दो-तीन दिन पहले की बात है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने आवास पर पेरिस पैरालिंपिक में गए भारतीय खिलाड़ियों को मुलाकात के लिए आमंत्रित किया था. इसी मुलाकात के दौरान भाला फेंकने वाले एथलीट नवदीप सिंह ने प्रधानमंत्री से कहा कि सर मैं आपको कैप पहनाना चाहता हूं. इस पर प्रधानमंत्री ने बड़े ही सहज भाव से कहा कि तुम कैप पहनाना चाहते हो, तो मैं यहां बैठता हूं. तुम मुझे कैप पहनाओ. यह कहते हुए प्रधानमंत्री बड़े ही सहज भाव से अपेक्षाकृत छोटे कद के नवदीप सिंह के सामने जमीन पर बैठ गए, और नवदीप ने उन्हें कैप पहना दी. दूसरी ओर लोगों को वह दिन भी याद होगा, जब नरेंद्र मोदी ने मुख्यमंत्री रहते गुजरात के गांधी नगर में एक बार एक सार्वजनिक समारोह में एक मुस्लिम मौलाना के हाथों टोपी पहनने से इंकार कर दिया था.
इस घटना के कई वर्षों बाद प्रधानमंत्री मोदी ने उस घटना के बारे में पूछे गए एक सवाल पर कहा था कि मैं सिर्फ फोटो खिंचवाने या दिखावे के लिए मौलाना द्वारा दी गई टोपी नहीं पहन सकता था. मैं सिर्फ दिखावा कर लोगों की आंखों में धूल नहीं झोंकना चाहता. ये दो घटनाएं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के व्यक्तित्व को स्पष्ट करने के लिए काफी हैं. जहां उन्हें सहज होना होता है, वहां वे सहज भी हो जाते हैं, और जहां उन्हें दृढ़ता का परिचय देना होता है, वहां वे पूरी दृढ़ता के साथ खड़े भी दिखाई देते हैं.
हाल के राजनीतिक घटनाक्रमों में भी उनके व्यक्तित्व के ये पहलू साफ-साफ दिखाई देते रहे हैं, और संभवतः आगे भी देखे जा सकेंगे. अपने व्यक्तित्व के इन्हीं गुणों के कारण वह अपने प्रेरणास्रोत छत्रपति शिवाजी महाराज के पदचिह्नों पर चलते दिखाई देते हैं, जिनके चरणों में बैठकर उन्होंने वर्ष 2013 में राष्ट्रीय राजनीति में पूरी दृढ़ता के साथ चलने का संकल्प लिया था. इसमें कोई शक नहीं कि अब वे उसी पथ पर चलते दिखाई भी दे रहे हैं.
बात अयोध्या में श्रीराम मंदिर के निर्माण की हो, या कश्मीर से अनुच्छेद 370 समाप्त करने की ; मुस्लिम महिलाओं को तीन तलाक के चक्रव्यूह से बाहर निकालने की हो, या कोविड जैसी भीषण महामारी के दौरान ठोस कदम उठाकर अपने देश को स्वदेशी वैक्सीन उपलब्ध कराकर देश को आत्मनिर्भर बनाने की. कोविड महामारी के दौरान ही देश के 80 करोड़ लोगों को मुफ्त राशन की सुविधा उपलब्ध कराकर उन्होंने न सिर्फ गरीब लोगों को भुखमरी से बचाया, बल्कि सामान्य दिनों में जनहित की अनेकानेक योजनाओं के लाभ, बिना भेदभाव के आम जनता तक पहुंचाए हैं. इनमें निश्चित रूप से वह वर्ग भी बड़े पैमाने पर शामिल रहा है, जो खुलेआम उन्हें हराने की बात भी करता दिखाई देता है. लेकिन प्रधानमंत्री एक लोकसेवक की भूमिका निभाते हुए कभी ऐसे लोगों से भी भेदभाव करते दिखाई नहीं देते.
संभवतः उनके इन्हीं गुणों के कारण हाल के लोकसभा चुनाव में देश की जनता ने उन्हें तीसरी बार प्रधानमंत्री की कुर्सी पर बैठाया है. अनेक अंतरराष्ट्रीय साजिशों के बावजूद वे यह उपलब्धि हासिल करने में सफल रहे हैं. अब तीसरी बार प्रधानमंत्री पद की शपथ लेने के बाद न तो नरेंद्र मोदी अपने एजेंडे से पीछे हटे हैं, ना ही उनके विरुद्ध साजिशों का दौर रुकता दिखाई दे रहा है.
एक ओर लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी अपनी अमरीका यात्रा के दौरान भारत विरोधी बयान देते एवं निरंतर भारत के विरोध में लिप्त रहनेवाली शक्तियों से गलबहियां करते दिखाई दे रहे हैं, तो दूसरी ओर वक्फ बिल के मुद्दे पर देश भर में मुस्लिम समुदाय ‘क्यू आर कोड’ अभियान चलाता दिखाई दे रहा है. लेकिन ऐसे अभियानों की असलियत अब देश की जनता भी भलीभांति समझने लगी है. यही कारण है कि अमरीका में सिखों के संबंध में दिए गए राहुल गांधी के बयान के बाद पूरे देश का सिख समाज उनके बयान की निंदा करता दिखाई दिया है. लेकिन सिर्फ निंदा से ही बात बननेवाली नहीं है.
आम जन को यह समझना भी जरूरी है कि देश में अपेक्षित बदलावों के लिए केंद्र में 25-30 साल राष्ट्रवादी तेवरोंवाली सरकार की आवश्यकता है. यह बात वर्तमान में सत्तारूढ़ भाजपा की मार्गदर्शक संस्था राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का भी मानना है. चूंकि संघ के लिए राज सत्ता समाज के बदलाव का साधन है, इसलिए संघ चाहता है कि केंद्र में अगले 25-30 साल तक भाजपा की ही सरकार बनी रहे.
जाहिर है ऐसी सरकार की मजबूत नींव प्रधानमंत्री अपने दस वर्षों के शासनकाल में डाल चुके हैं. ठीक एक वर्ष पहले पुणे में तीन दिन चली राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की समन्वय बैठक में संघ के सभी शीर्ष पदाधिकारियों के साथ उसके 36 आनुषंगिक संगठनों के पदाधिकारी एवं प्रतिनिधियों ने भी भाग लिया था. इनमें एक संगठन भारतीय जनता पार्टी भी थी. बैठक के तीसरे दिन प्रेसवार्ता में जब संघ के सह सरकार्यवाह डा.मनमोहन वैद्य से पूछा गया कि भाजपा के 10 वर्ष के शासनकाल का आकलन संघ की दृष्टि से कैसा है, तो वैद्य ने तत्काल उत्तर दिया था कि सरकार की दिशा सही है, लेकिन अपेक्षित परिणाम के लिए 25-30 वर्षों का शासनकाल होने की आवश्यकता है.
उन्होंने आगे कहा कि इस शासनकाल में भारत अपनी सांस्कृतिक पहचान पर खड़ा हो रहा है. इसके कारण देश की विदेश नीति, रक्षा नीति, शिक्षा नीति, इन सब क्षेत्रों में बड़े बदलाव आए हैं. जिन्हें सारा विश्व महसूस कर रहा है. ये बदलाव भारत की सांस्कृतिक धरोहर को प्रकट कर रहे हैं.
मनमोहन वैद्य का कहना था कि इन बदलावों का आभास दुनिया को वर्ष 2014 के लोकसभा चुनाव परिणाम आते ही हो गया था. तब चुनाव परिणाम आने के चौथे दिन ही इंग्लैंड से प्रकाशित होनेवाले समाचार पत्र ‘संडे गार्डियन’ ने अपने संपादकीय में लिखा था कि भारत में ब्रिटिश राज का अंत सही मायनों में अब हो गया है.
प्रधानमंत्री के रूप में नरेंद्र मोदी को लगातार तीसरी बार सत्ता सौंपकर देशवासियों ने ‘संडे गार्डियन’की बात पर मुहर सी लगा दी है. वास्तव में एक ओर सांस्कृतिक विरासत के आधार पर अपनी विशेष पहचान बनाए रखना, दूसरी ओर दुनिया के साथ कदमताल करते हुए उसके साथ चलने लायक आर्थिक नीतियां बनाकर उन्हें लागू करना, मोदी सरकार ये संतुलन साधने में सफल रही है.
कुछ ही दिनों पहले रूस के राष्ट्रपति पुतिन द्वारा दिये गए रूस-यूक्रेन युद्ध से संबंधित एक बयान से विश्वमंच पर भारत की बढ़ती प्रतिष्ठा का भी अहसास होता है. अनुच्छेद 370, अयोध्या में श्रीराम मंदिर निर्माण, भारत की सांस्कृतिक पहचान एवं युवा भारत की आवश्यकताओं के अनुरूप शिक्षा नीति का निर्माण और समान नागरिक संहिता जैसे देशहित के मुद्दों पर मोदी सरकार बिना कोई समझौता किए आगे बढ़ रही है. सिर्फ केंद्र सरकार ही नहीं, प्रधानमंत्री मोदी के नेतृत्व में भाजपा शासित राज्य सरकारों ने भी राष्ट्रहित और जनहित के एजेंडों पर अमल किया है. जिसका लाभ भाजपा को हाल के लोकसभा चुनाव में मिला है और आगे भी मिलता रहेगा.
लेखक- आचार्य पवन त्रिपाठी महाराष्ट्र बीजेपी के उपाध्यक्ष हैं.
-भारत एक्सप्रेस
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