नौकरशाह… यह शब्द जेहन में आते ही प्रशासनिक लाव-लश्कर, प्रोटोकॉल, हाई-सिक्यॉरिटी जैसी तस्वीरें सामने आती हैं. सिविल सर्विसेज की तैयारी करने वाले अधिकांश अभ्यर्थियों की भी सोच यही होती है कि नौकरशाह बनने के बाद एक बड़ा प्रशासनिक अमला सैल्यूट मारता फिरेगा. लेकिन, बिहार के अपर मुख्य सचिव (गृह) और बिहार के मुख्यमंत्री के प्रमुख सचिव इन तमाम सरकारी भौकालबाजी से खुद को अलग रखते हैं. डॉक्टर एस सिद्धार्थ यूं तो बिहार के सबसे ताकतवर नौकरशाह हैं. लेकिन, हाथ में जितना पावर है, उतनी विनम्रता और शील व्यवहार इन्हें बाकी अधिकारियों से अलग करता है.
बिहार के अतिरिक्त चीफ सेक्रेटरी एस सिद्धार्थ बाजारों में सब्जियां लेते दिखाई दे जाते हैं. न कोई प्रशासनिक तामझाम और न हीं कोई विशेष प्रोटोकॉल. अपने कामकाज के बाद एस सिद्धार्थ बेहद ही आम इंसान की तरह सड़क पर दिखाई देते हैं. देखकर कोई यह अंदाजा नहीं लगा सकता कि बिहार में तमाम शासकीय मामलों की कमान रखने वाला यह शख्स आम इंसान की तरह सड़क पर अपने रोजमर्रा के कामकाज कर रहा है.
एस सिद्धार्थ की जीवनशैली तमाम नए ब्यूरोक्रेट्स के लिए एक प्रेरणा है. क्योंकि, लोकतंत्र में शक्ति का मतलब सेवा से होता है. बतौर उच्च अधिकारी इनकी सेवा कामकाज में भी दिखाई देती है और इसके प्रति इनका समर्पण पूरी तरह दिखता है. इनके विभाग से जुड़ा हर कर्मचारी या अधिकारी न सिर्फ इनके कार्यशैली बल्कि इनके व्यवहार का विशेष तौर पर आभारी रहता है.
एस सिद्धार्थ की जीवनशैली पर संस्कृत का श्लोक बेहद सटिक बैठता है;
विद्यां ददाति विनयं,
विनयाद् याति पात्रताम् ।
पात्रत्वात् धनमाप्नोति,
धनात् धर्मं ततः सुखम् ॥
(यानी विद्या विनय देती है, विनय से पात्रता आती है, पात्रता से धन आता है, धन से धर्म होता है, और धर्म से सुख प्राप्त होता है.)
यह श्लोक एस सिद्धार्थ के जीवन में एक पड़ाव की तरह इनसे जुड़ा हुआ है. इनके व्यक्तित्व का विश्लषण करने पर साफ-साफ विद्या, विनय, धन और धर्म का दर्शन बखूबी देखने को मिलता है. आईआईटी और आईआईएम छोड़ सिविल सेवा से जुड़ना यह दर्शाता है कि इनके जीवन का महत्व पद, पैसा या प्रतिष्ठा ही नहीं बल्कि सेवा है. इस बात की तस्दीक इनके जानने वाले भी करते हैं.
यही वजह है कि कैमरों से दूर वह अपने निजी काम खुद करते हैं. व्यवहार में हनक की जगह सौम्यता और विनम्रता रहती है. सेवा के लिए तत्परता ही है कि तमाम नेता और मंत्री इनके प्रति विशेष सम्मान रखते हैं. मूल रूप से तमिलनाडु के रहने वाले एस सिद्धार्थ न सिर्फ बिहार की संस्कृति में रच-बस गए हैं. बल्कि, भाषा की बारीकी और इसके डायलेक्ट की भी बेहतर समझ रखते हैं. यही वजह है कि बिहार में चलने वाली अधिकांश लोकहित के योजनाओं में इनकी आंचलिक समाज की जमीनी समझ दिखाई देती है. यही नहीं डॉ. एस. सिद्धार्थ को हाल ही में हवाई जहाज उड़ाने का फ्लाइंग लाइसेंस भी मिला है.
-भारत एक्सप्रेस
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