सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार (7 मई) को पश्चिम बंगाल के सरकारी और सरकारी सहायता प्राप्त स्कूलों में 25,000 से अधिक शिक्षण और गैर-शिक्षण पदों को समाप्त करने के कलकत्ता हाईकोर्ट के आदेश पर रोक लगा दी.
यह निर्णय उन हजारों व्यक्तियों के लिए राहत के रूप में आया, जिनकी नौकरियां बीते 22 अप्रैल को हाईकोर्ट के फैसले के बाद खतरे में थीं, जिसने पश्चिम बंगाल के राज्य-संचालित और राज्य-सहायता प्राप्त स्कूलों में 25,753 शिक्षकों और गैर-शिक्षण कर्मचारियों की नियुक्ति को अमान्य कर दिया था. हालांकि, शीर्ष अदालत ने कथित स्कूल भर्ती घोटाले की सीबीआई जांच पर रोक लगाने से इनकार कर दिया.
हाईकोर्ट के फैसले को चुनौती देने वाली याचिकाओं की एक श्रृंखला पर सुनवाई करते हुए मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस मनोज मिश्रा की पीठ ने कहा कि अगर सीबीआई द्वारा जांच किए गए लगभग 8,000 शिक्षकों के खिलाफ मामला साबित हो जाता है, तो उन पर हाईकोर्ट का आदेश लागू होगा और उन्हें अपना वेतन वापस करना होगा.
अब शीर्ष अदालत 16 जुलाई को इस मामले की अगली सुनवाई करेगा.
पश्चिम बंगाल सरकार ने कलकत्ता हाईकोर्ट के आदेश को चुनौती देते हुए कहा था कि उसने नियुक्तियों को ‘मनमाने ढंग से’ रद्द कर दिया है. राज्य ने वकील आस्था शर्मा के माध्यम से दायर अपनी अपील में कहा, ‘हाईकोर्ट ने शिक्षकों और गैर-शिक्षण कर्मचारियों की सभी नियुक्तियों को रद्द करने के लिए सरसरी तौर पर कार्रवाई की है, इस तथ्य की पूरी तरह से उपेक्षा करते हुए कि इससे राज्य के स्कूलों में एक बड़ा शून्य पैदा हो जाएगा, जब तक एसएससी द्वारा नई चयन प्रक्रिया पूरी नहीं की जाती है, खासकर जब नया शैक्षणिक सत्र चरम पर है, तो इस फैसले का छात्रों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा.’
अदालत ने कहा कि यह सिस्टमैटिक फ्राॅड का मामला है. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अधिकारी 25,753 शिक्षकों और गैर शिक्षण कर्मचारियों की नियुक्ति से संबंधित डिजिटल रिकॉर्ड बनाए रखने के लिए बाध्य है. अदालत ने पश्चिम बंगाल सरकार की ओर से पेश वकील से पूछा कि सार्वजनिक नौकरी बहुत कम है. अगर जनता का विश्वास चला गया तो कुछ नहीं बचेगा. यह व्यवस्थागत धोखाधड़ी है.
शीर्ष अदालत ने कहा कि सरकारी नौकरियां बेहद कम हैं और उन्हें सामाजिक गतिशीलता के रूप में देखा जाता है. अगर उनकी नियुक्तियों को भी बदनाम कर दिया जाए तो सिस्टम में क्या रह जाएगा. लोग विश्वास खो देंगे. आप इसे कैसे स्वीकार करेंगे.
अदालत ने कहा कि राज्य सरकार के पास यह दिखाने के लिए कुछ भी नहीं है कि डेटा उसके अधिकारियों द्वारा बनाए रखा गया था और इसकी उपलब्धता के बारे में पूछा गया था. अदालत ने राज्य सरकार के वकीलों से कहा कि या तो आपके पास डेटा है या आपके पास नहीं है. आप दस्तावेजों को डिजिटल रूप में बनाए रखने के लिए बाध्य थे. अब यह स्पष्ट है कि कोई डेटा नहीं है. आप इस तथ्य से अनजान है कि आपका सेवा प्रदाता एक अन्य एजेंसी को नियुक्त किया है. पश्चिम बंगाल सरकार की ओर से पेश वकील ने कोलकाता हाईकोर्ट के आदेश का हवाला देते हुए पूछा कि क्या इस तरह के आदेश को कायम रखा जा सकता है. उन्होंने तर्क दिया कि यह सीबीआई का भी मामला नहीं है कि सभी 25,000 नियुक्तियां अवैध हैं.
वही स्कूल सेवा आयोग का प्रतिनिधित्व करने वाले वकील ने तर्क दिया कि हाईकोर्ट की पीठ के पास नौकरियां रद्द करने का अधिकार क्षेत्र नहीं था और उसके इस मामले में शीर्ष अदालत के फैसलों के विपरीत थे. जब कोर्ट ने पूछा कि क्या ओएमआर शीट और उत्तर पुस्तिका की स्कैन की गईं प्रतियां नष्ट कर दी गई हैं, तो उन्होंने सकारात्मक जवाब दिया.
पिछली सुनवाई में सीजेआई ने मामले की सुनवाई के दौरान टिप्पणी करते हुए कहा था कि जो लोग पैनल में नहीं थे, उन्हें भर्ती कर लिया गया. यह पूरी तरह से धोखाधड़ी है. हाईकोर्ट ने नियुक्तियां अमान्य करते हुए कहा था कि जिन लोगों को SSC पैनल की समाप्ति के बाद नौकरी मिली, उन्हें जनता के पैसे से भुगतान किया गया.
कोर्ट ने कहा सभी की चार हफ्ते के अंदर ब्याज सहित वेतन लौटना होगा. सभी को 12 फीसदी सालाना ब्याज के साथ पैसा लौटना होगा. कोर्ट ने 15 दिनों के अंदर प्रक्रिया शुरू करने का निर्देश दिया है. बता दें कि हाईकोर्ट ने राज्य चयन परीक्षा, 2016 की स्कूल सेवा आयोग भर्ती प्रक्रिया को अमान्य घोषित कर दिया.
पश्चिम बंगाल सरकार द्वारा दायर याचिका में कहा गया है कि हाईकोर्ट के फैसले से एक बड़ा शून्य पैदा हो गया है. बंगाल सरकार ने अपनी याचिका में यह भी कहा है कि यह फैसला तथ्य की पूरी तरह से उपेक्षा करते हुए दिया गया है.
मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने कहा है कि हम उन लोगों के साथ खड़े हैं, जिन्होंने नौकरियां खो दी. हम यह सुनिश्चित करेंगे कि आपको न्याय मिले. बता दें कि 24,640 रिक्त पदों के लिए 23 लाख से अधिक अभ्यर्थियों ने 2016 SLST परीक्षा दी थी.
कुछ याचिकाकर्ताओं की ओर से पेश वकील फिरदौस शमीम ने कहा कि इन रिक्तियों के लिए कुल 25, 753 नियुक्ति पत्र जारी किए गए थे. गौरतलब है कि इसी शिक्षक भर्ती घोटाले मामले में तत्कालीन शिक्षा मंत्री पार्थ चटर्जी, दो विधायकों मानिक भट्टाचार्य व जीबन कृष्ण साहा और पार्टी के कई नेताओं कुंतल घोष, शांतनु बंधोपाध्याय, सुजय कृष्ण भद्र अन्य को गिरफ्तार किया गया है.
-भारत एक्सप्रेस
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