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UP News: सोनभद्र में मिला अहम खनिज पोटाश, जिसे फर्टिलाइजर के रूप में किया जा सकता है प्रयोग, कई रत्नो-उपरत्नों के भंडार छिपे होने का दावा

कौशलेंद्र पाण्डेय

Sonbhadra: उत्तर प्रदेश के सोनभद्र से बड़ी खबर सामने आ रही है. यहां पर लखनऊ विश्वविद्यालय की भूगर्भ विज्ञान फैकेल्टी से आए शोध दल की तरफ से यहां आदिमानवों की मौजूदगी से जुड़ा बड़ा प्रमाण मिलने का दावा किया गया है. गुफाचित्रों की मौजूदगी के अलावा, आदिमानवों द्वारा आखेट और स्वयं की रक्षा के लिए प्रयोग किए जाने वाले टूल्स किट (पत्थरों के औजार) और उसकी एक तरफ से पूरी फैक्ट्री मिलने की बात कही गई है. सोन नदी किनारे आदिमानवों के समूह की मौजूदगी से जुड़े प्रमाण मिलने के दावे के साथ, यह दावा भी किया है कि यहां 20,000 से 50,000 पूर्व तक आदिमानवों का रहन-सहन बना हुआ था. सलखन फासिल्स के अलावा जुगैल क्षेत्र के बरगवां में बृहद स्तर पर जीवाश्म रूपी संरचनाएं, यहां की पहाड़ियों-चट्टानों में 170 करोड़ वर्ष पूर्व पृथ्वी के आरंभिक जीवन से जुड़े प्रमाण की मौजूदगी, पोटाश के बड़े भंडार, कई रत्नो-उपरत्नों का बड़ा भंडार होने की संभावना जताई गई है.

प्रलय के प्रमाण मिलने का भी दावा

बता दें कि, सोनभद्र में मानव जीवन के प्रारंभिक शुरूआत को लेकर कई दावे पूर्व में हो चुके हैं. सलखन स्थित फासिल्स को जहां 160 करोड़ वर्ष प्राचीन बताया जाता है. वहीं पिछले वर्ष म्योरपुर परिक्षेत्र में दुनिया की सबसे पुरानी चट्टान और पृथ्वी पर चार बार के उलट-पलट (प्रलय) के प्रमाण पाए जाने का दावा किया गया था. अब यहां आदिमानवों की मौजूदगी, खासकर उनसे जुड़े टूल्स पत्थरों के औजार की बड़ी मात्रा पाए जाने का दावा किया गया है. टीम का मानना है कि यह खोज जीवन के प्रारंभिक शुरूआत के अध्ययन के साथ ही, प्रागैतिहासकालीन इतिहास के अध्ययन में बड़ी मददगार साबित होगी और इसे पर्यटन का भी बड़ा जरिया बनाया जा सकता है. इसी तरह टीम ने फर्टिलाइजर से जुड़े पोटाश की बड़ी मौजूदगी के साथ ही, स्फटिक हकीक, जैस्फर जैसे रत्नों-उपरत्नों के भी बड़े भंडार की संभावना जताई है और इसको लेकर विस्तृत शोध, उद्योग के साथ पर्यटन को लेकर भी बृहद स्तर पर काम किए जाने की जरूरत जताई है.

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बरगवा फासिल्स पर विशेष ध्यान देने की बताई जरूरत

इसके अलावा जो दूसरा महत्वपूर्ण दावा सामने आया है, वह है, चोपन क्षेत्र के सलखन फासिल्स के अलावा, जुगैल क्षेत्र के बरगवां में सलखन फासिल्स से भी ज्यादा संख्या में जीवाश्मों की मौजूदगी की. यहां भी सलखन फासिल्स की तरह ही गोल संरचनाएं मिली हैं, लेकिन दोनों से जुड़े स्ट्रक्चर में अंतर पाया गया है. शोधदल का मानना है कि सलखन के फासिल्स कठोर प्रकृति के हैं, जबकि बरगवां में मौजूद फासिल्स मजबूती में सलखन के मुकाबले काफी कमजोर देखते हैं. इसको देखते हुए टीम ने बरगवां फासिल्स को भी सलखन की तरफ संरक्षित करने के प्रयास के साथ ही, बरगवा फासिल्स पर विशेष ध्यान देने की जरूरत जताई है.

आदिमानव उगाते थे अनाज

लखनऊ विश्वविद्यालय के प्रोफेसर डा. विभूति राय ने कहा कि इस क्षेत्र में हमको आदिमानव द्वारा बनाए गए टूल्स जिनको औजार कहते हैं, वह पत्थर के ऐसे टुकड़े हैं, जो नुकीले हैं और उसका प्रयोग आदिमानव शिकार करने के लिए करता था, जिसे सेमिया गांव में पाया गया है. प्रो. राय ने मीडिया को जानकारी दी कि, यहां उन्हें ऐसे स्थान दिखे जिसे एक तरह से आदिमानवों की टूल फैक्ट्री कहा जा सकता है. तरह-तरह के तीरों में लगाए जाने के लिए पत्थर से निकाले गए ब्लेड, वह पत्थर जिससे ब्लेड निकाले गए, उससे जुड़े सिलिका के पत्थर पाए गए हैं. उन्होंने कहा कि अब तक की शोध में जो उनकी समझ में आया है कि उसके मुताबिक यहां थोड़ा विकसित आदिमानव था लेकिन वह था आदिमानव ही. उन्होंने कहा कि शिकार के लिए आदिमानव मुख्य रूप से किसी नदी किनारे अनाज उगाया करते थे. उसके ऊपर के हिस्से में जानवर पाला करते थे और सबसे ऊपरी हिस्से में वह खुद रहा करते थे ताकि उनका जंगली जानवरों से बचाव हो सके. अगर ऊपर से जानवर आता था तो उसे मारने के लिए तीर-कमान आदि का प्रयोग करते थे, जिसमें ब्लेड पत्थर के लगे होते थे.

विजयगढ़ दुर्ग पर भी मिले आदिमानवों की मौजूदगी के प्रमाण

प्रोफेसर डा. विभूति राय ने कहा कि यहां के अलावा विजयगढ़ दुर्ग पर भी आदिमानवों की मौजूदगी के प्रमाण मिले थे. वहां पत्थर के ब्लेड की बजाय गुफाचित्र पाए गए हैं जो भूरे रंग के हैं, काफी खूबसूरत हैं. उन्होंने ये भी कहा कि आदिमानव से जुड़े चिन्हों को पर्यटन की दृष्टि से संरक्षित किया जाना जरूरी है. प्रोफेसर विभूति राय ने सोनभद्र में कई रत्न और उपरत्नों का भी भंडार छिपे होने की संभावना जताते हुए कहा कि नेवारी क्षेत्र सहित यहां कई जगहों पर स्फटिक क्रिस्टल मिले हैं, जिसकी यहां इंडस्ट्री लगाई जा सकती है. साथ ही, यहां कार्निलियल (हकीक) और जैस्फर की प्रचुर मात्रा में मौजूदगी पाई गई है. रत्न के क्षेत्र में कार्य के साथ ही जिले में पर्यटन का बड़ा केंद्र विकसित किया जा सकता है.

160 अरब करोड़ वर्ष पुरानी मिली चट्टानें

सोनभद्र में तीन दिल चली शोध यात्रा में सबसे मुख्य खोज क्या रही, इस सवाल पर प्रोफेसर विभूति राय ने कहा कि यहां पाई जाने वाली चट्टाने काफी पुरानी लगभग (1.6 अरब से 1.8 अरब 160 से 170 करोड़ वर्ष) पुरानी है. इतनी पुरानी चट्टानों में पाए जाने वाले जीवाश्म अपनी विविधता को प्रदर्शित करते हैं. वह यह भी बताते हैं कि पृथ्वी पर जो आरंभिक जीवन की शुरूआत हुई, वह कैसा था. कहा कि सलखन फासिल्स की तरह, बरगवां में दुनिया के सबसे पुराने, शानदार तरीके से निर्मित जीवाश्म स्ट्रक्चर देखने को मिले. यह गोल-गोल से दिखते हैं. कई-कई एक से डेढ़ मीटर लंबे दिखते हैं. यह यहां की खास विशेषता है. प्रोफेसर विभूति राय ने सोनभद्र में एक और अहम खनिज की मौजूदगी का खुलासा करते हुए कहा कि बरगवां से नेवारी के बीच हरे रंग के पत्थर मिले हैं जिन्हें ग्लोकोनोटिक सैंड स्टोन कहते हैं, जिसकी डेटिंग की गई तो पता चला कि वह 170 करोड़ वर्ष पुराना है. प्रोफेसर राय ने कहा कि इसमें पोटाश की मात्रा काफी अधिक होती है, जिसे फर्टिलाइजर के रूप में प्रयोग किया जा सकता है, यह एक बड़ी संभावना है.

-भारत एक्सप्रेस

 

Archana Sharma

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