2024 Parliamentary Election: पांचाल देश की राजधानी बेदामऊ का नाम बदलते वक्त के साथ बदलकर बदायूं हो गया और बदायूं को भारत का मैंथा का शहर कहा जाता है. बदायूं को यूं तो वेदों की नगरी भी कहा जाता रहा है तो वहीं सुल्तान इल्तुतमिश ने अपने शासन के दौरान चार साल के लिए दिल्ली सल्तनत की राजधानी बदायूं को बनाया था.
बदायूं में मुख्यतः ज़री-जरदोज़ी उत्पादों का काम होता है और राजा सहस्त्रबाहु भी बदायूं से वास्ता रहा है लेकिन आज हम बात करेंगे बदायूं संसदीय क्षेत्र के सियासी मिजाज़ की.
आबादी के लिहाज़ से सबसे बड़े राज्य उत्तर प्रदेश (Uttar Pradesh) के बदायूं संसदीय सीट पर तीसरे चरण में 7 मई को मतदान होना है. राजनीति के जानकारों से लेकर आम जनता की नजर भी इस सीट पर टिकी है. यहां मुख्य मुकाबला भारतीय जनता पार्टी (BJP) के दुर्विजय शाक्य (Durvijay Shakya) और समाजवादी पार्टी (SP) के वरिष्ठ नेता शिवपाल सिंह यादव (Shivpal Singh Yadav) के बेटे आदित्य यादव (Aditya Yadav) के बीच है. हालांकि, बहुजन समाज पार्टी (BSP) ने अल्पसंख्यक प्रत्याशी मुस्लिम खां को उतारकर मुकाबला त्रिकोणीय बनाने की कोशिश की है.
बदायूं लोकसभा सीट समाजवादी पार्टी का गढ़ मानी जाती है. समाजवादी पार्टी ने पहले यहां से धर्मेंद्र यादव के नाम का ऐलान किया था, वो बदायूं से दो बार सांसद भी रहे हैं. लेकिन अखिलेश यादव ने बाद में शिवपाल यादव के उम्मीदवारी का ऐलान कर दिया. उसके बाद शिवपाल ने यहां से अपने बेटे आदित्य यादव को मैदान में उतार दिया, जिसके बाद बदायूं सीट पूरे देश में चर्चा में आ गई.
दूसरी तरफ बीजेपी ने इस सीट पर मौजूदा सांसद संघमित्रा मौर्य का टिकट काटकर ब्रज क्षेत्र के अध्यक्ष दुर्विजय शाक्य पर भरोसा जताया है. जानकारों की मानें तो वह संघ की पसंद हैं, उन्हें संगठन का पूरा सपोर्ट भी है.
भले ही बदायूं से चुनावी मैदान में आदित्य यादव हैं, लेकिन शिवपाल यादव ने चुनाव की कमान संभाल रखी है. इस सीट पर 1996 से 2019 तक समाजवादी पार्टी का कब्जा रहा है. 2009 और 2014 में धर्मेंद्र यादव (Dharmendra Yadav) ने जीत दर्ज की थी.
हालांकि, 2019 के चुनाव में एसपी, बीएसपी और RLD गठबंधन में थे. मगर इसका फायदा बदायूं सीट पर नहीं मिला था. इस बार गठबंधन में कांग्रेस समाजवादी पार्टी के साथ है. देखना होगा कि इसका कितना फायदा मिलता है?
बदायूं सीट पर समाजवादी पार्टी से 6 सांसद बन चुके हैं. मुस्लिम-यादव समीकरण के दम पर एसपी के हौसले बुलंद है. हालांकि, बीएसपी ने मुस्लिम कैंडिडेट मुस्लिम खां को उतारकर एसपी के उम्मीदों को झटका दिया है. अगर मुस्लिम वोटर बंटता है, तब हार-जीत का मार्जिन कम हो सकता है. ऐसे में बीजेपी को फायदा हो सकता है.
इस क्षेत्र में तकरीबन मुस्लिम मतदाताओं की संख्या 14% और यादवों की संख्या 18% है. वहीं बीजेपी को यह सीट बरकरार रखने के लिए गैर-यादव ओबीसी और सवर्णों के समर्थन की जरुरत है, जिसमें 14% मौर्य मतदाता, 9% लोध के साथ-साथ राजपूत (6%) और ब्राह्मण (7%) शामिल हैं.
2019 लोकसभा चुनाव में बीजेपी ने समाजवादी पार्टी के इस गढ़ में सेंधमारी करते हुए 1991 के बाद जीत दर्ज की. संघमित्रा मौर्य (Sanghmitra Maurya) ने धर्मेंद्र यादव को 19 हजार वोटों से हराया था. एसपी का वोट शेयर सिर्फ 2.91% घटा और उसे सीट गंवानी पड़ी. संघमित्रा को 47.30% वोट मिले थे.
2014 लोकसभा चुनाव में प्रचंड मोदी लहर के बीच एसपी ने इस सीट पर अपना कब्जा बरकरार रखा था. धर्मेंद्र यादव ने बीजेपी के वागीश पाठक (Wagish Pathak) को 1,66,347 वोटों से हराया था. उनका वोट शेयर 16.8% बढ़कर 48.50% हो गया था. 2009 के चुनाव में एसपी और बीएसपी के बीच मुकाबला था. धर्मेंद्र यादव ने धरम यादव (D P Yadav) को 32,542 वोटों से हराया था. एसपी को 31.70% और बीएसपी को 27.29% वोट मिले थे.
बदायूं लोकसभा सीट पर भारतीय जनसंघ 1962,1967 एवं भारतीय जनता पार्टी ने 1991, 2019 में जीत दर्ज की है वहीं समाजवादी पार्टी ने 6 बार तथा कांग्रेस ने 5 बार जीत दर्ज की है. 1989 के लोकसभा चुनाव में शरद यादव (Sharad Yadav) ने भी बदायूं से जीत दर्ज किया था.
सियासत में गड़े मुर्दे उखाड़े जाते हैं और पुरानी बातें याद दिलाई जाती हैं, कुछ ऐसा ही हाल बदायूं से समाजवादी पार्टी के प्रत्याशी आदित्य यादव के साथ भी हुआ. प्रत्याशी बनने के कुछ दिनों बाद ही एकाएक आदित्य यादव के कॉलेज दिनों की पर्सनल तस्वीरें वायरल होने लगी जिसपर आदित्य यादव ने सफाई भी दिया था.
बदायूं लोकसभा सीट पर चुनाव चर्चा का विषय बन चुका है. दरअसल यहां के जीत हार को लेकर दो वकीलों ने भाजपा और सपा की जीत और हार पर 2-2 लाख की शर्त लगा ली है. इसके लिए उन्होंने बकायदा स्टांप पेपर पर अनुबंध भी कराया है.
बदायूं संसदीय क्षेत्र पर 7 मई को मतदान होगा, अब यह देखना दिलचस्प होगा कि समाजवादी पार्टी फिर बदायूं की सीट पर अपना कब्जा जमा पाती है या फिर भाजपा अपने जीत का क्रम बरकरार रखती है.
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