PM Modi Adi Kailash Visit: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी हमेशा ही कुछ अनोखा करने के लिए जाने जाते रहे हैं. उन्होंने दुनिया के कई ऐसे देशों का दौरा किया है जो कि असल में भारत के पक्के मित्र थे, लेकिन कोई भारतीय पीएम वहां गया तक नहीं. देश में भी अपने कार्यों से मोदी सभी को चकित करते रहे हैं. कुछ ऐसा ही अब उनका उत्तराखंड दौरा भी होगा. यह दौरा इसलिए खास है क्योंकि इसके जरिए पीएम मोदी भक्ति और शक्ति दोनों का ही संदेश देंगे.
दरअसल, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इस महीने 11 औऱ 12 अक्टूबर को उत्तराखंड के पिथौरागढ़ जिले का दौरा करने वाले हैं. यह वो क्षेत्र है जो कि नेपाल और तिब्बत दोनों से सटा हुआ है और यहां की धरती को काफी अध्यात्मिक माना जाता रहा है. इतना ही नहीं, तिब्बत में ही कैलाश मानसरोवर भी है, जो कि भारत की बहुसंख्यक आबादी यानी हिंदुओं का प्रमुख धार्मिक स्थल है.
बता दें कि पीएम मोदी कैलाश मानसरोवर जाकर भगवान शिव के दर्शन करेंगे. इसके साथ ही वो कैलाश मानसरोवर की यात्रा करने वाले पहले भारतीय प्रधानमंत्री बन जाएंगे. पिथौरागढ़ के पास ही 16730 फुट पर स्थित लिपुलेख दर्रे से 1962 तक बेरोकटोक श्रद्धालु बाब शिव के इस धाम तक जाते थे. इसी दर्रे से चीन और भारत के बीच काफी व्यापारिक गतिविधियां भी होती है.
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1962 के भारत चीन युद्ध के चलते पिथौरागढ़ से होने वाली कैलाश मानसरोवर यात्रा बाधित हुई थी. वहीं व्यापारिक रिश्ते खत्म होने के बाद यहां कैलाश मानसरोवर यात्रा भी बाधित हो गई थी. ऐसे में जब यात्रा दोबारा शुरू हुई तो 1981 से श्रद्धालुओं को वीजा हासिल करने की शर्त रख दी गई. वहीं कोरोना के बाद से व्यापार और मानसरोवर की यात्रा पूरी तरह बंद है.
बता दें कि पहले इस मानसरोवर यात्रा को पूरी होने में कई महीनों का वक्त लगता था. 1981 के बाद फिर से शुरू हुई यह यात्रा 22 दिन में खत्म होने लगी. खास बात यह है कि इस दौरान कई तरह के प्रतिबंध भी लगा दिए गए. इसके चलते यात्रियों के कैलाश मानसरोवर की यात्रा करने की उम्मीदों को भी बड़ा झटका लगा. ऐसे में अब पीएम मोदी की कैलाश मानसरोवर की यात्रा पर जाना श्रद्धालुओं के लिहाज से काफी अहम है. माना जा रहा है कि इसके बाद यात्रा में होने वाली मुश्किलें कम हो जाएंगी.
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एक तरफ जहां पीएम मोदी इस यात्रा के जरिए भक्ति का संदेश देंगे, तो दूसरी ओर चीन को भारत की शक्ति का भी एहसास कराएंगे. चीन भारत के साथ कई क्षेत्रों में सीमा विवाद पर उलझा हुआ है. ऐसे में चीन के इतने समीप जाकर अपनी हनक दिखाना कूटनीतिक लिहाज से भारत के लिए सकारात्मक हो सकता है.
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