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अखिलेश यादव के साथ आखिर क्यों नहीं टिकते सहयोगी दल, जानें किन-किन के साथ बनकर बिगड़े रिश्ते…आखिर दोषी कौन?

UP Politics: लोकसभा चुनाव से पहले यूपी में भी इंडिया गठबंधन की नींव हिलती दिखाई दे रही है, क्योंकि जयंत चौधरी ने भाजपा का हाथ थामने की घोषणा कर दी है तो वहीं सीट शेयरिंग को लेकर कांग्रेस और सपा के बीच भी बात कुछ बनते नहीं दिखाई दे रही है. ऐसे में यूपी में इंडिया गठबंधन टूटता दिखाई दे रहा है तो वहीं यूपी की राजनीति में एक सवाल तेजी से चर्चा का विषय बना हुआ है कि, आखिर अखिलेश के साथ उनके सहयोगी दल टिकते क्यों नहीं हैं? तो वहीं पहले भी सपा ने जब भी किसा के साथ गठबंधन किया वो अधिक दिनों तक नहीं चला. पूर्व के कई ऐसे चुनाव हैं जिनको लेकर राजनीतिक विश्लेषक अपनी राय रखते हैं कि आखिर क्यों सपा के साथ कोई अन्य दल नहीं टिकता तो वहीं राजनीतिक जानकारों का एक तबका वो भी है जो कहता है कि सपा अपने गठबंधन के साथियों के साथ अच्छा साथ निभाने की कोशिश करती है.

इन चर्चाओं के बीच अगर साल 2017 के विधानसभा चुनाव की बात करें तो सपा नें कांग्रेस के साथ गठबंधन किया था और तब सपा ने 403 सीटों में से कांग्रेस को 105 सीटें दी थी. जबकि खुद 298 सीटों पर चुनाव लड़ा था. वो बात अलग है कि, इस गठबंधन के लिए उस समय का रिजल्ट बहुत ही खराब था क्योंकि गठबंधन ने केवल 54 सीटों पर जीत हासिल की थी. सपा ने जहां 47 सीटो पर विजय पाई थी तो वहीं कांग्रेस सात सीटों पर ही सिमट गई थी. इस तरह से कांग्रेस का यूपी में अब तक का ये सबसे खराब प्रदर्शन था को वहीं इसी चुनाव के बाद इस गठबंधन पर विराम लग गया था. तो वहीं साल 2019 के लोकसभा चुनाव से पहले सपा और बसपा के बीच गठबंधन हुआ था, जिसमें रालोद प्रमुख जयंत भी शामिल थे. इनके बीच सीटों का बंटवारा हुआ तो 37 सीटों पर सपा और 38 सीटों पर बसपा ने चुनाव लड़ा. तो वहीं इस बंटवारे में कई ऐसी सीटें जो पहले से सपा का गढ़ थी वो भी शेयरिंग के दौरान बसपा के खाते में चली गई थी. चुनाव का रिजल्ट आने के बाद दोनों ने मिलकर 15 सीटों पर जीत हासिल की थी. सपा ने 5 और बसपा ने 10 सीटों पर जीत हासिल की थी लेकिन ये गठबंधन भी बस यही तक सीमित था. इसके बाद गठबंधन टूट गया था.

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क्या होगा लोकसभा चुनाव से पहले?

तो वहीं अगर विधानसभा चुनाव साल 2022 को देखें तो इससे पहले सपा ने भाजपा के खिलाफ एक महागठबंधन बनाया था, जिसमें सपा के साथ आरएलडी, महान दल, सुभासपा, प्रसपा और अपना दल कमेरावादी ने हाथ मिलाया था. फिर चुनाव परिणाम आया, जिसमें सपा की स्थिति तो यूपी में सुधरी लेकिन महान दल, सुभासपा ने सपा का साथ छोड़ दिया. तो वहीं प्रसपा का सपा में विलय हो गया तो वहीं अपना दल कमेरावादी फिलहाल सपा के साथ अभी बनी हुई है. तो बीच में महान दल ने भी सपा से अलग होने की बात कही थी लेकिन फिर से वह अखिलेश के साथ ही दिखाई दिए. तो वहीं अब सवाल ये उठ रहा है कि, क्या लोकसभा चुनाव से पहले सीट शेयरिंग को लेकर सपा और कांग्रेस में बात बन पाएगी और अलायंस रहेगा या नहीं? फिलहाल अखिलेश ने कांग्रेस को 11 सीटों का प्रस्ताव दिया है और 16 सीटों पर अपने प्रत्याशी भी उतार दिए हैं. तो वहीं कांग्रेस 20 से 22 सीटें मांग रही है और इसे एकतरफा फैसला बता रही है. इन सबके देखते हु जहां एक तबका कह रहा है कि अखिलेश गठबंधन में सिर्फ अपनी मर्जी चलाते हैं और किसी की नहीं सुनते तो वहीं दूसरा तबका ये भी कहता है कि यूपी में सपा की स्थिति मजबूत है, ऐसे में उसे फैसला लेने का पूरा हक है. ऐसे में सवाल ये भी है कि आखिर अखिलेश के साथ बनते-बिगड़ते गंठबंधन के रिश्ते का दोषी कौन है?

-भारत एक्सप्रेस

 

Archana Sharma

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