BBC Documentary: सुप्रीम कोर्ट ने 2002 के गुजरात दंगों पर आधारित बीबीसी के वृत्तचित्र को प्रतिबंधित करने के फैसले को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर शुक्रवार को केंद्र सरकार से जवाब तलब किया. न्यायमूर्ति संजीव खन्ना और न्यायमूर्ति एम एम शाह की पीठ ने वरिष्ठ पत्रकार एन राम, तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) की सांसद महुआ मोइत्रा और कार्यकर्ता एवं अधिवक्ता प्रशांत भूषण की ओर से दायर याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए केंद्र और अन्य को नोटिस जारी किया.
पीठ ने अधिवक्ता एम एल शर्मा की याचिका पर भी नोटिस जारी किया. शीर्ष अदालत ने केंद्र सरकार को प्रतिबंध संबंधी आदेश के मूल रिकॉर्ड पेश करने का निर्देश भी दिया. पीठ ने कहा, “हम नोटिस जारी कर रहे हैं. जवाबी हलफनामा तीन हफ्ते के भीतर दाखिल किया जाना चाहिए. प्रत्युत्तर उसके दो हफ्ते के बाद दिया जाना चाहिए.” मामले में अगली सुनवाई अप्रैल में होगी.
BBC डॉक्यूमेंट्री पर वरिष्ठ अधिवक्ता और राज्यसभा सांसद महेश जेठमलानी ने कहा कि यह दिख रहा है कि BBC चीनी स्वामित्व वाली कंपनियों के माध्यम से पूरी तरह से चीन के साथ आर्थिक रूप से जुड़ा है. डॉक्यूमेंट्री मूल रूप से चीन से प्रेरित है, उनके पास भारत विरोधी प्रचार प्रसार का एक लंबा इतिहास है.
हाल ही में बीबीसी की डॉक्यूमेंट्री को बैन करने के बाद देश में काफी हो हंगामा हुआ. बैन के बावजूद कई राज्यों की यूनिवर्सिटी में डॉक्यूमेंट्री की स्क्रीनिंग की गई. दिल्ली के प्रतिष्ठित जेएनयू, डीयू, कोलकाता के अलावा हैदराबाद यूनिवर्सिटी में डॉक्यूमेंट्री पर बैन को लेकर विरोध के स्वर मुखर दिखे. यूनिवर्सिटी जंग के अखाड़े में तब्दील हो गईं. लेफ्ट और राइट विंग के छात्रों के बीच टकराव देखा गया. विचारधारा की लड़ाई एक बार फिर खुलकर सामने आ गई. विश्वविद्यालयों में जहां छात्र गुटों के बीच तलवारें खिंच गई थी तो वहीं 21 जनवरी को डॉक्यूमेंट्री को बैन करने के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में अर्जी लगाई गई. बीबीसी डॉक्यूमेंट्री की स्क्रीनिंग पर प्रतिबंध लगाने के फैसले को चुनौती दी गई है. वरिष्ठ पत्रकार एन राम, वकील प्रशांत भूषण और टीएमसी नेता महुआ मोइत्रा ने डॉक्यूमेंट्री बैन करने के खिलाफ याचिकाएं दायर की हैं.
गौरतलब है कि बीबीसी की विवादित डॉक्यूमेंट्री इंडिया द मोदी क्वेश्चन साल 2002 में गोधरा कांड के बाद गुजरात में हुए दंगों को लेकर है. उस वक्त नरेंद्र मोदी गुजरात के मुख्यमंत्री थे. हालांकि अदालत की तरह से तत्कालीन सरकार को क्लीन चिट मिल चुकी है. सुप्रीम कोर्ट खुद दंगों पर बनी SIT रिपोर्ट के खिलाफ दाखिल याचिका को खारिज कर चुकी है.
-भारत एक्सप्रेस
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