नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) ने वर्ष 2000 से अब तक देश की लगभग 2.33 मिलियन हेक्टेयर वन क्षेत्र समाप्त होने संबंधी रिपोर्ट पर संज्ञान लिया है. उसने इस मुद्दे पर केंद्रीय पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय (MOEFCC), भारतीय सर्वेक्षण विभाग (SOI) और केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (CPCB) से उस मुद्दे पर जवाब मांगा है. रिपोर्ट में दावा किया गया है कि नष्ट वन क्षेत्र देश के कुल वन क्षेत्र का लगभग छह फीसदी है.
एनजीटी के अध्यक्ष जस्टिस प्रकाश श्रीवास्तव, न्यायिक सदस्य जस्टिस अरुण कुमार त्यागी और विशेषज्ञ सदस्य डॉ. ए. सेंथिल वेल ने एक संस्था ग्लोबल फारेस्ट वॉच (GFW) के आंकड़ों पर गौर किया, जो उपग्रह डेटा और अन्य स्रोतों का उपयोग करके वास्तविक समय में वन परिवर्तनों को ट्रैक करता है. आंकड़ों के अनुसार, देश ने वर्ष 2002 से 2023 तक 4,14,000 हेक्टेयर आर्द्र प्राथमिक वन खो दिया है, जो इसी अवधि में कुल वन आवरण नुकसान का 18 फीसदी है.
पीठ ने कहा कि यह मामला वन संरक्षण अधिनियम, 1980, वायु (प्रदूषण की रोकथाम और नियंत्रण) अधिनियम और पर्यावरण संरक्षण अधिनियम के उल्लंघन का संकेत देता है. इस दशा में खासकर एसओआई निदेशक वर्ष 2000 के बाद से उत्तर पूर्व के विशेष संदर्भ को ध्यान में रखते हुए देश की वन क्षेत्र की स्थिति को दर्शाने वाली रिपोर्ट पेश करें. उस रिपोर्ट में प्रत्येक पांच साल के अंतराल पर हुए वन क्षेत्र की हानि का डाटा दे. यह डाटा मार्च 2024 तक का हो. उसने इसके साथ ही सुनवाई 28 अगस्त के लिए स्थगित कर दिया.
रिपोर्ट में कहा गया है कि वर्ष 2001 से 2022 के बीच देश के वनों ने 1.12 गीगाटन कार्बन डाइ ऑक्साइड का उर्त्सजन किया. पेड़ बढ़ने के दौरान कार्बन डाइ ऑक्साइड अवशोषित करते हैं और खराब होने पर उत्सर्जित करते हैं. इससे जलवायु परिवर्तन में तेजी आती है. वृक्ष आवरण के नुकसान में मानव कारक व प्राकृतिक घटनाएं जैसे कटाई, आग और तूफान आदि हैं.
देश में वर्ष 2013 से 2023 तक वृक्ष आवरण का 95 फीसदी नुकसान प्राकृतिक वनों में हुआ है. ग्लोबल फारेस्ट वॉच डेटा के अनुसार, वर्ष 2001 से 2023 के बीच भारत में वन आवरण के नुकसान का 60 फीसदी हिस्सा पांच पूर्वोत्तर राज्यों में हुआ है. इसके साथ ही देश में वर्ष 2015 से 2020 तक प्रति वर्ष 6,68,000 हेक्टेयर वनों की कटाई की दर है, जो विश्व स्तर पर दूसरी सबसे अधिक है.
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-भारत एक्सप्रेस
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