं उपसचिव के 45 उच्च पदों पर सीधी भर्ती का निर्णय सही नहीं है, क्योंकि सीधी भर्ती के माध्यम से नीचे के पदों पर काम कर रहे कर्मचारियों को पदोन्नति के लाभ से वंचित रहना पड़ेगा. इन सरकारी नियुक्तियों में एससी (अनुसूचित जाति), एसटी (अनुसूचित जनजाति) व ओबीसी (अन्य पिछड़ा वर्ग) समुदायों के लोगों को उनके कोटे के अनुपात में अगर नियुक्ति नहीं दी जाती है तो यह संविधान का सीधा उल्लंघन होगा.’ मायावती ने ये भी कहा कि इन उच्च पदों पर सीधी नियुक्तियां करना भाजपा सरकार की मनमानी होगी, जो कि ‘गैर-कानूनी एवं असंवैधानिक होगा.’

केंद्र सरकार ने दिया था ये जवाब

विपक्ष के आरोपों का जवाब देते हुए केंद्रीय मंत्री अश्विनी वैष्णव ने कहा था कि ‘2005 में वरिष्ठ कांग्रेस नेता वीरप्पा मोइली की अध्यक्षता में स्थापित दूसरे प्रशासनिक सुधार आयोग (ARC) ने इसका (लेटरल एंट्री) जोरदार समर्थन किया था. उन्होंने आगे कहा कि ‘संप्रग शासन काल में एआरसी ने विशेष ज्ञान की आवश्यकता वाले पदों में रिक्तियों को भरने के लिए विशेषज्ञों की भर्ती की सिफारिश की थी.’ इसी के साथ ही भाजपा IT सेल के प्रमुख अमित मालवीय ने सोशल मीडिया प्लेटफार्म एक्स पर एक पोस्ट शेयर करते हुए कहा कि सच्चाई यह है कि UPA सरकार के दौरान इस तरह की ‘लेटरल’ भर्ती बिना किसी प्रक्रिया के होती थी. उस तदर्थवाद को समाप्त कर भारत सरकार ने अब यह सुनिश्चित किया है कि ‘लेटरल एंट्री’ स्थापित दिशानिर्देशों के आधार पर की जाएं ताकि आरक्षण और आरक्षण प्रणाली पर कोई प्रभाव न पड़े.’

इसी के साथ ही मालवीय ने कार्मिक एवं प्रशिक्षण विभाग (डीओपीटी) द्वारा 2016 में जारी किये गये सरकारी ज्ञापन का हवाला दिया था, जिसमें कहा गया था कि ‘लेटरल’ भर्तियों में आरक्षण रोस्टर का पालन किया जाए और एससी, एसटी, ओबीसी और विकलांग उम्मीदवारों के लिए निर्धारित अनुपात बनाए रखना चाहिए. उन्होंने आरोप लगाया कि 2018 में भी इस मुद्दे पर भ्रम फैलाने की ऐसी ही कोशिश की गई थी लेकिन जब डॉ. मनमोहन सिंह और मोंटेक सिंह अहलूवालिया जैसे कई प्रमुख ‘लेटरल भर्ती’ वाले शख्सों के सवाल उठाए गए तो कांग्रेस स्तब्ध रह गई थी.

-भारत एक्सप्रेस

Archana Sharma

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