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Law Student Sucide Case: दिल्ली HC ने LLB में उपस्थिति की आवश्यकताओं के संबंध में BCI से मांगा जवाब

दिल्ली हाई कोर्ट ने पांच वर्षीय एलएलबी डिग्री पाठ्यक्रमों के लिए उपस्थिति आवश्यकताओं के संबंध में बार काउंसिल ऑफ इंडिया की कानूनी शिक्षा समिति से जवाब मांगा है. कोर्ट 6 नवंबर को अगली सुनवाई करेगा. जस्टिस प्रतिभा एम सिंह और जस्टिस अमित शर्मा की खंडपीठ ने बीसीआई की कानूनी शिक्षा समिति को अपनी स्थिति को अंतिम रूप देने के लिए एक आभासी बैठक आयोजित करने को कहा और निर्देश दिया कि दो सप्ताह के भीतर एक हलफनामा दायर किया जाए.

पीठ 2016 में दिल्ली के एमिटी लॉ स्कूल के छात्र सुशांत रोहिल्ला की आत्महत्या से संबंधित स्वयं संज्ञान मामले से सुनवाई कर रही है.  उसके दोस्त ने उस साल अगस्त में तत्कालीन सीजेआई को एक पत्र लिखकर आरोप लगाया था कि रोहिल्ला को कम उपस्थिति बनाए रखने के लिए कॉलेज और कुछ संकाय सदस्यों द्वारा परेशान किया गया था.

पत्र के अनुसार रोहिल्ला को एक पूरा शैक्षणिक वर्ष दोहराने के लिए मजबूर किया गया था. सर्वोच्च न्यायालय ने तब दायर पत्र याचिका का संज्ञान लिया था, और अंततः 6 मार्च, 2017 के अपने आदेश में मामले को उच्च न्यायालय को स्थानांतरित कर दिया था, जो इस मामले की सुनवाई कर रहा है. पीठ ने दर्ज किया कि बीसीआई के वकील ने वकीलों के निकाय की कानूनी शिक्षा समिति के गठन और विभिन्न अंतरराष्ट्रीय विश्वविद्यालयों की उपस्थिति आवश्यकताओं से संबंधित एक दस्तावेज रिकॉर्ड पर रखा था.

वर्तमान मामला एलएलबी डिग्री (पांच वर्षीय पाठ्यक्रम) के लिए निर्धारित उपस्थिति आवश्यकताओं से संबंधित है, जिसे बार काउंसिल ऑफ इंडिया द्वारा निर्धारित किया गया है. तदनुसार, बार काउंसिल ऑफ इंडिया की कानूनी शिक्षा समिति एक बैठक आयोजित करे.

केंद्र सरकार ने पीठ को बताया कि उसके पिछले आदेश के अनुपालन में विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) ने 19 सितंबर को पत्र लिखकर सभी उच्च शिक्षण संस्थानों को यूजीसी (छात्रों की शिकायतों का निवारण) विनियम, 2023 के अनुसार छात्र शिकायत निवारण समितियों के गठन के लिए तत्काल कदम उठाने का निर्देश दिया था.

हालांकि, पीठ ने कहा कि केंद्र सरकार द्वारा प्रस्तुत संक्षिप्त नोट में 7 अक्टूबर को यूजीसी और एआईसीटीई के साथ मामले में सभी वैधानिक परिषदों या निकायों के साथ हुई परामर्श बैठक के परिणाम शामिल नहीं हैं.

एमिटी लॉ स्कूल की ओर से पेश हुए वकील ने कहा कि रोहिल्ला के माता-पिता को समय-समय पर उसकी उपस्थिति की कमी के बारे में विधिवत सूचित किया गया था और इस प्रकार, संस्थान को उसकी मौत के लिए दोषी नहीं ठहराया जा सकता. इसके बाद पीठ ने वकील से निर्देश प्राप्त करने को कहा कि क्या विश्वविद्यालय रोहिल्ला के परिवार को अनुग्रह राशि देने के लिए तैयार है.

इस मामले में न्याय मित्र के रूप में पेश हुए वरिष्ठ अधिवक्ता दयान कृष्णन ने कहा कि हाल ही में विभिन्न संस्थानों में आत्महत्या की दुर्भाग्यपूर्ण घटनाएं हुई हैं. उन्होंने परामर्श के दायरे का विस्तार करने के लिए एक नोट रिकॉर्ड पर रखने की अनुमति मांगी.

-भारत एक्सप्रेस

गोपाल कृष्ण

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