सुप्रीम कोर्ट मनी लॉन्ड्रिंग एक्ट के तहत ईडी को दी गई शक्तियों के बरकरार रखने के सुप्रीम कोर्ट के फैसले के खिलाफ दायर पुर्नविचार याचिका पर 23 जुलाई को सुनवाई करेगा. सुप्रीम कोर्ट ने इसके लिए तीन जजों की बेंच का गठन किया है.
कोर्ट मनी लॉन्ड्रिंग एक्ट को कुछ प्रावधानों का दोबारा परीक्षण करेगा. पीएमएलए एक्ट और इसके तहत ईडी को मिली शक्ति पर सवाल उठाए गए है जिसका कोर्ट द्वारा परीक्षण किया जाना है.
जस्टिस संजीव खन्ना, जस्टिस एमएम सुंदरेश और जस्टिस बेला त्रिवेदी की अध्यक्षता वाली स्पेशल बेंच 86 याचिकाओं पर सुनवाई करेगी. कोर्ट को यह देखना है कि ईडी की धन शोधन में शामिल संपत्ति को कुर्क करने और गिरफ्तारी की शक्तियों को बरकरार रखने संबंधी 2022 के फैसले को लेकर उसे केवल यह देखना है कि क्या उस पर पांच न्यायधीशों की संविधान पीठ के पुनर्विचार की आवश्यकता है.
केंद्र सरकार की ओर से बताया गया था कि धन शोधन निवारण अधिनियम देश के लिए एक महत्वपूर्ण कानून है. वही याचिकाकर्ता ने दावा किया है कि ईडी एक बेलगाम घोड़ा बन गया है और जहां चाहे वहां जा सकता है.
याचिकाकर्ता ने कहा था कि 2021 से अब तक पीएमएलए के तहत अभी तक सिर्फ 9 लोगों को दोषी करार दिया गया है. 1700 रेड हुए हैं और 1569 मामले में छानबीन हुई है. पीएमएलए के तमाम प्रावधानों में खामियां है. याची ने कहा कि मामले की छानबीन की शुरुआत और समन कब हो इसके लिए प्रावधान में कमी है.
ECIR की कॉपी आरोपी को गिरफ्तारी के वक्त शेयर नहीं कि जाती है और आरोपी को पता नहीं होता है कि उनके खिलाफ गिरफ्तारी के लिए पता नहीं होता है कि उनके खिलाफ गिरफ्तारी के लिए क्या मैटेरियल एजेंसी के पास है. सीआरपीसी की धारा 157 के तहत मैजिस्ट्रेट को भी पता नही होता है कि गिरफ्तारी क्यों हुई है.
गौरतलब है कि सुप्रीम कोर्ट ने 27 जुलाई 2022 को फैसला दिया था. कोर्ट ने ईडी की गिरफ्तारी, संपत्ति अटैचमेंट और सीज करने के अधिकार को पीएमएलए के तहत वैध करार दिया है. कोर्ट ने पीएमएलए की धारा-5, 8(4),15, 17, 19, 45 और 50 को वैध करार दिया था.
इसके तहत ईडी को अधिकार है कि वह संपत्ति मो अटैच कर सके, आरोपी की गिरफ्तारी कर सके, सर्च कर सके और अवैध संपत्ति को सीज कर सके. सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि धारा-45 के तहत जमानत की कड़ी शर्त वाले प्रावधान सही है.
जमानत के लिए ट्विन टेस्ट के कड़े प्रावधान बरकरार है. सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा था कि आरोपी की गिरफ्तारी के वक्त उसे ECIR देने की अनिवार्यता नहीं है और साथ ही आरोपी पर निर्दोष साबित करने का दबाव डाले जाने के प्रावधान को दोबारा देखने की जरूरत है.
कोर्ट ने कहा
सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि ईडी को आरोपी की गिरफ्तारी के समय लिखित में गिरफ्तारी का आधार बताना चाहिए. ईडी के तमाम एक्शन में पारदर्शिता दिखनी चाहिए. सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि ईडी के समन के बावजूद उसे सहयोग न करना गिरफ्तारी का आधार नही हो सकता है. ईडी यह उम्मीद नही पाल सकती है कि जिस आरोपी को समन जारी किया गया है वह अपने गुनाह को कबूल कर ले.
-भारत एक्सप्रेस
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