2018 में अपनी दो नाबालिग बेटियों की हत्या करने के मामले में दोषी महिला को तीस हजारी कोर्ट ने उम्रकैद की सजा सुनाई है. अदालत ने इसे दुर्लभतम और निर्मम हत्या करार देते हुए कहा कि इस जघन्य अपराध ने अदालत की अंतरात्मा को झकझोर दिया है, क्योंकि समाज में माताओं को उनकी पालन-पोषण की भूमिका, बलिदान, भावनात्मक लचीलापन और निस्वार्थता के कारण आदर्श माना जाता है.
तीस हजारी अदालत के अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश सचिन जैन ने लीलावती (32) को सजा सुनाते हुए कहा कि दोषी के दो जीवित बच्चों की भलाई को देखते हुए और चूंकि उसके पुनर्वास और समाज में फिर से शामिल होने की संभावना है, इसलिए मृत्युदंड की तुलना में आजीवन कारावास अधिक उचित है. अभियोजन पक्ष के अनुसार, उसने 20 फरवरी, 2018 को अपनी दो बेटियों, जिनकी उम्र क्रमशः पांच वर्ष और पांच महीने थी, की गला दबाकर निर्मम हत्या कर दी.
अदालत ने अपने आदेश में कहा इसमें कोई संदेह नहीं है कि मां को हमेशा उसकी पालन-पोषण की भूमिका और कथित त्याग के कारण एक रक्षक के रूप में देखा जाता है और इसी कारण से, समाज मातृत्व को आदर्श मानता है, महिलाओं से निस्वार्थ, पालन-पोषण करने वाली और भावनात्मक रूप से लचीली होने की अपेक्षा करता है.
इसलिए, अपनी ही दो बेटियों की हत्या का कृत्य न केवल अदालत बल्कि पूरे समाज की अंतरात्मा को झकझोर देता है. इसके अलावा, दोषी द्वारा दोनों बेटियों की गला घोंटकर हत्या करना स्पष्ट रूप से एक निर्मम हत्या है जो वर्तमान मामले को दुर्लभतम मामलों की श्रेणी में लाता है. हालांकि अदालत ने कहा कि महिला के दो जीवित बच्चे हैं, एक बेटी (7) और एक बेटा (2), और उनकी भलाई और भविष्य की जरूरतों पर विचार किया जाना चाहिए. उनकी मां को उनके जीवन से पूरी तरह से हटा देने से उनके पालन-पोषण पर गहरा और प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है.
अदालत ने कहा दोषी अपेक्षाकृत युवा है और कारावास की पर्याप्त अवधि काटने के बाद उसके पुनर्वास और समाज में पुनः एकीकरण की संभावना बनी हुई है. जब गंभीर और कम करने वाली परिस्थितियों का वजन किया गया, तो तराजू बाद की ओर झुका और उसे मृत्युदंड के बजाय आजीवन कारावास की सजा देना उचित होगा. अदालत ने दोषी पर 10,000 रुपये के जुर्माना भी लगाया है.
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-भारत एक्सप्रेस
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