देश

POCSO Act के तहत दोष मान लेने का मतलब यह नहीं कि पुलिस का मामला ही सत्य है: दिल्ली हाइकोर्ट

दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा कि पॉक्सो अधिनियम (POCSO Act) के तहत अपराध की धारणा का मतलब यह नहीं कि पुलिस मामला दिव्य सत्य है. अदालत ने 17 वर्षीय बेटी पर गंभीर यौन उत्पीड़न करने के आरोपी को अग्रिम जमानत देते हुए यह टिप्पणी की.

जस्टिस अमित महाजन ने कहा कि अपराध की धारणा पूर्ण नहीं है और इसका खंडन किया जा सकता है और यह किसी अदालत को किसी आरोपी को जमानत देने के लिए अपने विवेक का प्रयोग करने से नहीं रोकता है.

अदालत एक पिता द्वारा दायर याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें पॉक्सो अधिनियम के तहत दर्ज एक मामले में अग्रिम जमानत की मांग की गई थी. इसमें आरोप लगाया गया था कि उसने अपनी 17 वर्षीय बेटी का गंभीर यौन उत्पीड़न किया था. आरोपी पर धारा 354/354बी/506(दो) और पॉक्सो अधिनियम की धारा 10 के तहत मामला दर्ज किया गया था.

सबूतों के आधार पर तथ्यों को स्थापित करें

अदालत ने कहा कि यह अभियोजन पक्ष का कर्तव्य है कि वह पहले सबूतों के आधार पर तथ्यों को स्थापित करे, जो अनुमान को संचालित करने के लिए आधार बनाएगा. इसमें कोई संदेह नहीं है कि गिरफ्तारी से पहले जमानत का आदेश नियमित तरीके से पारित नहीं किया जा सकता है, ताकि अभियुक्त को इसे ढाल के रूप में उपयोग करने की अनुमति मिल सके.

अदालत ने कहा कि साथ ही इस बात से भी इनकार नहीं किया जा सकता कि गिरफ्तारी के साथ बड़ी मात्रा में अपमान और बदनामी जुड़ी होती है. हिरासत में पूछताछ का उद्देश्य जांच में सहायता करना है और यह दंडात्मक नहीं है.

जस्टिस महाजन ने इस बात पर भी जोर दिया कि इसमें कोई संदेह नहीं है कि अभियोजक की गवाही ही आरोपी को दोषी ठहराने के लिए पर्याप्त हो सकती है और ऐसी गवाही पर तब तक भरोसा करने की आवश्यकता नहीं होगी, जब तक यह आत्मविश्वास को प्रेरित करती है. हालांकि, वर्तमान मामले में अदालत ने कहा कि एफआईआर दर्ज करने में देरी हुई है और नाबालिग लड़की के माता-पिता आपस में भिड़े हुए हैं, उन्होंने एक-दूसरे के खिलाफ कई शिकायतें दर्ज की हैं.

बच्चों को आसानी से बहकाया जा सकता है

अदालत ने कहा कि यह ध्यान में रखना होगा कि ऐसे मामलों में जहां पीड़ित एक बच्ची है, उसके बयान की बहुत सावधानी से जांच की जानी चाहिए, क्योंकि बच्चों को आसानी से बहकाया जा सकता है और ट्यूशन के लिए प्रवृत्त किया जा सकता है. यह भी हो सकता है कि यह बयान माता-पिता में से किसी एक के कहने पर दिया गया हो. यह अदालत का कर्तव्य है कि वह अन्य पुष्ट साक्ष्यों और परिस्थितियों की भी जांच और विश्लेषण करे जो मामले के लिए महत्वपूर्ण हैं.

जस्टिस महाजन ने आगे कहा कि यह आरोप नहीं लगाया गया है कि आरोपी व्यक्ति के भागने का खतरा है या जमानत पर रिहा होने पर वह सबूतों के साथ छेड़छाड़ करेगा. अगर ऐसी आशंकाएं उत्पन्न भी होती हैं, तो उचित जमानत की शर्तें रखकर उनका ध्यान रखा जा सकता है.

-भारत एक्सप्रेस

गोपाल कृष्ण

Recent Posts

Virat Kohli अगर शांत रहें और अपनी गति से खेलें, तो वे ठीक रहेंगे: शास्त्री

कोहली बांग्लादेश और न्यूजीलैंड के खिलाफ भारत के पांच घरेलू टेस्ट मैचों में सिर्फ एक…

8 hours ago

आयोग के फैसले से छात्रों में खुशी की लहर, कहा-‘हम जानते थे कि सीएम योगी हमारे पक्ष में खड़े होंगे’

यूपीपीएससी ने मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की पहल पर प्रतियोगी छात्रों की मांगों को ध्यान में…

8 hours ago

लश्कर-ए-तैयबा के लिए कथित तौर पर धन जुटाने के मामले में आरोपी जावेद अली को दिल्ली हाईकोर्ट से मिली जमानत

अली को नवंबर 2019 में लश्कर के एक ऑपरेटिव शेख अब्दुल नईम उर्फ सोहेल खान…

10 hours ago

उत्तर-पूर्वी दिल्ली हिंसा मामले में देवांगना कलीता की याचिका पर दिल्ली हाईकोर्ट ने पुलिस को नोटिस जारी किया

फरवरी 2020 में, तत्कालीन अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प की भारत यात्रा के साथ ही नागरिकता…

10 hours ago

सड़क हादसे में युवक की मौत के बाद परिजनों की पिटाई मामले में चार पुलिसकर्मी निलंबित, थाना प्रभारी लाइन हाजिर

मध्य प्रदेश में शिवपुरी के पुलिस अधीक्षक अमन सिंह राठौड़ ने बताया कि कोतवाली के…

10 hours ago

गुजरात: सूरत में तेंदुए को सुनाई गई उम्र कैद की सजा

सूरत जिले में फिलहाल तेंदुओं की संख्या 150 पर पहुंची है. बीते छह महीने में…

10 hours ago