Ayodhya Ram Mandir: आज 500 सालों का इंतजार खत्म हो रहा है और राम लला अपने जन्म स्थान पर विराजमान होने जा रहे हैं. तमाम मेहमान अपने राम लला की प्राण-प्रतिष्ठा का साक्षी बनने के लिए अयोध्या पहुंच गए हैं. बता दें कि, अयोध्या के राम मंदिर में रामलला की पूजा की एक प्राचीन परंपरा लम्बे वक्त से चली आ रही है. राम जन्मभूमि में पूजा करने की इस परंपरा को रामानंदी परंपरा (Ramanandi Tradition) कहते हैं. रामलला की पूजा इसी परंपरा के साथ लगातार की जा रही है और प्राण प्रतिष्ठा के बाद भी इसी परंपरा के अनुसार पूजा होगी. मालूम हो कि अयोध्या राम मंदिर को चलाने का काम भी रामानंदी संप्रदाय को सौंपा गया है. ऐसे में चलिए जानते हैं कि क्या है रामानंदी परंपरा और रामलला पूजा का विधि-विधान.
जानकारों के मुताबिक, रामानंदी संप्रदाय की स्थापना जात-पांत को दूर करके भक्तिभाव को बढ़ाने के लिए 15वीं सदी की गई थी. पूरे देश में इस संप्रदाय को मानने वाले लोग फैले हुए हैं. हाल ही में इस संप्रदाय की चर्चा जोरों पर हो रही है. क्योंकि रामलला की प्राण प्रतिष्ठा के बाद इसी विधि से रामलला का पूजन किया जाएगा. रामानंदी परंपरा के बारे में जानकारी मिलती है कि, यह एक वैष्णव परंपरा है जिसकी स्थापना स्वामी रामानंदाचार्य ने की थी. इस परंपरा में प्रभु श्रीराम को आराध्य देव माना गया है. चूंकि अयोध्या भगवान राम की नगरी है, इसीलिए यहां के अधिकतर मंदिरों में इसी परंपरा से पूजा की जाती है. इस संप्रदाय के लोग खुद को भगवान राम के बेटे लव और कुश का वंशज मानते हैं.
इस परंपरा को लेकर विशिष्टाद्वैत सिद्धांत कहता है कि हम सभी ईश्वर का ही हिस्सा हैं और सभी जीव के जन्म का उद्देश्य ईश्वर को पाना है. ईश्वर को पाने के लिए इस सिद्धांत में दो चीजों को जरूरी बताया गया है जो है अहंकार का त्याग और ईश्वर के प्रति अपना समर्पण. तो वहीं इस परंपरा को लेकर ऐसी मान्यता है कि, रामानंदी संप्रदाय का आरंभ भगवान श्रीराम से ही हुआ था. इस संप्रदाय को हिंदुओ के सबसे बड़े संप्रदाय में से एक माना जाता है. इस संप्रदाय को मानने वाले लोग शुद्ध शाकाहारी होते हैं और रामानंद के विशिष्टाद्वैत सिद्धांत के अनुसार चलते हैं.
तो वहीं श्रीरामजन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट द्वारा दी गई जानकारी के मुताबिक, रामानंदी परंपरा में समानता और भक्ति के मूल्यों को अधिक महत्व दिया गया है. ट्रस्ट ने बताया है कि, रामानंदी परंपरा के तहत रामलला की पूजा में उनके बालपन का ध्यान रखा जाएगा और उनका एक बच्चे की तरह लालन-पालन किया जाएगा और इसी विधि से उनका पूजन किया जाएगा. बता दें कि भारतीय संस्कृति और समाज को रामनंदी परंपरा ने कई तरह से प्रभावित किया है. इस परंपरा ने रामभक्ति की धारा और आस्था को समाज के हर वर्ग तक पहुंचाया है. इसीलिए इस परंपरा को मानने वालों की देश ही नहीं बल्कि विदेश में भी बड़ी संख्या है. यही कारण है कि राम मंदिर उद्घाटन और रामलला की प्राण-प्रतिष्ठा को लेकर विदेशों में भी बड़े स्तर पर कार्यक्रमो का आयोजन किया जा रहा है.
-भारत एक्सप्रेस
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