दिल्ली पुलिस के कांस्टेबल की हत्या के मामले में गिरफ्तार तीन लोगों को रोहिणी कोर्ट ने संदेह का लाभ देते हुए बरी कर दिया है. यह हत्या 26 सितंबर 2015 को हुई थी. रोहिणी कोर्ट के अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश धीरेन्द्र राणा ने अपने फैसले में कहा कि अभियोजन पक्ष बिना शक आरोपियों का अपराध साबित करने में असफल रहा है. अदालत ने अभियोजन पक्ष के उस तर्क को भी खारिज कर दिया कि मृतक व आरोपी नियमित रूप से मिलते थे एक आरोपी के कार में फिंगर प्रिंट मिले हैं. अदालत ने कहा संभव है कि फिंगर प्रिंट पहले के हो और ऐसा कोई साक्ष्य नहीं है कि मृतक व आरोपी घटना वाले दिन भी मिले थे.
पेश मामले के अनुसार 26 सितंबर 2015 को कंझावला रोड पर कार में एक शव मिला व जांच में पता चला कि शव दिल्ली पुलिस के कांस्टेबल संदीप का था. तमाम साक्ष्यों के आधार पर आरोपी अमित डबास उर्फ मीतू, नवीन डबास उर्फ चिक्का और सुमित डबास के खिलाफ धारा 302 के तहत मामला दर्ज किया गया, और केस के दौरान अभियोजन पक्ष के 44 गवाहों के बयान रिकॉर्ड करवाए गए.
आरोपियों के अधिवक्ता प्रदीप राणा और अभिषेक राणा ने तर्क दिया है कि जांच अधिकारी अपराध के हथियार यानी चाकू और कांच के टुकड़े को बरामद नहीं कर सका, जिससे मृतक का गला कथित तौर पर काटा गया था. खून से सने कपड़ों की बरामदगी सार्वजनिक स्थान से बिना किसी सार्वजनिक व्यक्ति की मौजूदगी के गलत तरीके से की गई ताकि आरोपियों को झूठा फसाया जा सके.
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अधिवक्ता राणा ने कहा बरामदगी के बाद मामले की संपत्ति पहले से ही पुलिस के कब्जे में थी और बाद में उन्हें झूठे तरीके से फंसाने के लिए आरोपियों पर अलग से आरोप लगाया गया. यह भी तर्क दिया गया है कि जांच अधिकारी ने कभी भी सुमित के अंगूठे का निशान नहीं लिया और फिंगर प्रिंट विशेषज्ञ की तुलनात्मक रिपोर्ट अविश्वसनीय है.
अदालत ने अधिवक्ता प्रदीप राणा और अभिषेक राणा की दलीलों से सहमति जताते हुए अपने फैसले में कहा कि अभियोजन पक्ष के मामले में गंभीर खामियां हैं. आरोपी व्यक्तियों को ऐसे कमजोर और नाजुक सबूतों के आधार पर दोषी नहीं ठहराया जा सकता.
-भारत एक्सप्रेस
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