दिल्ली हाईकोर्ट ने विभिन्न कल्याणकारी गतिविधियों के लिए दिल्ली नगर निगम (MCD) के पार्षदों को प्रति वर्ष आवंटित होने वाली राशि को 15 करोड़ रुपए करने का दिल्ली सरकार को निर्देश देने से इनकार कर दिया. वर्तमान में उक्त राशि सलाना एक करोड़ रुपए है. राशि बढ़ाने की मांग पाषर्द सोनाली ने की थी और जनहित याचिका दाखिल की थी.
मुख्य न्यायाधीश मनमोहन एवं न्यायमूर्ति तुषार राव गेडेला की पीठ ने याचिकाकर्ता के वकील से कहा कि आप अपनी शिकायत सदन में उठाएं. इस मुद्दे के लिए अदालत उपयुक्त मंच नहीं है. हम बजट नहीं बढा सकते.. सदन को ध्वनिमत से प्रस्ताव पारित करने दें. हम यह तय नहीं करते कि बजट का आवंटन कैसे किया जाए या खर्च कैसे किया जाए.
पीठ ने इस बात पर भी आश्चर्य व्यक्त किया कि विधायक और पार्षद अपनी शिकायतों को लेकर अदालतों का दरवाजा खटखटा रहे हैं. वे इस मुद्दे को सदन में या जनता के सामने उठाएं. पीठ ने यह भी कहा कि मुझे दिल्ली हाईकोर्ट के लिए बजट नहीं मिल रहा है. क्या आपको लगता है कि मैं इसके लिए बजट ला सकता हूं? इस मुद्दे को सदन और जनता के सामने उठाइए. आप एक जनप्रतिनिधि हैं.
उक्त टिप्पणी के बाद याचिकाकर्ता सिद्धार्थ नगर के पार्षद सोनाली के वकील ने कोर्ट से अपनी जनहित याचिका वापस लेने की अनुमति मांगी जिसे कोर्ट ने स्वीकार करते हुए उसे वापस मानते हुए निपटा दिया. याचिका में पाषर्दों को आवंटित अपर्याप्त निधि को लेकर चिंता जताई गई थी. उसमें कहा गया था कि इससे उनके वैधानिक कर्तव्यों के निर्वहन में बाधा उत्पन्न हो रही है. जबकि विधायकों को 15 करोड़ रुपए सालाना दिए जाते हैं लेकिन पार्षदों को सालान एक करोड़ रुपए ही मिलते हैं. यही रकम दशकों से मिलता रहा है. इसलिए सरकार से उस रकम को बढ़ाने का निर्देश दिया जाए.
-भारत एक्सप्रेस
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