Supreme Court: महाराष्ट्र के सियासी संकट पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने अहम टिप्पणी की. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि उद्धव ठाकरे (Uddhav Thackeray) को मुख्यमंत्री के रूप में बहाल नहीं किया जा सकता क्योंकि उन्होंने सदन में बहुमत साबित होने से पहले ही इस्तीफा दे दिया था. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि महाराष्ट्र में यथास्थिति बहाल नहीं की जा सकती क्योंकि उद्धव ठाकरे ने फ्लोर टेस्ट का सामना नहीं किया और अपना इस्तीफा दे दिया. सुप्रीम कोर्ट की इस टिप्पणी के बाद उद्धव ठाकरे को अपने इस्तीफे पर मलाल जरूर होगा क्योंकि अगर उन्होंने इस्तीफा नहीं दिया होता तो वे महाराष्ट्र के फिर से महाराष्ट्र के सीएम भी बन सकते थे.
फिलहाल, सुप्रीम कोर्ट की इस टिप्पणी के बाद सीएम एकनाथ शिंदे को राहत मिली है और वे अपने पद पर बने रहेंगे. महाराष्ट्र के सियासी संकट पर सुनवाई करते हुए कोर्ट ने शिवसेना विधायकों के एक धड़े के उस प्रस्ताव को मानने के लिए राज्यपाल को गलत ठहराया जिसमें कहा गया कि उद्धव ठाकरे के पास बहुमत नहीं रहा.
कोर्ट ने कहा कि राज्यपाल के पास ऐसा कोई संचार नहीं था जिससे यह संकेत मिले कि असंतुष्ट विधायक सरकार से समर्थन वापस लेना चाहते हैं. राज्यपाल ने शिवसेना के विधायकों के एक गुट के प्रस्ताव पर भरोसा करके यह निष्कर्ष निकाला कि उद्धव ठाकरे अधिकांश विधायकों का समर्थन खो चुके हैं.
महाराष्ट्र के मामले पर सुनवाई करते हुए कोर्ट ने कहा कि आंतरिक पार्टी के विवादों को हल करने के लिए फ्लोर टेस्ट का इस्तेमाल नहीं किया जा सकता है. न तो संविधान और न ही कानून राज्यपाल को राजनीतिक क्षेत्र में प्रवेश करने और अंतर-पार्टी या अंतर-पार्टी विवादों में भूमिका निभाने का अधिकार देता है.
कोर्ट ने यह भी कहा कि स्पीकर को राजनीतिक दल द्वारा नियुक्त व्हिप को ही मान्यता देनी चाहिए. वहीं गोगावाले (शिंदे गुट) को शिवसेना पार्टी के व्हीप चीफ नियुक्त करने का स्पीकर के फैसले भी सुप्रीम कोर्ट ने अवैध ठहराया.
महाराष्ट्र के राजनीतिक संकट पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई के बाद अधिवक्ता अभिषेक सिंघवी ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने व्हिप गोगावले की नियुक्ति को गलत माना है और कहा है कि व्हिप सिर्फ राजनीतिक पार्टी की हो सकती है न की विधायिका पार्टी की. अब स्पीकर को जल्द से जल्द अयोग्यता याचिका पर फैसला करना होगा.
बता दें कि शीर्ष अदालत ने विधायकों को अयोग्य करार देने के संबंध में विधानसभा अध्यक्ष के अधिकार से जुड़े पांच जजों की संविधान पीठ के 2016 के नबाम रेबिया फैसले को सात जजों की बड़ी पीठ को भी भेज दिया है.
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