Swami Vivekanand Birth Anniversary: युवा शक्ति पहचानाने का श्रेय अगर किसी शख्सियत को जाता है, तो वो हैं स्वामी विवेकानंद. इतना ही नहीं, पश्चिमी देशों में योग की शिक्षा का ज्ञान भी उन्होंने ही फैलाया. स्वामी जी ने हिंदू धर्म के प्रचार- प्रसार में भी महत्वपूर्ण भूमिका अदा की. स्वामी विवेकानंद एक सच्चे देशभक्त होने के साथ-साथ काफी आध्यात्मिक भी थे. मात्र 25 वर्ष की अल्प आयु में ही स्वामी जी संन्यासी बन गए थे. चार जुलाई 1902 को उन्होंने रामकृष्ण मठ में महासमाधि धारण की और पंचतत्व में विलीन हो गए.
स्वामी विवेकानंद का जन्म 12 जनवरी 1863 में कोलकाता में हुआ था. स्वामी विवेकानंद जी का असली नाम नरेंद्रनाथ दत्त था. उनके पिताजी विश्वनाथ दत्त कोलकाता हाई कोर्ट में वकील थे. उनकी माता भुवनेश्वरी देवी काफी आध्यात्मिक थी. बचपन में मां के साथ रहने की वजह से ही उनका झुकाव आध्यात्म की तरफ हुआ. वहीं उनके पिता आधुनिक सोच के व्यक्ति थे. जो उन्हें बहादुर और आत्मनिर्भर बनाना चाहते थे. माता-पिता के संस्कार और गुणों ने उनके व्यक्तित्व को और निखारने का काम किया.
विवेकानंद जी बचपन से ही बहुत बुद्धिमान थे. साल 1869 में करीब 16 वर्ष की आयु में उन्होंने कलकत्ता यूनिवर्सिटी में पहले ही कोशिश में प्रवेश परीक्षा पास कर ली थी. उस वक्त इस परीक्षा में सफल होकर कलकत्ता विश्व विद्यालय में प्रवेश पाना काफी बड़ी बात मानी जाती थी. स्वामी विवेकानंद ने अपनी पढ़ाई पूरी कर कलकत्ता यूनिवर्सिटी से ही अपनी स्नातक की डिग्री ली थी. कलकत्ता यूनिवर्सिटी में ही उनकी मुलाकात परमहंस महाराज जी से हुई थी. परमहंस जी से मुलाकात के बाद ही स्वामी विवेकानंद बह्म समाज से जुड़े.
प्रत्येक वर्ष 12 जनवरी के दिन युवा दिवस मनाया जाता है. भारत सरकार ने 1985 से 12 जनवरी को युवा दिवस मनाने की घोषणा की थी. दरअसल स्वामी विवेकानंद के विचार, आर्दश और जीवन मूल्यों को युवाओं तक पहुंचाने के लिए युवा दिवस मनाया जाता है. इस मौके पर कई तरह के कार्यक्रमों का आयोजन किया जाता है. जिससे उनकी सोच और विचार युवाओं तक आसानी से पहुंचे सके और युवा आसानी से उन्हें अपने जीवन में आत्मसात कर जिंदगी और देश की प्रगति में सार्थक योगदान दे पाएं.
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स्वामी विवेकानंद जी के ओजस्वी विचारों की बात करें तो वो कहते थे कि उठो, जागो और तब तक मत रुको जब तक की लक्ष्य की प्राप्ति ना हो जाएं, दिल और दिमाग में किसी बात पर कशमकश हो तो सदैव अपने दिल की सुनो, स्वामी जी आत्मविश्वास, आत्म सुधार, ज्ञान की खोज और दूसरों की सेवा करने का ज्ञान लोगों में बांटते थे. उनका मानना था कि हर जीव में भगवान का वास है.
एक बार उन्हे शिकागो की धर्म संसद में भाषण देना था. भाषण के लिए उन्हें मात्र दो मिनट मिले. ये उनकी ही कुव्वत थी कि दो मिनट तक उनके भाषण के दौरान लगातार तालियां बजती रहीं. उनके इस भाषण के बाद ही उन्हें विश्व स्तर पर ख्याति अर्जित हुई. दो मिनट में उन्होंने भारत की आध्यमिकता, हिन्दुत्व और ज्ञान से दुनिया को अवगत करा दिया. जिसके बाद भारत को दुनिया में एक अलग और नई पहचान मिली.
-भारत एक्सप्रेस
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