उत्तराखंड में हुए दो विधानसभा सीट पर उपचुनाव के नतीजे सामने आ गए हैं. मंगलौर और बद्रीनाथ दोनों ही विधानसभा सीटों पर कांग्रेस के प्रत्याशियों ने जीत दर्ज की है. शनिवार (13 जुलाई) को हुई मतगणना में बद्रीनाथ सीट से कांग्रेस के लखपत सिंह बुटोला और मंगलौर सीट से कांग्रेस नेता काजी मोहम्मद निजामुद्दीन जीत दर्ज की है. दोनों सीटों पर बीते बुधवार (10 जुलाई) को उपचुनाव के तहत वोट डाले गए थे.
चुनाव आयोग की वेबसाइट पर उपलब्ध आंकड़ों के अनुसार, बद्रीनाथ में पहली बार उम्मीदवार बने बुटोला को 27,696 वोट मिले और उन्होंने भाजपा के राजेंद्र सिंह भंडारी को 5,095 वोटों के अंतर से हराया. तीन बार विधायक रहे और राज्य के पूर्व मंत्री भंडारी को 22,601 वोट मिले. यह सीट भंडारी के कांग्रेस छोड़कर भाजपा में शामिल होने के बाद खाली हुई थी.
मंगलौर में तीन बार विधायक रहे और वरिष्ठ कांग्रेस नेता निजामुद्दीन ने भाजपा के करतार सिंह भड़ाना के खिलाफ 422 वोटों के मामूली अंतर से सीट जीती. निजामुद्दीन को 31,727 वोट मिले, जबकि भड़ाना को 31,305 वोट मिले. बहुजन समाज पार्टी (बसपा) के पूर्व विधायक सरवत करीम अंसारी के बेटे उबैदुर रहमान उर्फ मोंटी 19,559 वोटों के साथ तीसरे स्थान पर रहे. अंसारी की पिछले साल अक्टूबर में मृत्यु हो गई थी, जिसके बाद इस सीट पर उपचुनाव कराना पड़ा.
दोनों सीटों पर भाजपा को मिली हार से यह सवाल उठने लगा है कि क्या इन दोनों चुनाव के नतीजे उत्तराखंड में होने वाली 2027 की विधानसभा चुनाव की तस्वीरें स्पष्ट कर रही हैं. क्या देवभूमि में भाजपा का प्रभाव कम होता जा रहा है?
हालांकि उत्तराखंड विधानसभा उपचुनाव में दो सीटों पर बीजेपी को मिली हार की समीक्षा की बात बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष महेंद्र भट्ट ने की है. भाजपा प्रदेश अध्यक्ष ने तो यहां तक कहा कि पूर्व में वह भी बद्रीनाथ सीट पर चुनाव हार चुके हैं. इस सीट पर हुई हार को पार्टी के अध्यक्ष होने के नाते उन्होंने स्वीकार करते हुए कहा कि पार्टी चुनाव में हार के कारणों पर मंथन करेगी.
हार की समीक्षा करने के साथ भाजपा को यह भी देखना होगा कि क्या चार धाम यात्रा में इस बार फैली अनियमितता ने बद्रीनाथ विधानसभा क्षेत्र के लोगों में गुस्सा भर दिया, जिसका खामियाजा भाजपा को भुगतना पड़ा. जिस तरह यहां बद्रीनाथ और केदारनाथ के साथ यमुनोत्री और गंगोत्री की यात्रा की शुरुआत के साथ ही अनियमितता और प्रशासन की लापरवाही देखने को मिली क्या भाजपा के लिए वह इस उपचुनाव में परेशानी का कारण तो नहीं बन गया.
ऐसा कहने के पीछे की वजह यह भी है कि यहां के स्थानीय लोगों की जिंदगी को सुचारू रूप से चलाने में इस यात्रा का अहम योगदान है. इस यात्रा की वजह से उन्हें रोजगार मिलता है और यह रोजगार उनके सालभर के जीवनयापन का साधन होता है. ऐसे में जिस तरह की अनियमितता यात्रा की शुरुआत में ही दिखी उसने यहां के स्थानीय लोगों के व्यापार पर भी असर डाला. भाजपा इस सीट पर जब जीत हार की समीक्षा करेगी तो उसे इस पर भी ध्यान देना होगा.
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हालांकि ऐसा कहना थोड़ी जल्दबाजी होगी कि देवभूमि में भाजपा का प्रभाव कम होता जा रहा है, क्योंकि अभी हाल में संपन्न लोकसभा चुनाव में यहां की 5 में से 5 सीटों पर भाजपा ने जीत दर्ज की है. इस सबके बाद विधानसभा उपचुनाव में आए ऐसे नतीजे भाजपा को समीक्षा करने पर मजबूर कर रहे हैं.
बद्रीरीनाथ की सीट पर जो जीत कांग्रेस ने दर्ज की है वह ज्यादा अप्रत्याशित है. इस सीट पर कांग्रेस के लखपत बुटोला ने धमाकेदार जीत दर्ज की है. उन्होंने भाजपा प्रत्याशी राजेंद्र भंडारी को 5 हजार से अधिक वोटों से हराया है.
अब बद्रीनाथ सीट को लेकर चर्चा क्यों गर्म है इसको जरा गौर से देखिए. यह सीट चमोली जिले में पड़ता है. राज्य गठन के पहले इस सीट को बद्री-केदार नाम से जाना जाता था, लेकिन परिसीमन के बाद 2012 में दशोली, जोशीमठ, गोपेश्वर के साथ इसमें पोखरी क्षेत्र को भी जोड़ा गया और इसका नाम बदलकर बद्रीनाथ विधानसभा सीट हो गया.
उत्तराखंड की गंगोत्री सीट की ही तरह इस सीट को लेकर भी एक मिथक जुड़ा हुआ है कि जिस दल का प्रत्याशी यहां से विधानसभा पहुंचता है प्रदेश में उसी दल की सरकार बनती है. ऐसे में अब कांग्रेसी कार्यकर्ता इस सीट पर जीत को लेकर उत्साहित हैं.
इस सीट पर कुल यहां 102128 वोटर हैं. बता दें कि यहां इस सीट पर 2002 और 2012 में कांग्रेस और 2007 और 2017 में भाजपा ने जीत दर्ज की थी. वर्तमान भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष महेंद्र भट्ट इस सीट से 2017 में विधानसभा चुनाव जीत चुके हैं. फिर 2022 में उन्हें हार का सामना करना पड़ा था. यह सीट पूर्व मंत्री राजेंद्र भंडारी ने जीती थी, जो लोकसभा चुनाव से पहले कांग्रेस को छोड़कर भाजपा में आ गए थे.
राजेंद्र भंडारी इस उपचुनाव में भाजपा के टिकट पर चुनाव मैदान में थे और उन्हें हार का सामना करना पड़ा. यानी कांग्रेस छोड़कर भाजपा में आए राजेंद्र भंडारी पर पार्टी ने भरोसा तो दिखाया लेकिन वह अपनी करिश्मा दोहराने में नाकामयाब रहे.
बद्रीनाथ सीट पर अल्पसंख्यक और दलित आबादी बड़ी संख्या में है. ऐसे में इस सीट पर जीत के लिए भाजपा को मशक्कत करनी पड़ती है. इस सीट पर कांग्रेस की जीत के पीछे यह भी अनुमान लगाया जा रहा है कि राहुल गांधी ने जिस जोर-शोर से युवाओं की बेरोजगारी का मुद्दा उठाया वह जनता के रास आया.
साथ ही यह भी साफ हो गया है कि बसपा की वोट बैंक में कांग्रेस ने सेंध लगाने का जो प्रयोग यूपी में किया था उसमें वह उत्तराखंड में भी कामयाब हुई. कांग्रेस तो बद्रीनाथ सीट पर भाजपा की हार को अयोध्या से भी जोड़ने लगी है. वह कहने लगे हैं कि भगवान बीजेपी से नाराज हैं. अयोध्या हार चुकी भाजपा इस उपचुनाव में बद्रीनाथ सीट भी हार गई है और बद्री नारायण भगवान का आशीर्वाद कांग्रेस को मिला.
-भारत एक्सप्रेस
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