दिल्ली हाईकोर्ट ने तलाक के मामले में सुनवाई के दौरान कहा है कि यह मानना बहुत मुश्किल है कि तलाक देने से पति-पत्नी में से किसी एक के लिए कलंक होगा, जबकि दोनों ही शिक्षित हैं. उसने आगे कहा कि लगातार मानिसक पीड़ा और आघात सहने के बजाय विवाह को समाप्त करना उनके हित में ही होगा. कोर्ट ने यह टिप्पणी करते हुए मानसिक क्रूरता के आधार पर पत्नी की तलाक मांगने की याचिका मंजूर कर ली.
साथ ही पति की इस दलील को खारिज कर दिया कि तलाक देने से उस पर और उसके परिवार का अपमान होगा और कलंक लगेगा.
न्यायमूर्ति अमित बंसल एवं न्यायमूर्ति राजीव शकधर की पीठ ने कहा कि हम इस दलील को समझने में विफल रहे हैं. हमारे विचार में तलाक के कारण पति या पत्नी या उनके परिवारों पर कोई अपमान या कलंक नहीं लगाया जा सकता है.
दोनों पक्ष अच्छी तरह से शिक्षित हैं. इसलिए इस तर्क को पचाना मुश्किल है कि तलाक से पति या पत्नी में से किसी के लिए कलंक होगा. इसके विपरीत एक खटास भरे विवाह से पक्षों और उनके परिवारों को होने वाली मानिसक पीड़ा और आघात को सहन करना ज्यादा दुखदायी है. पीठ ने कहा कि मध्यस्थता के बावजूद दोनों के बीच बात नहीं बनी. इस दशा में उनके बीच को कानून के अनुसार विघटित माना जाएगा.
इस मामले में पति ने आपसी सहमति से तलाक देने पर सहमति जताई थी, क्योंकि दोनों बारह सालों से अलग रह रहे थे. बाद में पति ने अपनी पत्नी को तलाक देने से इनकार कर दिया, क्योंकि उसका मानना था कि तलाक देने से उस पर और उसके परिवार पर कलंक लगेगा.
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-भारत एक्सप्रेस
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