वाराणसी के गांव में हिंदू धर्म में मरने के बाद होने वाले कर्मकांड को त्यागने का फैसला लिया गया है. पचायत स्तर पर बकायदा एक रिजॉल्यूशन पारित करके “तेरहवीं” का भोज नहीं कराने का फैसला लिया गया है. गांव ने यह फैसला किया गया है कि अगर कोई तेरहवीं का भोज कराता है तो पूरा गांव उसका बायकॉट करेगा. गौरतलब है कि यह फैसला सर्वसम्मति से पारित किया गया है.
वाराणसी के हरहुवा ब्लॉक के अंतर्गत वाजिदपुर गांव के लोगों ने यह क्रांतिकारी कदम उठाया है. ग्रामीणों ने फैसला किया है कि तेरहवी का भोज न कराकर वह पैसा बचाया जाएगा. संबंधित परिवार 13वीं के पैसे से गरीब परिवारों की मदद करेगा. इसमें सबसे ज्यादा तवज्जो गरीब परिवारों के बच्चों की पढ़ाई-लिखाई का खर्चा उठाने पर दिया गया है.
ग्रामीणों का मानना है कि परिजनों की मृत्यु के बाद भोज कराना पैसे की बर्बादी है. लिहाजा, इन पैसों का सदुपयोग गरीब बच्चों की पढ़ाई पर खर्च करके किया जाएगा. साथ ही तेरहवीं वाले दिन स्वर्गवासी परिजन पर्यावरण को बेहतर बनाने के लिए पौधा-रोपड़ करेंगे.
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वाजिदपुर गांव के लोगों ने यह फैसला श्यामा यादव नाम के बुजुर्ग के देहांत के बाद लिया. श्यामा यादव गांव के मौजूदा प्रधान लमन यादव के पिता थे. 4 जून को हुए निधन के बाद लमन यादव के नेतृत्व में ग्रामीण एकत्र हुए और तेरवहीं का भोज नहीं कराने का फैसला किया. उनका मानना है कि इससे बचे पैसों से गरीबों की बेहतरी के लिए काम किया जाएगा.
तेरवहीं का भोज नहीं कराने का फैसला कई मायनों में काफी सहसी माना जा रहा है. क्योंकि, हिंदू धर्म के अनुसार पितरों की शांति के लिए इसका कराया जाना अनिवार्य माना जाता है. लेकिन, वाजिदपुर के लोगों ने इसे एक रूढ़ीवादी परंपरा का हिस्सा बताया है. उनके मुताबिक भोज कराने से बेहतर बुजुर्ग के नाम पर लोगों की मदद करना बेहतर है.
गांव के प्रधान और इस फैसले के लिए पहल करने वाले लमन यादव ने अंग्रेजी अखबार ‘द इंडियन एक्सप्रेस’ को इंटरव्यू दिया है. उन्होंने बताया है, “कुछ ग्रामीण मेरे घर पर शोक प्रकट करने पहुंचे और उन्होंने ही तेरहवीं का भोज नहीं कराने का सुझाव दिया. उन्होंने कहा कि यह नई परंपरा मेरे घर से ही शुरू हो. लेकिन, तेरहवीं की परंपरा सदियों से चली आ रही थी और मेरे अकेले के फैसले से बंद नहीं हो सकती. लिहाजा, मैंने ग्रामीणों से आग्रह किया कि वे पंचायत भवन में एक मीटिंग का आयोजन करें. मीटिंग में एक रिजॉल्यूशन पारित किया गया और सभी ने एक मत होकर ब्रह्म भोज (तेरहवीं) का बायकॉट करने का सामूहिक फैसला लिया. इस फैसला किसी ने भी विरोध नहीं किया.” \
यादव ने कहा, “16 जून को होने वाले ब्रह्म भोज (तेरहवीं) के दिन हमने शोक प्रकट करने वालों के लिए सिर्फ पानी पीने की व्यवस्था की थी. इसके बाद हम चारों भाइयों ने अपने पिता किया याद में गांव में पेड़-पौधों को लगाने का काम किया.” गौरतलब है कि लमन यादव औपचारिक रूप से समाजवादी पार्टी से जुड़े हैं और हरहुआ ब्लॉक के प्रधान समिति के अध्यक्ष भी हैं. इनका दावा है कि उनकी समिति से 80 गावों के प्रधान जुड़े हैं और सभी ने इनसे मुलकात करके इस पहल की सराहना की है.
वाजिदपुर गांव के ही रहने वाले और जिला पंचायत सदस्य मूलचंद यादव ने इस काम की सरहना की. उनका कहना था कि एक तेरहवीं करने में कम से कम 50 हजार रुपये का खर्च आता है. गांव की अधिकांश आबादी बेहद गरीब है और उसके लिए यह राशि काफी ज्यादा है. अंग्रेजी अखबार “द इंडियन एक्सप्रेस” में छपे एक इंटरव्यू में उन्होंने बताया, ” वे (ग्रामीण) पहले अपने परिजन के इलाज में पैसे खर्च करते हैं और निधन के बाद ब्रह्म भोज का आयोजन करते हैं. इसके लिए परिवार के लोग अपनी हाड़-तोड़ और खून-पसीने की कमाई झोंक देते हैं. कई लोग तो ब्याज पर पैसे लेते हैं या फिर उन्हें जमीन बेचनी पड़ जाती है. यदि तेरहवीं को खत्म कर दिया जाता है, तो ये परिवार पैसे उपयोग अपने जीवन-यापन और बच्चों की पढ़ाई-लिखाई में खर्च करेगा.”
फिलहाल, इस साहसिक और सकारात्मक बदलाव वाले फैसले की पूरे वाराणसी जिले में चर्चा है. जो लोग सामाजिक सुधार का लोहा लेने का ख्याल बनाते हैं या फिर बौद्धिक बहसों में चर्चा करते फिरते हैं… वो पहल वाजिदपुर गांव के लोगों ने असल में करके दिखा दिया है.
-भारत एक्सप्रेस
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